DELHI HC: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक वैवाहिक विवाद से जुड़े आपराधिक मामले के रिकॉर्ड से अलग रह रहे दंपति के नाम हटाने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति अमित महाजन की एकल पीठ ने इस मामले में आदेश जारी करते हुए यह भी कहा कि व्यक्ति को सार्वजनिक सर्च इंजन और अन्य पोर्टल से अपनी और अपनी पत्नी की पहचान छुपाने का अनुरोध करने की अनुमति दी जाती है।
DELHI HC: गोपनीयता और ‘भूल जाने के अधिकार’ का महत्व
कोर्ट ने इस मामले में ‘गोपनीयता के अधिकार’ और ‘भूल जाने के अधिकार’ की अहमियत को रेखांकित किया। अदालत ने कहा कि ऐसे व्यक्तियों के नाम छुपाना, जिन्हें किसी अपराध से बरी किया गया हो या जिनके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को खारिज किया गया हो, न्याय के बुनियादी सिद्धांतों का पालन करने के लिए आवश्यक है।
अदालत ने कहा, “उन लोगों के नाम और पहचान को सार्वजनिक रखना, जिन पर लगाए गए आरोपों को खारिज कर दिया गया है, उनके गोपनीयता के अधिकार और गरिमा के साथ जीवन जीने के अधिकार के खिलाफ है। ऐसे व्यक्तियों की पहचान को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करना अनुचित और असमान होगा।”
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अदालत ने यह भी कहा कि लोकतंत्र में जानकारी तक पहुंचना एक महत्वपूर्ण पहलू है, लेकिन यह सार्वजनिक जानकारी के अधिकार और व्यक्तिगत गोपनीयता के अधिकार के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए जरूरी है।
न्यायालय ने कहा, “जब किसी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को खारिज कर दिया गया है, तो इंटरनेट पर उस व्यक्ति के खिलाफ की गई शिकायत या आरोप को बनाए रखने से कोई जनहित नहीं सधता। यह न केवल उस व्यक्ति के गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन है, बल्कि उनके जीवन पर नकारात्मक प्रभाव भी डाल सकता है।”
DELHI HC: मामला और पृष्ठभूमि
यह मामला एक दंपति के वैवाहिक विवाद से संबंधित था, जिसमें पत्नी द्वारा पति के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई थी। मई 2024 में, दिल्ली हाईकोर्ट ने एक निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया था, जिसमें पत्नी की शिकायत पर पति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया गया था।
इसके बाद, पति ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने अनुरोध किया कि मामले से जुड़े उनके और उनकी पत्नी के नाम व विवरण को सार्वजनिक रिकॉर्ड से हटाया जाए। उन्होंने तर्क दिया कि मामले को खारिज किए जाने के बावजूद इंटरनेट पर उनकी पहचान सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है, जिससे उनकी व्यक्तिगत और सामाजिक प्रतिष्ठा को नुकसान हो रहा है।
याचिका पर सुनवाई करते हुए, हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि भविष्य में रजिस्ट्री संबंधित पक्षों के नामों का उपयोग न करे। इसके बजाय, याचिकाकर्ता को ‘एबीसी’ और उनकी पूर्व पत्नी को ‘एक्सवाईजेड’ के रूप में संदर्भित किया जाए।
न्यायालय ने जोर देकर कहा कि ऐसे मामलों में न्यायिक प्रणाली को इस तरह से कार्य करना चाहिए, जिससे न केवल न्याय किया जाए बल्कि यह भी सुनिश्चित हो कि निर्दोष व्यक्तियों की गरिमा और गोपनीयता का संरक्षण हो।
DELHI HC: अदालत का दृष्टिकोण
अदालत ने अपने आदेश में कहा, “आपराधिक मामलों में दोषमुक्त हुए व्यक्तियों की पहचान को सार्वजनिक रखना अनुचित है। यह व्यक्ति की गरिमा और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए ‘जीवन जीने के अधिकार’ के खिलाफ है।”
कोर्ट ने आगे कहा कि, “जब तक ऐसी जानकारी किसी जनहित में आवश्यक न हो, इसे इंटरनेट पर बनाए रखना उचित नहीं है। न्यायालयों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भी निर्दोष व्यक्ति गलत जानकारी के कारण समाज में अपमानित न हो।”
मामला: एबीसी बनाम राज्य व अन्य, [2024:DHC:8921]
याचिकाकर्ता की ओर से: वरिष्ठ अधिवक्ता एसडी सलवान, अधिवक्ता अरविंद चौधरी, सचिन चौधरी, और विनय यादव।
प्रतिवादियों की ओर से: अतिरिक्त लोक अभियोजक राजकुमार, अधिवक्ता अजय वर्मा और वैष्णव कीर्ति सिंह।
दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला ‘गोपनीयता के अधिकार’ और ‘भूल जाने के अधिकार’ को सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह आदेश न केवल निर्दोष व्यक्तियों की गरिमा की रक्षा करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि सार्वजनिक जानकारी और व्यक्तिगत गोपनीयता के बीच संतुलन बना रहे।
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