SUPREME COURT का फैसला: सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act) के तहत एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि लोक सेवक के खिलाफ FIR दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं है।
इस निर्णय के अनुसार, भ्रष्टाचार के मामलों में FIR दर्ज करने से पहले आरोपी को प्रारंभिक जांच की मांग करने का कोई अधिकार नहीं है। यह फैसला भ्रष्टाचार निरोधक जांच और अभियोजन की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण प्रभाव डालेगा।
SUPREME COURT का फैसला: प्रारंभिक जांच की अनिवार्यता पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि भ्रष्टाचार के आरोपी लोक सेवक के खिलाफ मामला दर्ज करने के लिए प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं है। हालांकि, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (PC Act) के तहत आने वाले कुछ मामलों में प्रारंभिक जांच वांछनीय हो सकती है, लेकिन इसे आरोपी का कानूनी अधिकार नहीं माना जा सकता।
कोर्ट ने कहा कि यदि सूचना से संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं होती। हालांकि, जांच एजेंसी के लिए यह पता लगाना उचित हो सकता है कि क्या दिए गए मामले में अपराध संज्ञेय है या नहीं।
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अनावश्यक उत्पीड़न रोकने पर न्यायालय का जोर
कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि प्रारंभिक जांच का उद्देश्य प्राप्त सूचना की सत्यता की पुष्टि करना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि क्या सूचना से संज्ञेय अपराध का संकेत मिलता है।
“प्रारंभिक जांच का दायरा स्वाभाविक रूप से सीमित होता है और इसका उद्देश्य यह तय करना होता है कि क्या प्राप्त सूचना से संज्ञेय अपराध का पता चलता है। इससे अनावश्यक उत्पीड़न को रोका जा सकता है और यह भी सुनिश्चित किया जा सकता है कि संज्ञेय अपराध के वास्तविक आरोपों को मनमाने तरीके से दबाया न जाए।”
इसलिए, यह निर्णय कि प्रारंभिक जांच आवश्यक है या नहीं, प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।
सुप्रीम कोर्ट में कर्नाटक राज्य की अपील पर सुनवाई
इस मामले में, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने कर्नाटक राज्य की अपील पर सुनवाई की। मामला एक लोक सेवक पर आय से अधिक संपत्ति के आरोपों से संबंधित था।
कर्नाटक लोकायुक्त पुलिस ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (PC Act) की धारा 13(1)(बी) और धारा 12 के साथ धारा 13(2) के तहत लोक सेवक के खिलाफ FIR दर्ज की थी। कर्नाटक हाईकोर्ट ने इस FIR को खारिज कर दिया था, जिसके कारण राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुख्य प्रश्न यह था कि क्या PC Act के तहत FIR दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच अनिवार्य है या क्या स्रोत सूचना रिपोर्ट (Source Information Report) प्रारंभिक जांच का स्थान ले सकती है।
FIR दर्ज करने की प्रक्रिया पर राज्य सरकार का पक्ष
राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि यदि स्रोत सूचना रिपोर्ट में संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं होनी चाहिए।
राज्य सरकार का तर्क था कि पुलिस अधीक्षक ने अपने विवेक का प्रयोग किया और स्रोत सूचना रिपोर्ट के आधार पर प्रथम दृष्टया मामला पाया, जिसके बाद FIR दर्ज की गई।
क्या हर भ्रष्टाचार मामले में प्रारंभिक जांच जरूरी है?
लोक सेवक, जिनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया था, ने ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले का हवाला देते हुए तर्क दिया कि भ्रष्टाचार के मामलों में तुच्छ शिकायतों से बचने के लिए प्रारंभिक जांच अनिवार्य होनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को पलटा
सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए कहा कि जब FIR दर्ज करने के लिए सूचना के स्रोत से संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो आरोपी को प्रारंभिक जांच का अधिकार नहीं दिया जा सकता।
अदालत ने ललिता कुमारी मामले पर प्रतिवादी के तर्क को गलत पाया। इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि भ्रष्टाचार के मामलों में प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं है।
“यदि पुलिस अधिकारी/जांच एजेंसी को प्राप्त सूचना से संज्ञेय अपराध का पता चलता है, तो प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं है। हालांकि, यदि प्रारंभिक जांच की जाती है, तो इसका उद्देश्य केवल यह तय करना होता है कि क्या सूचना प्रथम दृष्टया किसी संज्ञेय अपराध को दर्शाती है। इसकी सत्यता की पुष्टि करना जांच का उद्देश्य नहीं हो सकता।”
सूत्र सूचना रिपोर्ट (SIR) की मान्यता
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि स्रोत सूचना रिपोर्ट (SIR) प्रारंभिक जांच का स्थान ले सकती है, यदि यह पर्याप्त विस्तृत हो। इस मामले में, स्रोत सूचना रिपोर्ट में प्रतिवादी की संपत्ति और आय विसंगतियों का विस्तृत विवरण दिया गया था, जिससे यह प्रारंभिक जांच के रूप में स्वीकार्य थी।
भ्रष्टाचार मामलों में प्रारंभिक जांच का महत्व और सीमाएं
सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक राज्य की अपील को स्वीकार कर लिया और हाईकोर्ट द्वारा रद्द की गई FIR को पुनः बहाल कर दिया। यह फैसला भ्रष्टाचार के मामलों में FIR दर्ज करने की प्रक्रिया को और स्पष्ट बनाता है और यह सुनिश्चित करता है कि प्रारंभिक जांच को बाध्यता के रूप में नहीं देखा जाए।
यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया को तेज करने और भ्रष्टाचार के मामलों में त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित करने में सहायक होगा।
केस टाइटल: कर्नाटक राज्य बनाम टी.एन. सुधाकर रेड्डी












