GUJARAT HC: गुजरात हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि परिवार न्यायालय को शादी, बाल संरक्षण और गुजारा भत्ता जैसे मामलों में एक संवेदनशील और मानवीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
न्यायालय ने जोर दिया कि परिवार न्यायालय की प्राथमिक भूमिका सुलहकर्ता की होनी चाहिए, न कि केवल विवाद सुलझाने वाली। यह फैसला उस अपील के तहत आया, जिसमें एक महिला ने परिवार न्यायालय द्वारा उसके तलाक के मुकदमे को खारिज करने के फैसले को चुनौती दी थी।
GUJARAT HC: न्यायालय की टिप्पणी
हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच, जिसमें न्यायमूर्ति बीरेन वैष्णव और न्यायमूर्ति मौलिक जे. शेलट शामिल थे, ने कहा कि परिवार न्यायालयों को दीवानी मुकदमों की नियमित प्रक्रियाओं से हटकर सुलह की भूमिका निभानी चाहिए। उन्होंने कहा कि परिवार न्यायालय के लिए यह आवश्यक है कि वह शादी, बाल संरक्षण और गुजारा भत्ता जैसे मुद्दों पर एक अलग और संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाए।
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पीठ ने यह भी कहा कि परिवार न्यायालय को परिवार से जुड़े मामलों को अन्य दीवानी या व्यावसायिक विवादों की तरह न देखते हुए इसे अधिक मानवीय और संवेदनशीलता के साथ संभालना चाहिए। यह फैसला परिवार न्यायालय अधिनियम, 1984 के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए दिया गया है, जो परिवार के विवादों को सुलझाने के लिए सुलह की भावना को बढ़ावा देता है।
GUJARAT HC: मामले का पृष्ठभूमि
इस मामले में, अपीलकर्ता (पत्नी) और प्रतिवादी (पति) की शादी 2009 में हुई थी। 2012 में उनके एक पुत्र का जन्म हुआ। पत्नी ने आरोप लगाया कि पति क्रिकेट मैचों पर सट्टा लगाने का आदी था, जिसके कारण उसने भारी कर्ज जमा कर लिया। वह न तो अपनी पत्नी और बेटे का ख्याल रखता था, बल्कि कर्ज चुकाने के लिए पत्नी से पैसे मांगता था।
पत्नी ने यह भी आरोप लगाया कि पति और उसके परिवार के सदस्यों ने उस पर शारीरिक और मानसिक अत्याचार किया, जिसके कारण 2013 में उसने ससुराल छोड़ दिया। इसके बाद दोनों अलग रहने लगे और पुनः साथ नहीं आए।
पत्नी ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत तलाक के लिए परिवार न्यायालय में मुकदमा दायर किया। हालांकि, पति की गैरमौजूदगी में भी, परिवार न्यायालय ने मामले को खारिज कर दिया और यह पाया कि पत्नी अपने आरोपों को पर्याप्त रूप से सिद्ध करने में विफल रही है।
GUJARAT HC: हाईकोर्ट की राय और निर्देश
हाईकोर्ट ने परिवार न्यायालय के दृष्टिकोण की आलोचना की और कहा कि परिवार न्यायालय को मामलों को अनावश्यक रूप से लंबा करने के बजाय, अधिनियम के उद्देश्यों को पूरा करने का प्रयास करना चाहिए। कोर्ट ने निम्नलिखित महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए:
- सुलह प्राथमिकता होनी चाहिए: परिवार न्यायालय को पहले सुलह की कोशिश करनी चाहिए, ताकि विवाद को अदालत के बाहर ही सुलझाया जा सके।
- संवेदनशील दृष्टिकोण: शादी, बाल संरक्षण और गुजारा भत्ता जैसे मामलों में संवेदनशीलता और मानवीय दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए।
- साक्ष्य का महत्व: अदालत को ऐसे साक्ष्य जो कानून में निषिद्ध हैं, उन्हें अंतिम निर्णय का आधार नहीं बनाना चाहिए।
- साक्ष्य का स्तर: तलाक चाहने वाले पक्ष को अपने आरोपों को “संदेह से परे” सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि “संभावनाओं के आधार” पर इसे तय किया जा सकता है।
- क्रूरता की परिभाषा: “क्रूरता” की व्याख्या करते समय, परिवार न्यायालय को अधिक लचीला और व्यापक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, विशेषकर जब मामला पत्नी द्वारा दायर किया गया हो।
- स्थायी भरण-पोषण: तलाक की डिक्री देते समय, अदालत को कमजोर या गरीब पक्ष के लिए स्थायी भरण-पोषण का आदेश देना चाहिए। अगर बच्चे हैं, तो इसे उनकी जरूरतों के आधार पर तय करना चाहिए।
GUJARAT HC: फैसला और निष्कर्ष
गुजरात हाईकोर्ट ने पाया कि पत्नी ने अपने मामले को “संभावनाओं के आधार पर” सिद्ध कर दिया है और तलाक का आधार क्रूरता और परित्याग स्पष्ट रूप से साबित हुआ है। इसके आधार पर, हाईकोर्ट ने पत्नी की अपील को स्वीकार करते हुए, उनके तलाक को मंजूरी दी और परिवार न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया।
यह फैसला यह स्पष्ट करता है कि परिवार से जुड़े मामलों में परिवार न्यायालय को दीवानी मुकदमों से अलग दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। यह संवेदनशीलता और मानवीय दृष्टिकोण का पालन करने की ओर परिवार न्यायालयों को प्रेरित करता है।
मामला शीर्षक: ABC बनाम XYZ
तटस्थ संदर्भ: 2024:GUJHC:64562-DB
Regards:- Adv.Radha Rani for LADY MEMBER EXECUTIVE in forthcoming election of Rohini Court Delhi