केरल हाई कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए एक महिला को उसकी विशेष जरूरतों वाली नाबालिग बेटियों को यूएई ले जाने की अनुमति दी। यह निर्णय कोर्ट ने पैरेंट्स पेट्रिया (Parens Patriae) अधिकार क्षेत्र का उपयोग करके लिया, जिसका उद्देश्य कमजोर वयस्कों और नाबालिगों के हितों की रक्षा करना है। यह निर्णय विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह न केवल परिवार की एक विशिष्ट समस्या को हल करता है, बल्कि न्यायपालिका की भूमिका को भी स्पष्ट करता है जब यह बच्चों और कमजोर वयस्कों के अधिकारों की सुरक्षा की बात आती है।
केरल हाई कोर्ट ने विशेष जरूरतों वाली नाबालिग बेटियों को यूएई ले जाने की अनुमति दी
यह मामला तब सामने आया जब एक महिला ने कोर्ट से अपनी 11 और 8 वर्ष की बेटियों की हिरासत प्राप्त करने और उन्हें यूएई ले जाने की अनुमति मांगी, जहाँ वह वर्तमान में निवास करती और काम करती हैं। याचिकाकर्ता का दावा था कि उसकी बेटियाँ विशेष जरूरतों वाली हैं, और उनके लिए उनकी मां के साथ रहना और यूएई में शिक्षा प्राप्त करना सर्वोत्तम होगा। न्यायमूर्ति वी.जी. अरुण की पीठ ने इस मुद्दे की गंभीरता को समझते हुए और विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया।
कोर्ट ने अपने निर्णय में उल्लेख किया, “जब परिस्थितियाँ अनुकूल हों, तो संविधानिक अदालतों को भी पैरेन्ट्स पेट्रिया अधिकार क्षेत्र का उपयोग करना चाहिए ताकि कमजोर वयस्कों और नाबालिगों के हितों की रक्षा की जा सके। चूंकि इस मामले में नाबालिगों के हितों की सर्वोत्तम सेवा उनके मां के साथ निवास करने और यूएई में अपनी पढ़ाई जारी रखने से होगी, इसलिए याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई अनुमति दी जानी चाहिए।”
इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि कोर्ट ने बच्चों की भलाई और उनके भविष्य को प्राथमिकता दी है, और पैरेंट्स पेट्रिया के सिद्धांत का उपयोग करते हुए उनका हित सुनिश्चित किया है।
केरल हाई कोर्ट ने विशेष जरूरतों वाली बेटियों के साथ यूएई जाने की अनुमति दी
अधिवक्ता आनंद कल्याणकृष्णन ने याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व किया, जबकि अधिवक्ता आर. पद्मकुमारी ने प्रतिवादी का प्रतिनिधित्व किया। याचिकाकर्ता एक मां हैं जिनकी दो नाबालिग बेटियाँ हैं, जिनकी उम्र 11 और 8 वर्ष है। महिला ने कोर्ट से अपनी बेटियों को यूएई ले जाने की अनुमति मांगी, जहाँ वह वर्तमान में कार्यरत हैं। याचिकाकर्ता और प्रतिवादी संख्या 3 के बीच वैवाहिक विवाद के कारण, याचिकाकर्ता ने अपने पति के खिलाफ आईपीसी की धारा 498A और 323 के तहत एक आपराधिक शिकायत दर्ज की थी।
पारिवारिक विवाद और वैवाहिक समस्याओं के कारण, बच्चों ने पहले 60 दिन के पर्यटक वीजा पर याचिकाकर्ता के साथ यूएई में समय बिताया। हालांकि, शिक्षा प्राप्त करने के लिए बच्चों को निवास वीजा की आवश्यकता थी। इसके लिए, याचिकाकर्ता को या तो तीसरे प्रतिवादी से नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC) की आवश्यकता थी या कोर्ट के आदेश की आवश्यकता थी। प्रतिवादी संख्या 3 ने NOC देने से इंकार कर दिया, जिसके कारण याचिकाकर्ता ने कोर्ट में मौजूदा याचिका दायर की।
कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विचार किया। कोर्ट ने कहा, “भारतीय संविधान यह अनिवार्य करता है कि राज्य सभी नागरिकों को संविधान द्वारा гарантित अधिकारों को सुरक्षित करे और जहां नागरिक अपने अधिकारों को सुरक्षित और समर्थित नहीं कर सकते, वहां राज्य को हस्तक्षेप करना चाहिए और उन अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए।” इस आधार पर, कोर्ट ने याचिका को मंजूर कर लिया और याचिकाकर्ता को अपनी बेटियों को यूएई ले जाने की अनुमति दी, साथ ही उन्हें वीजा प्राप्त करने में सहायता प्रदान की।
इस निर्णय ने यह स्पष्ट किया कि कोर्ट बच्चों के हितों को प्राथमिकता देती है और उनके भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाने में संकोच नहीं करती है। यह निर्णय न केवल याचिकाकर्ता और उनकी बेटियों के लिए राहत लेकर आया, बल्कि यह न्यायपालिका के उस सिद्धांत को भी मजबूत करता है जो विशेष जरूरतों वाले बच्चों की सुरक्षा और उनके हितों की रक्षा के लिए पैरेंट्स पेट्रिया अधिकार क्षेत्र का उपयोग करता है।
Regards:- Adv.Radha Rani for LADY MEMBER EXECUTIVE in forthcoming election of Rohini Court Delhi












