KERALA HC: केरल हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498A के तहत पति के रिश्तेदारों पर क्रूरता के आरोपों को बिना उचित जांच के खारिज नहीं किया जा सकता। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि सामान्य और व्यापक आरोप अपराध साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं, लेकिन जहां ठोस और सटीक आरोप लगाए गए हों, वहां प्रत्येक मामले की जांच अनिवार्य है।
जस्टिस ए. बदरुद्दीन की एकल पीठ ने इस मामले पर विचार करते हुए कहा कि आरोपों को केवल अनुमान के आधार पर झूठा मान लेना न्याय के सिद्धांतों के विपरीत होगा।
KERALA HC: कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी
हाईकोर्ट ने कहा, “यह देखा गया है कि पति के रिश्तेदारों को अक्सर सामान्य आरोपों के आधार पर अभियोजन में घसीटा जाता है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया जाता कि उनका क्या विशेष योगदान था। हालांकि, यह कहना उचित नहीं होगा कि पति के रिश्तेदारों पर लगाए गए सभी आरोप झूठे होते हैं। ऐसे मामलों में आरोपों की गंभीरता और सटीकता का मूल्यांकन किया जाना चाहिए।
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अदालत ने यह भी कहा कि व्यापक और सामान्य आरोपों के आधार पर अभियोजन चलाने का औचित्य नहीं बनता, लेकिन जहां विशिष्ट आरोप मौजूद हों, वहां सुनवाई जरूरी है।
इस मामले में शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि उनकी शादी 2005 में हुई थी, लेकिन विवाह के बाद उन्हें पति, सास और देवर द्वारा क्रूरता का सामना करना पड़ा। शिकायत में कहा गया कि पति शराब का सेवन करता था और अन्य आरोपियों के साथ मिलकर उसे शारीरिक रूप से प्रताड़ित करता था। शिकायतकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि उन्हें नए घर से बाहर निकालने के लिए मजबूर किया गया और घर की चाबी सास को सौंपने का दबाव डाला गया।
इसके अलावा, शिकायतकर्ता ने दावा किया कि आरोपी इस बात से नाराज थे कि उनके माता-पिता उनके साथ रह रहे थे। इससे नाराज होकर आरोपियों ने मौखिक और शारीरिक उत्पीड़न किया। शिकायत में यह भी कहा गया कि सास और देवर ने धमकियां दीं और उनके साथ दुर्व्यवहार किया।
KERALA HC: अदालत की व्याख्या
हाईकोर्ट ने मामले में सास और देवर के खिलाफ लगाए गए ठोस आरोपों पर गौर किया और पाया कि शिकायतकर्ता द्वारा लगाए गए आरोप विशिष्ट और गंभीर हैं। अदालत ने स्पष्ट किया कि जब आरोप स्पष्ट और सटीक हों, तो कार्यवाही को खारिज करना उचित नहीं है। इसके विपरीत, ऐसे मामलों में ट्रायल अनिवार्य है।
कोर्ट ने कहा, “जब पति के रिश्तेदारों के खिलाफ लगाए गए आरोप स्पष्ट और ठोस हों, तो ट्रायल जरूरी है। इस स्थिति में, कार्यवाही को रद्द करने की याचिका सफल नहीं हो सकती।”
हाईकोर्ट ने इस मामले में कार्यवाही रद्द करने की याचिका को खारिज कर दिया और निर्देश दिया कि सास और देवर को ट्रायल का सामना करना होगा। हालांकि, सास की मृत्यु हो चुकी है, जिसके कारण उनके खिलाफ मामला समाप्त कर दिया गया। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि आरोपियों को ट्रायल के दौरान अपने बचाव के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान किया जाएगा।
अदालत ने अपने आदेश में कहा, “इस मामले में, शिकायतकर्ता द्वारा दी गई शिकायत और अतिरिक्त बयान के आधार पर, यह स्पष्ट है कि दूसरे याचिकाकर्ता (तीसरे आरोपी) के खिलाफ आईपीसी की धारा 498A और धारा 506(i) के तहत अपराध का आरोप लगाया गया है। इस प्रकार, कार्यवाही को रद्द करने की याचिका अस्वीकार की जाती है और आरोपी को ट्रायल का सामना करना होगा।”
KERALA HC: प्रासंगिक कानूनी सिद्धांत
आईपीसी की धारा 498A के तहत, पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा महिला के साथ क्रूरता करना एक गंभीर अपराध है। इसमें मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक उत्पीड़न शामिल है। हालांकि, अदालतों ने कई मामलों में यह देखा है कि इस प्रावधान का दुरुपयोग भी किया गया है। इसी कारण, न्यायालय ने यह महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा कि आरोपों की सटीकता का गहराई से मूल्यांकन करना जरूरी है।
वी. कार्त्यायनी बनाम केरल राज्य
[Neutral Citation No. 2025:KER:3684]
अधिवक्ता की उपस्थिति:
- याचिकाकर्ता: अधिवक्ता टी.के. विपिनदास
- उत्तरदाता: लोक अभियोजक (पीपी) जिबू टी.एस. और अधिवक्ता एस. अरुणकुमार
इस फैसले के माध्यम से केरल हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि पति के रिश्तेदारों पर लगाए गए आरोपों की गंभीरता और सटीकता का परीक्षण आवश्यक है। सामान्य और व्यापक आरोपों के आधार पर कार्यवाही को खारिज करना न केवल अन्यायपूर्ण होगा, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया के मूलभूत सिद्धांतों के भी विरुद्ध होगा। अदालत का यह फैसला ऐसे मामलों में दिशा-निर्देश के रूप में कार्य करेगा, जहां रिश्तेदारों को आरोपित किया जाता है।