KARNATAKA HC: कर्नाटका हाईकोर्ट ने भारतीय सेना के मद्रास इंजीनियरिंग ग्रुप पर राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) द्वारा ₹2.94 करोड़ का पर्यावरण जुर्माना लगाने का आदेश रद्द कर दिया। न्यायालय ने यह आदेश देते हुए कहा कि एनजीटी का यह आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है और यह अवैध एवं मनमाना है।
KARNATAKA HC: न्यायालय का निर्णय और आदेश
यह मामला एक रिट याचिका से संबंधित था, जिसमें मद्रास इंजीनियरिंग ग्रुप ने एनजीटी के आदेश को चुनौती दी थी। याचिका में यह तर्क दिया गया था कि एनजीटी ने पर्यावरण जुर्माना लगाने से पहले अपीलकर्ताओं को अपनी बात रखने का अवसर नहीं दिया, जो कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
कर्नाटका हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति एन.वी. अंजरिया और न्यायमूर्ति के.वी. अरविंद की पीठ ने इस पर विचार करते हुए कहा कि एनजीटी ने बिना सुनवाई के आदेश पारित किया। न्यायालय ने कहा, “यह आदेश केवल इस आधार पर रद्द किया गया है कि एनजीटी ने अपीलकर्ताओं को सुनवाई का अवसर नहीं दिया और इस प्रकार प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन किया।”
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यह मामला मद्रास इंजीनियरिंग ग्रुप और भारत सरकार द्वारा दायर किया गया था। 2016 में प्रकाशित “द हिन्दू” समाचार पत्र की एक रिपोर्ट के आधार पर एनजीटी ने 100 KLD STP में डिस्चार्ज मानकों का पालन न करने के कारण मद्रास इंजीनियरिंग ग्रुप पर पर्यावरण जुर्माना लगाया था। एनजीटी ने इंटरिम आदेश जारी करते हुए ₹2.94 करोड़ का जुर्माना लगाने का आदेश दिया था, जो बाद में स्थायी रूप से पुष्टि किया गया।
KARNATAKA HC: न्यायालय का आदेश और पहलू
हाईकोर्ट ने कहा कि एनजीटी ने अपीलकर्ताओं को बिना सुनवाई का अवसर दिए जुर्माना लगाया, जो कि उचित नहीं था। न्यायालय ने इस मामले को एनजीटी के पास वापस भेजते हुए कहा कि एनजीटी को मामले पर पुनः विचार करना चाहिए और जुर्माना लगाने या न लगाने का निर्णय उचित तरीके से करना चाहिए। साथ ही, कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि मद्रास इंजीनियरिंग ग्रुप को ₹1 करोड़ की राशि कर्नाटका राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में जमा करनी होगी।
इसके अलावा, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एनजीटी को इस मामले में न केवल मद्रास इंजीनियरिंग ग्रुप से सुनवाई का अवसर देना चाहिए, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी पक्षों की बातों को सही तरीके से सुना जाए और फिर पर्यावरण जुर्माना या अन्य कानूनी उपायों के बारे में फैसला किया जाए।
कर्नाटका हाईकोर्ट ने प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करते हुए यह कहा कि किसी भी मामले में संबंधित पक्ष को अपनी बात रखने का अवसर मिलना चाहिए। कोर्ट ने एनजीटी के इस फैसले की आलोचना की, जिसमें कानूनी रूप से तय की गई सुनवाई के बिना ही पर्यावरण जुर्माना लगाने का आदेश पारित किया गया। न्यायालय का यह आदेश न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता को बनाए रखने के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।
KARNATAKA HC: अदालत के आदेश का महत्व
यह निर्णय न्यायपालिका द्वारा प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के प्रति दृढ़ संकल्प को दर्शाता है, जिसमें सभी पक्षों को सुनवाई का अवसर देना अनिवार्य है। इसके साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया कि न्यायालयों को किसी भी निर्णय को सुनाने से पहले यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी पक्षों को उचित अवसर प्रदान किया गया हो।
इस आदेश से यह भी संदेश गया कि संस्थाओं और सरकारी अधिकारियों को अपने आदेशों में पारदर्शिता और न्यायिक प्रक्रिया के पालन का ध्यान रखना चाहिए।
कर्नाटका हाईकोर्ट ने इस मामले को पुनः एनजीटी के पास भेजते हुए कहा कि एनजीटी को इस मामले पर नए सिरे से विचार करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि दोनों पक्षों की बात सुनकर जुर्माना या अन्य दंड का निर्णय लिया जाए।
KARNATAKA HC: पक्षकारों की उपस्थिति
- पेटीशनर्स (भारत सरकार और मद्रास इंजीनियरिंग ग्रुप) की ओर से: अतिरिक्त महाधिवक्ता सामान्य (एएसजी) के. अरविंद कामत और केंद्रीय सरकारी वकील बी. प्रमोद।
- प्रतिवादियों (कर्नाटका राज्य सरकार और अन्य) की ओर से: सहायक महाधिवक्ता नीलौफर अखबर, अधिवक्ता कृषिका वैश्णव, ए. महेश चौधरी, और किरण बी.एस. ने कोर्ट में पक्ष रखा।
मामला: यूनियन ऑफ इंडिया व अन्य बनाम कर्नाटका राज्य सरकार व अन्य
न्यायालय संदर्भ: 2024: KHC: 48449-DB
यह मामला न्यायिक प्रणाली के महत्व को और मजबूत करता है, जिसमें किसी भी निर्णय को पारित करने से पहले हर पक्ष को उचित अवसर दिया जाना चाहिए और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिए।
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