SC का अहम फैसला: नई दिल्ली-सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि किसी मुकदमे में पारित समझौता डिक्री को कोई पक्षकार चुनौती देना चाहता है, तो उसे पहले ट्रायल कोर्ट से संपर्क करना होगा।
वह सीधे अपीलीय अदालत में जाकर डिक्री को चुनौती नहीं दे सकता। शीर्ष अदालत ने कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के तहत Order XLIII Rule 1-A स्वतंत्र रूप से अपील का अधिकार नहीं देता।
यह फैसला जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले की खंडपीठ ने सुनाया, जब वे एक अपील पर विचार कर रहे थे, जिसमें अपीलकर्ता ने समझौते की जानकारी के अभाव का दावा करते हुए अपीलीय अदालत (हाईकोर्ट) के समक्ष सीधे चुनौती दी थी।
SC का अहम फैसला: समझौता डिक्री क्या होती है?
समझौता डिक्री वह कानूनी आदेश होता है जो अदालत द्वारा पारित किया जाता है, जब मुकदमे के पक्षकार आपस में किसी विवाद का समाधान कर लेते हैं और अदालत उनके बीच हुए समझौते को रिकॉर्ड कर लेती है। CPC के Order XXIII Rule 3 में इसका विस्तृत प्रावधान दिया गया है। इस नियम के अनुसार, यदि अदालत को यह संतुष्टि होती है कि पक्षों ने समझौते से मुकदमे का निपटारा कर लिया है, तो वह उस समझौते के आधार पर डिक्री पारित कर सकती है।
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सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
शीर्ष अदालत ने दो टूक कहा कि यदि कोई पक्ष यह दावा करता है कि कोई वैध समझौता नहीं हुआ था या उसे जानकारी के बिना डिक्री पारित कर दी गई, तो उसे पहले ट्रायल कोर्ट के समक्ष Order XXIII Rule 3 के तहत आपत्ति उठानी होगी। ट्रायल कोर्ट यह तय करेगा कि क्या वास्तव में कोई वैध समझौता था या नहीं।
न्यायालय ने कहा:
“एक पक्ष जो समझौते से इनकार करता है, उसे सीधे उच्च अदालत में अपील नहीं करनी चाहिए, बल्कि पहले ट्रायल कोर्ट के समक्ष आपत्ति दर्ज करानी चाहिए। अगर ट्रायल कोर्ट आपत्ति को खारिज कर देता है और प्रतिकूल डिक्री पारित करता है, तभी धारा 96 (1) CPC के तहत पहली अपील संभव होगी।”
समझौते की जानकारी नहीं होने का दावा करते हुए अपील दायर
इस मामले में अपीलकर्ता ने गुजरात हाईकोर्ट के समक्ष Order XLIII Rule 1-A का हवाला देकर अपील दायर की थी। उसने दावा किया कि उसे समझौते की जानकारी नहीं थी और बिना उसकी सहमति के डिक्री पारित कर दी गई। एकल न्यायाधीश ने, डिवीजन बेंच के परस्पर विरोधी विचारों को देखते हुए, तीन प्रश्नों को एक बड़ी बेंच को संदर्भित किया। बड़ी बेंच ने निर्णय दिया कि किसी भी पक्ष को पहले ट्रायल कोर्ट के समक्ष Order XXIII Rule 3 के तहत आपत्ति करनी होगी, न कि सीधे अपीलीय अदालत में आना चाहिए।
बड़ी बेंच की राय के आधार पर, एकल न्यायाधीश ने अपीलकर्ता की अपील खारिज कर दी थी। इसके बाद अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले ने निर्णय लिखते हुए कहा कि:
- Order XLIII Rule 1-A स्वतंत्र अपील का स्रोत नहीं है। यह केवल तभी लागू होता है जब कोई अन्य वैध अपील पहले से मौजूद हो।
- CPC की धारा 96(3) के अनुसार, सहमति से पारित डिक्री के खिलाफ अपील प्रतिबंधित है। यदि कोई पक्ष सहमति को अस्वीकार करता है, तो उसे ट्रायल कोर्ट के समक्ष Order XXIII Rule 3 के अंतर्गत आपत्ति उठानी होगी।
- Order XXIII Rule 3-A स्पष्ट रूप से कहता है कि सहमति डिक्री को अलग मुकदमे के माध्यम से चुनौती नहीं दी जा सकती।
- यदि ट्रायल कोर्ट समझौते की वैधता पर निर्णय करता है और प्रतिकूल निर्णय देता है, तभी पक्षकार धारा 96(1) के तहत पहली अपील कर सकता है और उस अपील में Order XLIII Rule 1-A के तहत समझौते की वैधता को मुद्दा बना सकता है।
कोर्ट ने कहा:
“Order XLIII Rule 1-A कोई स्वतंत्र अपील नहीं बनाता। यह केवल मौजूदा अपीलों के भीतर एक तरीका प्रदान करता है कि अपीलकर्ता डिक्री के आधारभूत आदेश को चुनौती दे सकता है।”
समझौता डिक्री पर सीधा प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि समझौता डिक्री से जुड़े विवादों में, न्यायिक अनुशासन और प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है। यदि हर असंतुष्ट पक्षकार सीधे अपीलीय अदालत का रुख करेगा, तो इससे न्यायिक प्रक्रिया अस्त-व्यस्त हो जाएगी और ट्रायल कोर्ट की भूमिका कमजोर पड़ जाएगी।
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तीसरे पक्ष का क्या अधिकार है?
कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण स्थिति को भी स्पष्ट किया — यदि कोई व्यक्ति, जो मुकदमे में पक्षकार नहीं था, लेकिन उसकी कानूनी स्थिति या अधिकार समझौता डिक्री से प्रभावित हुए हैं, तो वह व्यक्ति पहली अपील कर सकता है। हालांकि, उसे भी पहले ट्रायल कोर्ट की प्रक्रिया का पालन करना होगा, जब तक कि उसे अपील की अनुमति न मिल जाए।
समझौता डिक्री के खिलाफ सीधे अपील नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने अपील को खारिज करते हुए गुजरात हाईकोर्ट की बड़ी बेंच के फैसले की पुष्टि की। कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने CPC के ढांचे का सही अनुपालन किया है और उसमें किसी भी तरह के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
न्यायालय ने कहा:
“इस प्रकार, अपीलकर्ता द्वारा दायर की गई अपील विधि अनुसार योग्य नहीं है और इसलिए खारिज की जाती है।”
यह निर्णय उन सभी पक्षकारों के लिए एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक सिद्धांत है, जो समझौता डिक्री से असंतुष्ट हैं। अब यह स्पष्ट हो गया है कि उन्हें सीधे अपील करने का अधिकार नहीं है, बल्कि उन्हें पहले ट्रायल कोर्ट के समक्ष उचित आपत्ति दर्ज करानी होगी और उसके बाद ही अपीलीय अदालत का रुख कर सकते हैं।