BJP सरकार का आदेश: नई दिल्ली- दिल्ली में सरकार बदलते ही प्रशासनिक फेरबदल की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है।
भारतीय जनता पार्टी (BJP) की नई सरकार के गठन के बाद सर्विसेज विभाग ने आदेश जारी कर दिया है, जिसके तहत पूर्व मुख्यमंत्री और मंत्रियों के पर्सनल स्टाफ को पदमुक्त कर दिया गया है। यह आदेश को-टर्मिनस आधार पर नियुक्त कर्मचारियों की सेवा समाप्त करने के लिए दिया गया है। अब नवनिर्वाचित मंत्रियों को अपने कार्यालयों के लिए नए स्टाफ की नियुक्ति करने का अधिकार होगा।
BJP सरकार का आदेश: प्रशासनिक फेरबदल की प्रक्रिया शुरू
BJP सरकार का आदेश: दिल्ली में सत्ता परिवर्तन के साथ ही प्रशासनिक स्तर पर भी बदलाव देखने को मिल रहे हैं। सर्विसेज विभाग द्वारा जारी आदेश में स्पष्ट किया गया है कि पिछली सरकार के मंत्रियों और मुख्यमंत्री के साथ कार्यरत को-टर्मिनस स्टाफ की नियुक्तियां स्वतः समाप्त हो जाती हैं। यह नियुक्तियां अस्थायी और व्यक्तिगत आधार पर होती हैं, जो मंत्री के कार्यकाल तक सीमित रहती हैं।
सर्विसेज विभाग ने यह आदेश सभी संबंधित अधिकारियों, मंत्रियों और विभागों को भेज दिया है। आदेश में यह भी कहा गया है कि पिछली सरकार के दौरान जिन अधिकारियों और कर्मचारियों को विभिन्न विभागों, निगमों, बोर्डों और स्वायत्त निकायों में प्रतिनियुक्ति पर भेजा गया था, उन्हें तुरंत अपने मूल विभागों में वापस लौटने के निर्देश दिए गए हैं।
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नए मंत्रियों को मिलेगा स्टाफ नियुक्त करने का अधिकार
बीजेपी सरकार के आने के बाद नई टीम के साथ प्रशासनिक कार्यों को गति देने के लिए यह कदम उठाया गया है। नए मंत्रियों को अपने कार्यालयों में कामकाज के लिए स्टाफ नियुक्त करने की स्वतंत्रता दी गई है। इससे सरकार की कार्यप्रणाली सुचारू रूप से संचालित हो सकेगी।
पिछली सरकार के समय कई कर्मचारियों की नियुक्ति को-टर्मिनस आधार पर की गई थी, जिसका अर्थ है कि उनकी सेवा संबंधित मंत्री के कार्यकाल तक ही सीमित थी। जैसे ही नई सरकार बनी, उनकी नियुक्ति स्वतः समाप्त हो गई। सर्विसेज विभाग ने स्पष्ट किया कि यह एक सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया है, जिसे हर सरकार के गठन के साथ अपनाया जाता है।
सरकार के फैसले के पीछे की वजह
सर्विसेज विभाग ने इस निर्णय को केंद्रीय कैबिनेट सचिवालय के दिशा-निर्देशों के अनुरूप बताया है। दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि जब भी नई सरकार बनती है, तो पुराने मंत्रियों के व्यक्तिगत स्टाफ की नियुक्तियां समाप्त हो जाती हैं। यह नियम सुनिश्चित करता है कि नई सरकार अपनी पसंद के अनुसार प्रशासनिक ढांचे का पुनर्गठन कर सके।
हाल ही में सर्विसेज विभाग ने सभी विभागों से जानकारी मांगी थी कि पिछली सरकार ने कितने कर्मचारियों को को-टर्मिनस और कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर नियुक्त किया था। इस रिपोर्ट के आधार पर ही गुरुवार को आदेश जारी किया गया। आदेश में यह भी उल्लेख किया गया है कि जो कर्मचारी अभी भी उन पदों पर कार्यरत हैं, वे तुरंत कार्यमुक्त हो जाएं और संबंधित विभागों को इसकी जानकारी दें।
नई सरकार बनते ही पुराने स्टाफ की विदाई
इस प्रशासनिक फैसले पर विपक्षी दलों ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। आम आदमी पार्टी (AAP) ने इस कदम को सरकार की जल्दबाजी बताया और कहा कि इस तरह की कार्रवाई से सरकारी कार्यों में अस्थिरता आ सकती है। AAP के नेताओं ने आरोप लगाया कि बीजेपी सरकार राजनीतिक बदले की भावना से काम कर रही है।
वहीं, बीजेपी ने इस फैसले को प्रशासनिक प्रक्रिया का हिस्सा बताया और कहा कि यह कोई नया कदम नहीं है। पार्टी के अनुसार, हर सरकार अपने नए मंत्रियों को स्वतंत्र रूप से काम करने का अवसर देने के लिए यह प्रक्रिया अपनाती है।
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AZAD SAMAJ PARTY KANSHIRAM DELHI | DELHI VIDHANSABHA ELECTION | CHANDER SHEKHAR AZAD
प्रशासनिक सुचारूकरण की दिशा में कदम
बीजेपी सरकार के इस निर्णय से साफ है कि वह अपने कार्यकाल की शुरुआत से ही प्रशासनिक व्यवस्था को मजबूत और संगठित करना चाहती है। सरकार का मानना है कि पुराने कर्मचारियों की सेवा समाप्त कर नए मंत्रियों को उनकी पसंद के स्टाफ के साथ काम करने का मौका देना जरूरी है।
साथ ही, सरकार की प्राथमिकता प्रशासनिक कार्यों में पारदर्शिता और दक्षता बढ़ाना है। इससे नई नीतियों और योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करने में मदद मिलेगी। यह देखा जाना बाकी है कि इस फैसले का प्रशासनिक और राजनीतिक प्रभाव किस रूप में सामने आता है।
पुराने मंत्रियों के स्टाफ की नियुक्तियां समाप्त
दिल्ली में बीजेपी सरकार के गठन के साथ ही प्रशासनिक फेरबदल की प्रक्रिया तेज हो गई है। सर्विसेज विभाग द्वारा जारी आदेश के तहत पुराने मंत्रियों और मुख्यमंत्री के पर्सनल स्टाफ की नियुक्तियां समाप्त कर दी गई हैं। अब नए मंत्रियों को अपने कार्यालयों के लिए नया स्टाफ नियुक्त करने का अधिकार मिलेगा। यह एक नियमित प्रशासनिक प्रक्रिया है, जिसे हर सरकार अपनाती है।
हालांकि, इस फैसले को लेकर राजनीतिक बहस भी तेज हो गई है। विपक्ष इसे सरकार की जल्दबाजी मान रहा है, जबकि बीजेपी इसे प्रशासनिक दक्षता बढ़ाने की दिशा में उठाया गया कदम बता रही है।












