SUPREME COURT: उत्तर प्रदेश में मंदिरों से संबंधित कानूनी विवादों में एक नया मोड़ आया है, जब सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर प्रशासन के मामलों में कोर्ट द्वारा नियुक्त किए गए रिसीवर्स की भूमिका और उनके व्यक्तिगत लाभ के लिए कानूनी मामलों को लंबित रखने पर गंभीर चिंता व्यक्त की।
विशेष रूप से, कोर्ट ने मथुरा जिले के मंदिरों से संबंधित लंबित मुकदमों पर ध्यान केंद्रित किया और इन मामलों में न्यायालय द्वारा नियुक्त किए गए रिसीवर्स के कार्यों पर रिपोर्ट मांगी। यह मामला एक ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दे को उजागर करता है, जहां न्यायालय और कानूनी प्रक्रिया का उपयोग मंदिरों के प्रशासन में दखल देने के लिए किया जा रहा है, जिससे विवादों का समाधान अनिश्चितकाल के लिए टल रहा है।
SUPREME COURT: कोर्ट का चिंताजनक अवलोकन
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सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यह टिप्पणी की कि, “मंदिर विवादों के लंबित रहने के दौरान, न्यायालयों द्वारा नियुक्त रिसीवर के रूप में अधिवक्ता, व्यक्तिगत लाभ के लिए इन मुकदमों को अनिश्चितकाल तक लंबित रख सकते हैं।
यह टिप्पणी अदालत के गहरी चिंता को व्यक्त करती है कि जब मंदिरों के मामलों में रिसीवर्स की नियुक्ति की जाती है, तो वे कभी-कभी कानूनी प्रक्रिया को स्थगित करने और न्यायिक कार्यवाही को लंबा खींचने का अवसर ढूंढ़ते हैं। इससे उन अधिवक्ताओं को व्यक्तिगत लाभ हो सकता है जो इन रिसीवरशिप की जिम्मेदारियों को संभाल रहे हैं।
SUPREME COURT: मथुरा के मंदिरों के मामले में अदालत की ओर से रिपोर्ट की मांग
सुप्रीम कोर्ट ने मथुरा के प्रधान जिला न्यायाधीश से यह रिपोर्ट मांगी है, जिसमें मथुरा जिले के उन सभी मंदिरों का विवरण हो जो विभिन्न मुकदमों में फंसे हुए हैं और जिनके संबंध में न्यायालय द्वारा रिसीवर नियुक्त किए गए हैं।
कोर्ट ने यह जानकारी मांगी है कि ये मुकदमे कब से लंबित हैं, इनकी स्थिति क्या है और रिसीवर के रूप में नियुक्त किए गए व्यक्तियों, विशेष रूप से अधिवक्ताओं, के नाम और उनकी स्थिति क्या है। इसके अलावा, अदालत ने यह भी पूछा कि इन रिसीवरों को किस प्रकार का पारिश्रमिक दिया जाता है, यदि कोई है।
अदालत ने यह स्पष्ट किया कि इन रिपोर्टों की मदद से यह समझने में सहायता मिलेगी कि कितने मंदिरों के मामले न्यायालय के माध्यम से लंबित हैं और इन मामलों में रिसीवर की नियुक्ति का असली उद्देश्य क्या है। कोर्ट ने यह भी माना कि इन मामलों में कुछ रिसीवर्स को दी जाने वाली पारिश्रमिक राशि पर भी ध्यान दिया जाएगा, क्योंकि इससे यह तय हो सकता है कि क्या यह प्रक्रिया पूरी तरह से निष्पक्ष है या व्यक्तिगत लाभ के लिए इसका दुरुपयोग हो रहा है।
SUPREME COURT: इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर 27 अगस्त के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रहा था। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश में लंबित मंदिर-संबंधी मुकदमों पर चिंता जताते हुए इस बात की आवश्यकता व्यक्त की थी कि इन मामलों में रिसीवर्स के रूप में अधिवक्ताओं और जिला अधिकारियों को नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए।
उच्च न्यायालय ने कहा था कि न्यायालयों को एक ऐसा रिसीवर नियुक्त करने का प्रयास करना चाहिए जो मंदिर के प्रबंधन से जुड़ा हो और विशेष रूप से धर्म में रुचि रखने वाला व्यक्ति हो।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह भी कहा था कि न्यायालयों द्वारा नियुक्त रिसीवर्स को केवल प्रशासनिक कार्यों के लिए नियुक्त किया जाना चाहिए, न कि मंदिरों की स्थायी देखरेख के लिए। इसके बजाय, न्यायालयों को एक ऐसे रिसीवर को नियुक्त करना चाहिए जो मंदिर के प्रशासन और प्रबंधन में दक्षता रखता हो और धार्मिक भावनाओं के प्रति संवेदनशीलता भी दिखाता हो।
SUPREME COURT: मथुरा में रिसीवरशिप का स्टेटस सिंबल बनना
सुप्रीम कोर्ट ने यह चिंता भी व्यक्त की कि मथुरा में अब रिसीवरशिप एक स्टेटस सिंबल बन गई है। यह स्थिति तब उत्पन्न हुई जब कुछ अधिवक्ताओं ने इसे एक ऐसे पद के रूप में देखा जो सामाजिक और कानूनी सम्मान प्राप्त करने का एक माध्यम बन गया। न्यायालय ने यह आरोप लगाया कि मथुरा और आसपास के क्षेत्र में, खासकर वृंदावन और गोवर्धन में, अधिवक्ता मंदिरों के प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं ले सकते हैं, क्योंकि इस कार्य के लिए समर्पण और कौशल की आवश्यकता होती है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायालयों को इस प्रक्रिया में सुधार करना चाहिए, ताकि मंदिरों का प्रशासन सही तरीके से किया जा सके। अदालत ने यह भी कहा कि यदि कोई मंदिर का प्रबंधन और प्रशासन करने में सक्षम नहीं है, तो उसे न्यायालय के नियंत्रण में रखा जाता है, लेकिन यह प्रक्रिया लंबे समय तक नहीं चल सकती।
SUPREME COURT: सिविल प्रक्रिया संहिता का दुरुपयोग
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के प्रावधानों का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता है, खासकर जब मंदिरों के मामलों में लंबी कानूनी लड़ाई चल रही हो। अदालत ने यह टिप्पणी की कि न्यायालय को मंदिरों के मामलों में निष्पक्षता और त्वरित समाधान सुनिश्चित करना चाहिए, न कि उन्हें लंबित रखने के लिए कानूनी प्रक्रिया का इस्तेमाल करना चाहिए।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि मंदिरों के मामलों में फैसले को टालना नहीं हो सकता और अगर कोई विवाद है, तो उसे समयबद्ध तरीके से सुलझाना चाहिए।
SUPREME COURT: अंतिम विचार
उत्तर प्रदेश में मंदिरों से संबंधित कानूनी विवादों में रिसीवर्स की नियुक्ति और उनकी भूमिका पर सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी न केवल न्यायिक प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि कैसे कुछ कानूनी प्राधिकरण अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए इन विवादों को अनिश्चितकाल तक खींच सकते हैं।
मथुरा जैसे धार्मिक स्थलों में, जहां मंदिरों का प्रशासन संवेदनशील और धार्मिक होता है, यह अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है कि मंदिरों के मामलों में न्यायालय की निगरानी निष्पक्ष और समयबद्ध हो। यह मामला न्यायिक प्रक्रिया की सच्चाई और मंदिरों के प्रशासन के लिए समर्पण की आवश्यकता को उजागर करता है।












