KARNATAKA HC: नर्स को 120 दिन की चाइल्ड केयर लीव देने का आदेश दिया

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By headlineslivenews.com

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KARNATAKA HC: कर्नाटका हाईकोर्ट ने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) के आदेश को बरकरार रखते हुए एक नर्स को 120 दिन की चाइल्ड केयर लीव (CCL) देने का निर्देश दिया। इस फैसले में कोर्ट ने कहा कि एक स्तनपान कराने वाली मां का अपने बच्चे को स्तनपान कराना और उसके साथ समय बिताना एक संवैधानिक अधिकार है, जो उसके बच्चे के सही पालन-पोषण के लिए जरूरी है।

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कोर्ट ने राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान (NIMHANS) द्वारा दायर याचिका को खारिज किया, जिसमें उन्होंने इस आदेश को चुनौती दी थी।

KARNATAKA HC: प्रारंभिक मामला

यह मामला एक नर्स का था, जिसने अपनी बच्चे की देखभाल और स्तनपान की जिम्मेदारियों के कारण 120 दिन की चाइल्ड केयर लीव (CCL) का आवेदन किया था। हालांकि, NIMHANS ने इस आवेदन को अस्वीकार कर दिया, यह तर्क देते हुए कि इतने लंबे समय तक नर्स की अनुपस्थिति से आईसीयू के कार्य में विघ्न आ सकता है। इसके बाद, नर्स ने CAT से संपर्क किया, जहां से उसे CCL देने का आदेश मिला। इस आदेश के खिलाफ NIMHANS ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।

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KARNATAKA HC: कोर्ट का निर्णय

कर्नाटका हाईकोर्ट ने NIMHANS की याचिका खारिज करते हुए कहा कि एक स्तनपान कराने वाली मां का अपने बच्चे के साथ समय बिताने और उसे स्तनपान कराने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है। कोर्ट ने यह भी कहा कि भारत अंतरराष्ट्रीय संधियों का सदस्य है, जो महिलाओं और बच्चों के अधिकारों का संरक्षण करती हैं, और यह अधिकार सिर्फ मां का ही नहीं, बल्कि बच्चे का भी है, जिसे मां से स्तनपान प्राप्त करना चाहिए।

न्यायमूर्ति कृष्ण एस दीक्षित और न्यायमूर्ति सी. एम. जोशी की पीठ ने कहा, “भारत को कई अंतरराष्ट्रीय संधियों का सदस्य होने के नाते यह सुनिश्चित करना चाहिए कि स्तनपान कराने वाली मां को अपने बच्चे के साथ उचित समय बिताने का अधिकार मिले। यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित है, जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी देता है।

कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि स्तनपान का अधिकार एक मां और उसके बच्चे के बीच के संबंध को सुरक्षित करता है, और इसे किसी भी परिस्थिति में प्रभावित नहीं किया जा सकता।

KARNATAKA HC: NIMHANS का तर्क और कोर्ट की प्रतिक्रिया

NIMHANS ने हाईकोर्ट में यह तर्क प्रस्तुत किया था कि एक नर्स की लंबे समय तक अनुपस्थिति से आईसीयू के कामकाज में विघ्न उत्पन्न हो सकता है। उनका यह भी कहना था कि अगर एक नर्स को 120 दिन की लीव दी जाती है, तो यह संस्थान की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है।

हालांकि, कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि संस्थान में कुल 700 से अधिक नर्सें हैं, और उनमें से लगभग 70% महिलाएं हैं, तो एक नर्स की अनुपस्थिति से कोई बड़े व्यवधान का सामना नहीं करना पड़ेगा। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि NIMHANS एक राज्य के तहत कार्य करने वाली संस्था है और उसे आदर्श नियोक्ता के रूप में कार्य करना चाहिए।

कोर्ट ने यह भी कहा कि स्तनपान और बच्चे की देखभाल के मामले में नियोक्ता को यह अधिकार नहीं देना चाहिए कि वह किसी महिला कर्मचारी की मूलभूत जरूरतों की अनदेखी करे। “मां को यह निर्णय लेने का पूरा अधिकार है कि क्या बच्चे के लिए सबसे अच्छा है,” कोर्ट ने कहा। कोर्ट ने यह भी कहा कि NIMHANS को यह समझना चाहिए कि एक स्तनपान कराने वाली मां का अधिकार उसके बच्चे की भलाई के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, और यह अधिकार किसी भी नियोक्ता द्वारा कम नहीं किया जा सकता।

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KARNATAKA HC: न्यायालय की ओर से विचार

कोर्ट ने यह भी बताया कि अगर NIMHANS ने अपनी नर्स को CCL देने का निर्णय लिया होता, तो संस्थान की कार्यप्रणाली पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। कोर्ट ने कहा कि “अगर संस्थान को किसी महिला कर्मचारी की स्तनपान कराने और बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारियों को समझने में कठिनाई हो रही है, तो यह संस्थान की नीतियों की कमजोरी को दर्शाता है, न कि कर्मचारी के अधिकारों का उल्लंघन।”

आखिरकार, कोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि CAT का आदेश सही था और NIMHANS की याचिका को खारिज कर दिया। न्यायालय ने कहा कि यह मामला महिलाओं के अधिकारों और उनके बच्चों के लिए एक संवैधानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, और इसके परिणामस्वरूप, हाईकोर्ट ने CAT के आदेश को बरकरार रखा।

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मामला: राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान (NIMHANS) बनाम स. अनिता जोसेफ
कोर्ट की राय: न्यायमूर्ति कृष्ण एस दीक्षित और न्यायमूर्ति सी. एम. जोशी
प्रतिवादी के वकील: सुरज नायक
याचिकाकर्ता के वकील: प्रभाकर राव

निष्कर्ष: इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि स्तनपान और बच्चे की देखभाल का अधिकार मां का मौलिक अधिकार है, और इसे किसी भी हालत में नकारा नहीं जा सकता। अदालत ने इसे संवैधानिक रूप से सुरक्षित माना और नियोक्ता से यह उम्मीद की कि वे महिला कर्मचारियों के इस अधिकार का सम्मान करें।

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JUDGES ON LEAVE

Regards:- Adv.Radha Rani for LADY MEMBER EXECUTIVE in forthcoming election of Rohini Court Delhi✌🏻

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