GUJARAT HC: कैश कैंटीन सब्सिडी: महंगाई भत्ते का हिस्सा

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By headlineslivenews.com

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GUJARAT HC: गुजरात उच्च न्यायालय ने हाल ही में ‘कैश कैंटीन सब्सिडी‘ को ‘खाद्य रियायत के किसी भी कैश मूल्य’ के रूप में मान्यता दी है, और इसे महंगाई भत्ते का हिस्सा माना है। यह फैसला रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) के खिलाफ एक अपील पर सुनाया गया, जिसमें एकल न्यायाधीश द्वारा दिए गए आदेश को चुनौती दी गई थी।

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न्यायमूर्ति ए.एस. सुपेहिया और न्यायमूर्ति गीता गोपी की पीठ ने कहा, “तथ्यों और कानून का समग्र विश्लेषण करते हुए, हम मानते हैं कि ‘कैश कैंटीन सब्सिडी’ ‘खाद्य रियायत के किसी भी कैश मूल्य’ की परिभाषा को संतोषजनक ढंग से पूरा करती है और यह EPF अधिनियम, 1952 की धारा 6 के स्पष्टीकरण 1 के तहत आती है। इसे महंगाई भत्ते का हिस्सा मानते हुए भविष्य निधि (Provident Fund) के लिए कटौती के लिए स्वीकार किया जा सकता है।”

GUJARAT HC: मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला IPCL कर्मचारियों संघ और रिलायंस इंडस्ट्रीज के बीच “कैंटीन सब्सिडी” को लेकर विवाद से उत्पन्न हुआ। संघ के सदस्यों को प्रति माह 475 रुपये की सब्सिडी दी जा रही थी, जबकि पहले यह राशि 300 रुपये थी। हालांकि, इस समझौते में यह स्पष्ट नहीं किया गया था कि क्या यह कैंटीन सब्सिडी मूल वेतन या महंगाई भत्ते का हिस्सा होगी।

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अंततः मामला EPF प्राधिकरण के पास गया, जिसने निर्णय लिया कि “कैश कैंटीन सब्सिडी” महंगाई भत्ते के रूप में मान्य है और इसके लिए आरआईएल को योगदान देना होगा।

कोर्ट ने यह भी बताया कि “कैश कैंटीन सब्सिडी” सभी कर्मचारियों के लिए एक कानूनी समझौते के तहत उपलब्ध है और इसका खाद्य वस्तुओं की लागत से सीधा संबंध है। इस प्रकार, सब्सिडी की समीक्षा महंगाई से संबंधित है, और इसलिए इसे महंगाई भत्ते का हिस्सा माना जाएगा।

GUJARAT HC: न्यायालय का निर्णय

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि खाद्य रियायत का कैश मूल्य, हालांकि महंगाई भत्ते के रूप में सीधे तौर पर योग्य नहीं हो सकता, लेकिन इसे महंगाई भत्ते में शामिल करने के लिए वैधानिक प्रावधान द्वारा इसे मान लिया गया है। न्यायालय ने कहा कि “कैंटीन सब्सिडी खाद्य रियायत या छूट का एक समानार्थक है।”

इस निर्णय में कहा गया कि कर्मचारी हर दिन रियायती दर पर भोजन नहीं लेते हैं, लेकिन यह तथ्य संस्थान को पूरी तरह से भविष्य निधि से कटौती से मुक्त नहीं कर सकता। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि एक लाभकारी विधायी प्रावधान को उदारता से समझा जाना चाहिए ताकि यह वैधानिक उद्देश्य को पूरा कर सके और न कि इसे विफल कर सके।

GUJARAT HC: अंतिम निर्णय

अंततः, गुजरात हाईकोर्ट ने अपील को स्वीकार करते हुए निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया। इस फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया कि महंगाई भत्ते की गणना में कैश कैंटीन सब्सिडी को शामिल किया जाएगा और इसे भविष्य निधि के लिए कटौती योग्य माना जाएगा।

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मामला शीर्षक: आईपीसीएल कर्मचारी संघ (भारतीय मजदूर संघ) बनाम रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (न्यूट्रल सिटेशन: 2024:GUJHC:58705-DB)
प्रतिनिधित्व:
अपीलकर्ता की ओर से: वरिष्ठ अधिवक्ता शालिन मेहता और अधिवक्ता अदिति एस. रावल।
प्रतिवादी की ओर से: वरिष्ठ अधिवक्ता के.एस. ननावती, अधिवक्ता ई. शैलजा, कुशल ननावती, मयूर धोतारे, और श्याम पी. नाइक।

इस निर्णय ने यह भी संकेत दिया है कि भविष्य निधि की कटौती को लेकर कानूनी दृष्टिकोण में और स्पष्टता आई है, और इससे कर्मचारियों के अधिकारों की सुरक्षा में मदद मिलेगी।

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