POCSO act 2024: मद्रास हाईकोर्ट ने एक अहम निर्णय में कहा है कि पुलिस को यौन अपराधों से जुड़े मामलों में केवल पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज करने की बजाय उन वास्तविक आरोपियों का पता लगाना चाहिए, जिन्होंने संवेदनशील वीडियो और जानकारी लीक की है। अदालत ने स्पष्ट किया कि पत्रकारों और यूट्यूबर्स पर इस तरह के मामलों को दर्ज करना प्रेस की स्वतंत्रता के अधिकार पर सीधा आघात है। प्रेस की स्वतंत्रता एक संवैधानिक अधिकार है और इसे किसी भी हालत में खतरे में नहीं डाला जा सकता।
यह मामला दो याचिकाओं पर आधारित था। पहली याचिका मद्रास हाईकोर्ट द्वारा स्वप्रेरणा से शुरू की गई थी, जो एक वकील की सिफारिश पर दायर की गई थी, जबकि दूसरी याचिका नाबालिग पीड़िता की मां द्वारा दायर की गई थी, जिसमें उन्होंने हैबियस कॉर्पस याचिका के माध्यम से अपनी बेटी की सुरक्षा और उचित उपचार के लिए पुलिस पर कार्रवाई की मांग की थी।
POCSO act 2024: प्रेस की स्वतंत्रता और पुलिस की कार्रवाई पर सवाल
न्यायमूर्ति एस.एम. सुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति वी. शिवज्ञानम की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई की और कहा कि “पत्रकारों और यूट्यूबर्स के खिलाफ मामले दर्ज करने की प्रथा प्रेस की स्वतंत्रता पर एक खतरा है। यह स्वतंत्रता संविधान के तहत दी गई है और इसे बिना ठोस आधार के खतरे में नहीं डाला जा सकता।”
अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि जब किसी यौन अपराध से संबंधित कोई प्रकाशन सामने आता है, तो पुलिस को प्राथमिक रूप से उन व्यक्तियों का पता लगाना चाहिए, जिन्होंने पत्रकारों को वीडियो या जानकारी प्रदान की है, न कि केवल पत्रकारों के खिलाफ मामला दर्ज करना चाहिए।
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POCSO act 2024: याचिका का मूल मुद्दा
इस मामले में पीड़िता की मां ने एक हैबियस कॉर्पस याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने अदालत से अनुरोध किया था कि उनकी बेटी, जो एक नाबालिग बलात्कार पीड़िता है, को पुलिस द्वारा उत्पीड़न से बचाया जाए और उसे उचित चिकित्सा उपचार प्रदान किया जाए। याचिकाकर्ता ने अदालत से यह भी अनुरोध किया था कि पीड़िता और उसके परिवार को उचित सुरक्षा दी जाए और उन्हें उनके अधिकार दिलाए जाएं, जैसा कि POCSO अधिनियम, 2012 में निहित है।
अधिवक्ता ए.पी. सूर्यप्रकाशम ने अपने पत्र में इस बात का उल्लेख किया था कि पीड़िता की आयु मात्र 10 वर्ष है और उसके माता-पिता को पुलिस द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा था। उन्होंने यह भी बताया कि पीड़िता की मेडिकल जांच होनी चाहिए और उसे मानसिक स्वास्थ्य परामर्श दिया जाना चाहिए, साथ ही उचित मुआवजा भी दिया जाना चाहिए।
POCSO act 2024: पुलिस की लापरवाही पर अदालत की टिप्पणी
मद्रास हाईकोर्ट ने इस मामले में पुलिस की कार्यप्रणाली पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि पीड़िता और उसके माता-पिता के साथ जो व्यवहार पुलिस स्टेशन और अस्पताल में किया गया, वह पूरी तरह से POCSO अधिनियम के प्रावधानों और जांच प्रक्रिया के नियमों का उल्लंघन है।
अदालत ने कहा कि पुलिस ने जिस तरीके से इस मामले को संभाला, उसने कोर्ट के मन में गंभीर संदेह उत्पन्न कर दिए हैं। अदालत ने यह भी कहा कि पीड़िता और उसके परिवार ने पुलिस पर से अपना विश्वास खो दिया है, और यह विश्वास की हानि न्याय की प्रक्रिया में एक गंभीर बाधा है।
अदालत ने जोर देकर कहा, “न्याय को न केवल होना चाहिए, बल्कि उसे होते हुए दिखना भी चाहिए,” और इस मामले में पुलिस की कार्यवाही से यह सुनिश्चित नहीं हो सका कि पीड़िता को न्याय मिल रहा है। इसके आधार पर अदालत ने कहा कि मौजूदा स्थिति में तमिलनाडु राज्य पुलिस से मामले की जांच करवाना उचित नहीं है और इसलिए इस जांच को केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को स्थानांतरित करने का आदेश दिया गया।
POCSO act 2024: पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक मामले पर अदालत की नाराजगी
अदालत ने उन दो आपराधिक मामलों पर भी अपनी नाराजगी व्यक्त की, जो एक यूट्यूबर और एक पत्रकार के खिलाफ दर्ज किए गए थे। अदालत ने स्पष्ट किया कि पत्रकारों और यूट्यूबर्स ने केवल वही जानकारी प्रकाशित की है, जो उन्हें प्राप्त हुई थी। ऐसे में केवल उनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज करना न्याय के हित में नहीं है।
अदालत ने कहा कि पुलिस का यह दायित्व है कि वह उन वास्तविक आरोपियों का पता लगाए, जिन्होंने संवेदनशील जानकारी और वीडियो पत्रकारों को दिए थे, ताकि पूरे मामले की तह तक जाया जा सके। पुलिस को एक गहन जांच करनी चाहिए और उन लोगों को सामने लाना चाहिए, जो इस अपराध में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल थे।
POCSO act 2024: पीड़िता के परिवार को सुरक्षा देने का निर्देश
मद्रास हाईकोर्ट ने पुलिस की लापरवाही और गलत कार्यवाही पर नाराजगी जताते हुए यह भी आदेश दिया कि पीड़िता और उसके परिवार को पर्याप्त पुलिस सुरक्षा प्रदान की जाए, ताकि वे सुरक्षित और शांतिपूर्ण जीवन जी सकें। अदालत ने कहा कि पीड़िता और उसके परिवार को बिना किसी डर या दबाव के न्यायिक प्रक्रिया में सहयोग करने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।
मद्रास हाईकोर्ट का यह निर्णय इस बात का महत्वपूर्ण उदाहरण है कि कैसे संवेदनशील मामलों में न्यायिक प्रक्रिया के दौरान प्रेस की स्वतंत्रता और पत्रकारों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए। इस निर्णय से यह भी स्पष्ट होता है कि पुलिस को अपनी जांच प्रक्रिया को केवल पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज करने तक सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि उन व्यक्तियों को भी चिन्हित करना चाहिए, जो इस प्रकार की जानकारी और वीडियो लीक करने के लिए जिम्मेदार हैं।
अंततः, अदालत ने याचिकाओं का निपटारा करते हुए सभी पक्षों को निर्देश दिया कि वे इस मामले की निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करें और पीड़िता के परिवार को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करें।
मामला शीर्षक: स्वप्रेरणा बनाम पुलिस उप-आयुक्त और अन्य
उपस्थिति: याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता आर. संपथ कुमार, प्रतिवादियों की ओर से SPP हसन मोहम्मद जिन्ना और APP ई. राज तिलक












