Kerala High Court ने हाल ही में एक महिला के अधिकारों की सुरक्षा करते हुए एक बड़ा फैसला सुनाया है।
अदालत ने कहा है कि पति की मौत हो जाने के बाद भी पत्नी को उसके वैवाहिक घर यानी पति के घर से नहीं निकाला जा सकता। पत्नी को वहां रहना सुरक्षित और उसका अधिकार है। यह फैसला महिलाओं के लिए घरेलू हिंसा से बचाव के कानून के तहत दिया गया है, जो उनकी सुरक्षा और सम्मान को सुनिश्चित करता है।
Kerala High Court: साझा घर में प्रवेश और रहने से रोका जाना
यह मामला एक विधवा महिला का था, जिसने अपने ससुराल वालों पर आरोप लगाया था कि वे उसे और उसके बच्चों को उस घर से जबरन बाहर निकालने की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें वह अपने मर चुके पति के साथ रहती थी। महिला ने घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 (जिसे डीवी एक्ट भी कहा जाता है) के तहत न्यायालय से मदद मांगी।
उसने बताया कि उसके ससुराल वाले उसे उस घर में प्रवेश करने नहीं देते और उसे शांतिपूर्ण ढंग से रहने नहीं देते। महिला ने यह भी कहा कि यह उनके द्वारा किया गया घरेलू हिंसा का एक रूप है।
Kerala High Court: ससुराल वालों का तर्क
इस मामले में ससुराल वालों ने दावा किया कि महिला ने पति की मौत के बाद से अपने माता-पिता के घर में रहना शुरू कर दिया है। इसलिए उनका कहना था कि महिला का उनके साथ कोई घरेलू संबंध नहीं रहा और इस वजह से वह घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत “पीड़ित व्यक्ति” नहीं मानी जा सकती। उनका यह भी तर्क था कि कोई घरेलू हिंसा नहीं हुई और इसलिए महिला को कोई राहत नहीं दी जानी चाहिए।
निचली अदालत का फैसला और उच्च न्यायालय का रुख
शुरुआत में ट्रायल कोर्ट ने महिला की याचिका को खारिज कर दिया था, लेकिन सत्र न्यायालय ने इस फैसले को पलट दिया। सत्र न्यायालय ने पाया कि महिला को साझा घर से बेदखल करने का प्रयास वास्तव में घरेलू हिंसा का ही एक रूप है। अदालत ने ससुराल वालों को आदेश दिया कि वे महिला और उसके बच्चों को उस घर में रहने से रोकें नहीं।
इसके बाद केरल हाईकोर्ट ने भी सत्र न्यायालय के आदेश को सही मानते हुए महिला के पक्ष में फैसला सुनाया। हाईकोर्ट ने साफ कहा कि पति की मृत्यु के बाद भी महिला को उसके वैवाहिक घर से बाहर नहीं निकाला जा सकता।
घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 17 का महत्व
हाईकोर्ट ने घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 17 पर जोर दिया। यह धारा हर महिला को अपने “साझा घर” में रहने का अधिकार देती है। चाहे वह घर महिला की खुद की संपत्ति हो या न हो, इसका मतलब यह हुआ कि पति के घर में पत्नी को रहने का अधिकार होता है, भले ही वह कानूनी मालिक न हो।
कोर्ट ने यह भी बताया कि यह अधिकार महिलाओं की सुरक्षा और गरिमा को बनाए रखने के लिए जरूरी है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि महिला को उसके वैवाहिक घर से जबरन निकाला न जाए, जिससे वह बेघर या असुरक्षित न हो जाए।
सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का हवाला
केरल हाईकोर्ट ने 2022 में आए एक सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि पीड़ित महिला को राहत मांगने के लिए अपने पति या ससुराल वालों के साथ उसी घर में रहना जरूरी नहीं है। अगर उसका साझा घर में रहने का अधिकार है, तो वह घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत अपने अधिकार का इस्तेमाल कर सकती है।
इस फैसले ने साफ कर दिया कि महिला का अधिकार उसके निवास स्थान से जुड़ा है, न कि सिर्फ यह कि वह वहां फिलहाल रह रही हो या नहीं।
महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा
Kerala High Court का यह फैसला महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिहाज से बहुत अहम माना जा रहा है। कई बार घरेलू हिंसा के मामलों में महिलाओं को उनके घर से बाहर निकाल दिया जाता है, जिससे वे न केवल बेघर होती हैं, बल्कि उनकी सुरक्षा और सम्मान भी खतरे में पड़ जाता है। इस फैसले ने इस स्थिति में सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है।
फैसले ने यह भी स्पष्ट किया कि घरेलू हिंसा केवल शारीरिक हमला नहीं होता, बल्कि घर से बाहर निकालना या रहने में बाधा डालना भी घरेलू हिंसा का एक रूप है, जिसे कानून के तहत सजा मिलनी चाहिए।
फैसला क्यों जरूरी था?
भारतीय समाज में अक्सर महिला की स्थिति कमजोर होती है, खासकर जब पति की मौत हो जाती है। कई बार पति के परिवार की तरफ से महिला को उसका हक नहीं दिया जाता, और उसे घर से बेदखल कर दिया जाता है। इससे महिला और उसके बच्चों की जिंदगी बुरी तरह प्रभावित होती है।
इसलिए घरेलू हिंसा अधिनियम जैसे कानून बनाए गए हैं ताकि महिलाओं को सुरक्षा और उनके अधिकार मिले। इस फैसले ने इस कानून को और मजबूत किया है और साफ किया है कि पत्नी का अपने वैवाहिक घर में रहने का अधिकार हमेशा कायम रहेगा।
महिलाओं के अधिकारों की मजबूती
Kerala High Court का यह फैसला महिलाओं के अधिकारों को मजबूत करता है और घरेलू हिंसा के खिलाफ एक बड़ा संदेश देता है। यह महिलाओं को यह भरोसा देता है कि वे अपने वैवाहिक घर में रह सकती हैं, भले ही पति न रहे हों। कानून महिलाओं की गरिमा, सुरक्षा और सम्मान की रक्षा करता है, और किसी को भी बिना वजह उन्हें घर से बाहर निकालने का अधिकार नहीं है।
यह फैसला पूरे देश में महिलाओं के लिए एक मिसाल है, जो घरेलू हिंसा के खिलाफ लड़ाई को और भी मजबूत करेगा।