MADHYA PRADESH HC: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा कि भविष्य में हाईकोर्ट द्वारा आयोजित सभी चयन परीक्षाओं में मेरिट के आधार पर आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को अनारक्षित श्रेणी के पदों पर माइग्रेशन का लाभ मिलेगा। यह आदेश अनुसूचित जाति, एवं जनजाति अधिकारी कर्मचारी संघ द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई के बाद दिया गया।
कोर्ट ने इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को चयन के सभी चरणों में अनारक्षित श्रेणी के पदों पर माइग्रेशन का लाभ दिया जाना चाहिए। इससे आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को उनके मेरिट के आधार पर सही स्थान मिल सकेगा, जिससे चयन प्रक्रिया में निष्पक्षता और समानता को बढ़ावा मिलेगा।
मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति विवेक जैन की पीठ ने इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट के फैसले दीपेन्द्र यादव बनाम मध्यप्रदेश राज्य का संदर्भ लिया। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को स्वीकार किया था कि आरक्षित श्रेणी के मेरिट उम्मीदवारों को अनारक्षित श्रेणी के पदों पर लाभ मिलना चाहिए, ताकि उनके अधिकारों का सही तरीके से सम्मान हो सके। हाईकोर्ट ने भी इसे अपनी पीठ की समन्वित पीठ के फैसले किशोर चौधरी बनाम मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के आधार पर पुष्टि की।
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MADHYA PRADESH HC: याचिका का निष्कर्ष और न्यायिक दृष्टिकोण
याचिकाकर्ता का तर्क था कि प्रारंभिक परीक्षा में आरक्षित श्रेणी के मेरिट उम्मीदवारों को अनारक्षित श्रेणी के पदों पर नहीं रखा गया था, जबकि केवल अंतिम परिणामों में यह प्रक्रिया लागू की गई। इससे आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों के साथ भेदभाव हुआ और उनके अधिकारों का उल्लंघन हुआ, जो संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत सुरक्षित हैं।
कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि प्रारंभिक परीक्षा में ही मेरिट के आधार पर आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को अनारक्षित पदों पर रखा जाना चाहिए। ऐसा करने से आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों के अवसरों में वृद्धि होगी और चयन प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता और निष्पक्षता आएगी।
MADHYA PRADESH HC: सुप्रीम कोर्ट का निर्णय और हाईकोर्ट की व्याख्या
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विस्तृत उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को उनके मेरिट के आधार पर अनारक्षित श्रेणी के पदों पर स्थान दिया जा सकता है, जिससे उनकी चयन प्रक्रिया में समान अवसर सुनिश्चित होते हैं। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह आदेश केवल भविष्य की भर्ती परीक्षाओं के लिए लागू होगा और जिन परीक्षाओं का आयोजन पहले हो चुका है, उन पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में यह भी स्पष्ट किया कि इस निर्णय का असर केवल उन परीक्षाओं पर होगा जो भविष्य में आयोजित की जाएंगी। जो भी भर्ती परीक्षाएं पहले से चल रही हैं, उनमें यह बदलाव लागू नहीं होगा। इसका मतलब यह है कि जो परीक्षाएं पहले हो चुकी हैं या जिनके परिणाम घोषित किए जा चुके हैं, उनके चयन प्रक्रिया पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
MADHYA PRADESH HC: समाजिक और संवैधानिक संदर्भ
यह निर्णय संविधान के तहत आरक्षित श्रेणियों के अधिकारों को सही तरीके से सम्मानित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। भारतीय संविधान में समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14) और अवसरों की समानता (अनुच्छेद 16) सुनिश्चित करने के लिए आरक्षित श्रेणियों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं।
इस आदेश से यह सुनिश्चित होगा कि आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को अनारक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों के समान अवसर मिलें, यदि वे मेरिट के आधार पर योग्य होते हैं। इससे चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता और न्यायसंगत अवसरों का सृजन होगा।
यह फैसला एक महत्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत करता है कि कैसे न्यायालयों का कार्य समाज के विभिन्न वर्गों के बीच समानता और निष्पक्षता को बढ़ावा देने के लिए कार्य करता है। यह निर्णय आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को भी न्यायसंगत अवसर देने के उद्देश्य से लिया गया है।
मामला: अनुसूचित जाति, एवं जनजाति अधिकारी कर्मचारी संघ बनाम मध्यप्रदेश हाईकोर्ट और अन्य (न्यूट्रल सिटेशन: 2024:MPHC-JBP:57055)
इस प्रकार, मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का यह आदेश आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा, जिससे चयन प्रक्रिया में अधिक समानता और निष्पक्षता सुनिश्चित की जाएगी।
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