PUSHPA पर बड़ा बयान: फिल्म निर्माता राम गोपाल वर्मा ने हाल ही में भारतीय फिल्म उद्योग, बॉलीवुड और साउथ इंडस्ट्री के बीच के अंतर और ‘पैन-इंडिया’ फिल्मों के उभरने पर अपनी राय रखी।
उन्होंने खासतौर पर अल्लू अर्जुन स्टारर ‘पुष्पा: द राइज’ की सफलता पर बात की और बताया कि हिंदी फिल्म निर्माता इस तरह की फिल्मों को बनाने में असमर्थ क्यों हैं। साथ ही, उन्होंने एक बड़े प्रड्यूसर द्वारा ‘पुष्पा’ को लेकर दिए गए विवादित बयान का भी जिक्र किया।
PUSHPA पर बड़ा बयान: हिंदी फिल्म निर्माताओं की सीमित सोच पर वर्मा की राय
राम गोपाल वर्मा ने पिंकविला को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि हिंदी फिल्म निर्माता ‘पुष्पा’ जैसी फिल्में नहीं बना सकते, क्योंकि उनकी संवेदनशीलता ऐसे विषयों को सूट नहीं करती। उन्होंने कहा कि बॉलीवुड के अधिकतर निर्माता और निर्देशक सिर्फ बांद्रा क्षेत्र तक सीमित हैं और उनकी सोच भी वहीं तक सीमित रह जाती है। दूसरी ओर, साउथ के निर्देशक और निर्माता जड़ों से जुड़े होते हैं, वे अधिक वास्तविकता से भरी कहानियों को प्रस्तुत करते हैं।
उन्होंने आगे कहा, “साउथ के डायरेक्टर्स, मैं नाम नहीं लूंगा, वे अंग्रेजी भी नहीं बोल सकते। वे बहुत ही साधारण हैं, बहुत ही जड़ों से जुड़े हुए हैं। वे इंटलेक्चुअल होकर बात नहीं करेंगे, लेकिन वे बड़े पैमाने पर दर्शकों से अधिक जुड़े हुए हैं, जो मुझे लगता है कि एक बॉलीवुड निर्देशक के लिए असंभव है।”
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‘पुष्पा’ पर बड़े प्रड्यूसर की विवादित टिप्पणी
राम गोपाल वर्मा ने इस इंटरव्यू के दौरान एक बड़े फिल्म प्रड्यूसर द्वारा ‘पुष्पा’ को लेकर कही गई बात भी साझा की। उन्होंने कहा कि जब ‘पुष्पा: द राइज’ रिलीज हुई थी, तब एक बड़े बॉलीवुड प्रड्यूसर ने कहा था कि ‘उत्तर भारत के दर्शक अल्लू अर्जुन के चेहरे पर उल्टी कर देंगे।’ इस बयान से यह जाहिर होता है कि बॉलीवुड के कुछ निर्माता नायक की पारंपरिक छवि को लेकर एक सीमित सोच रखते हैं।
वर्मा ने आगे कहा, “मुझे नहीं लगता कि इसका पैसे से कोई लेना-देना है, यह पूरी तरह से मानसिकता से जुड़ा हुआ है। बॉलीवुड के निर्माता को एक सिक्स-पैक वाला, बेहद खूबसूरत हीरो चाहिए, जबकि ‘पुष्पा’ का किरदार इससे अलग है। अब जब ‘पुष्पा: द राइज’ और ‘पुष्पा 2: द रूल’ इतनी बड़ी हिट साबित हो रही हैं, तो अब उन प्रड्यूसर को बुरे सपने आ रहे होंगे।”
बॉलीवुड और साउथ फिल्मों की शैली में अंतर
राम गोपाल वर्मा ने इस इंटरव्यू में यह भी बताया कि बॉलीवुड और साउथ फिल्म इंडस्ट्री में एक महत्वपूर्ण अंतर उनकी संवेदनशीलता और कहानी कहने के तरीके में है। बॉलीवुड में कहानी को अत्यधिक महत्व दिया जाता है, जबकि साउथ के निर्देशक मुख्य रूप से किरदार और दृश्यों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
उन्होंने कहा, “बॉलीवुड सितारे हमेशा ‘सितारों’ का किरदार निभाते हैं, वे किरदार को वास्तविक रूप में निभाने की कोशिश नहीं करते। अगर वे बदलाव भी करते हैं, तो उसमें भी एक स्टारडम का एहसास बना रहता है। दूसरी ओर, साउथ के निर्देशक सीन पर ज्यादा ध्यान देते हैं, उन्हें कहानी की ज्यादा परवाह नहीं होती। एक बड़े एक्टर ने एक बार मुझसे कहा था- ‘मैं कभी कहानी नहीं सुनता, मेरा सिर्फ एक ही सवाल होता है, मेरी एंट्री क्या है?'”
पैन-इंडिया फिल्मों की सफलता का कारण
राम गोपाल वर्मा ने आगे पैन-इंडिया फिल्मों की सफलता के पीछे की वजह पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि इन फिल्मों का दर्शकों से सीधा जुड़ाव होता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि बॉलीवुड के ज्यादातर निर्देशक और अभिनेता केवल महानगरों की जीवनशैली पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जबकि साउथ के फिल्म निर्माता ग्रामीण इलाकों और आम जनता की सोच को समझते हैं। यही वजह है कि ‘पुष्पा’ जैसी फिल्में पूरे भारत में सफल हो जाती हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि बॉलीवुड ने काफी समय से एक विशेष फार्मूले पर चलना शुरू कर दिया है, जहां वे स्टार पावर के आधार पर फिल्मों को बेचने की कोशिश करते हैं, जबकि साउथ के निर्माता और निर्देशक कहानी को प्राथमिकता देते हैं। यही कारण है कि साउथ की फिल्में तेजी से पूरे भारत में अपनी पहचान बना रही हैं।
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राम गोपाल वर्मा ने बताया हिंदी सिनेमा का फॉर्मूला फेल होने की वजह
वर्मा ने यह भी कहा कि बॉलीवुड को अब अपनी सोच में बदलाव लाने की जरूरत है। यदि हिंदी फिल्म निर्माता भी जमीनी हकीकत से जुड़ें और कहानियों को वास्तविकता के करीब लाएं, तो वे भी ऐसी पैन-इंडिया फिल्में बना सकते हैं। उन्होंने कहा, “अब समय आ गया है कि बॉलीवुड भी उन फिल्मों पर ध्यान दे जो सिर्फ मल्टीप्लेक्स के दर्शकों के लिए न बनाई जाएं, बल्कि देश के हर कोने में रहने वाले दर्शकों से जुड़ सकें।”
बॉलीवुड को अपनी सोच बदलने की जरूरत
राम गोपाल वर्मा के इस इंटरव्यू ने बॉलीवुड और साउथ इंडस्ट्री के बीच के अंतर को स्पष्ट रूप से उजागर किया है। उन्होंने बताया कि क्यों हिंदी फिल्म निर्माता ‘पुष्पा’ जैसी फिल्में बनाने में सक्षम नहीं हैं और किस तरह बॉलीवुड को अपनी रणनीति बदलने की जरूरत है। उनके इस बयान से यह भी स्पष्ट होता है कि हिंदी फिल्म उद्योग को अपनी सीमित सोच से बाहर निकलकर अधिक व्यापक दृष्टिकोण अपनाना होगा, ताकि वे भी वैश्विक स्तर पर पहचान बना सकें।