SUPREME COURT: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को चार वर्षीय बालक की हत्या और यौन उत्पीड़न के मामले में दोषी को दी गई मौत की सजा को रद्द कर दिया और इसके स्थान पर बिना किसी छूट के 25 वर्षों के कठोर कारावास की सजा सुनाई। यह निर्णय [शंभूभाई रायसंगभाई पडियार बनाम गुजरात राज्य] मामले में दिया गया। न्यायालय ने कहा कि अपराध जघन्य और शैतानी प्रकृति का था, लेकिन इसे दुर्लभतम मामलों की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।
SUPREME COURT: न्यायायालय की मुख्य प्रूतिक्रियां:
- दोषी के सुधार की संभावना:
न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने स्पष्ट किया कि दोषी के सुधार की संभावना को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने मानसिक स्वास्थ्य रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि दोषी ने अपने अपराध के लिए पश्चाताप व्यक्त किया है। - दुर्लभतम श्रेणी में मामला नहीं:
न्यायालय ने यह भी कहा कि समग्र तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर, यह मामला ‘दुर्लभतम’ की श्रेणी में नहीं आता, जहां मौत की सजा अनिवार्य हो। - आजीवन कारावास अपर्याप्त:
न्यायालय ने जोर देकर कहा कि इस मामले में साधारण आजीवन कारावास, जो भारतीय कानून के तहत लगभग 14 वर्षों की सजा होती है, अपर्याप्त होगी।
SUPREME COURT: यौन तस्करी पीड़ितों के पुनर्वास पर याचिका
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2016 में चार वर्षीय बालक की नग्न लाश दरगाह के पास एक झील के किनारे पाई गई थी। उसकी लाश पर चोट के निशान और यौन उत्पीड़न के प्रमाण मिले। जांच के दौरान, पीड़ित के लापता होने से पहले उसे दोषी के साथ देखा गया था। दोषी को हत्या, यौन उत्पीड़न और POCSO अधिनियम के तहत दोषी पाया गया।
SUPREME COURT: नीची और चुनौतिया:
- ट्रायल कोर्ट ने दोषी को मौत की सजा सुनाई।
- गुजरात उच्च न्यायालय ने इस सजा को बरकरार रखा।
- सर्वोच्च न्यायालय ने दोषसिद्धि को बरकरार रखा लेकिन सजा को संशोधित किया।
न्यायालय ने कहा, “यद्यपि अपराध की प्रकृति अत्यंत गंभीर थी, लेकिन यह मामला मृत्युदंड के लिए आवश्यक मानदंडों को पूरा नहीं करता। दोषी को सुधारने का अवसर दिया जाना चाहिए।”
दोषी के वकील ने तर्क दिया कि:
- दोषी की उम्र घटना के समय 24 वर्ष थी।
- दोषी का कोई आपराधिक इतिहास नहीं था।
- दोषी गरीब सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से आता है।
- दोषी मानसिक रूप से अस्थिर और बौद्धिक रूप से कमजोर था।
SUPREME COURT: केंद्र के तर्क:
केंद्र सरकार ने भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) और POCSO अधिनियम के तहत यौन अपराधों के लिए कड़े प्रावधानों का हवाला दिया।
न्यायालय ने अंतिम रूप से यह निर्णय लिया कि दोषी को बिना किसी छूट के 25 वर्षों तक सश्रम कारावास की सजा भुगतनी होगी। यह सजा दोषी के अपराध की गंभीरता को देखते हुए उचित है।