SUPREME COURT: यौन तस्करी पीड़ितों के पुनर्वास पर याचिका

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By headlineslivenews.com

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SUPREME COURT: न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की खंडपीऀठ ने मंगलवार को यौन तस्करी पीँडितों के लिए व्यापक पुनर्वास ढांचे की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई की। अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए स्पष्ट किया कि यह मामला बेहद गंभीर है और पीँडितों के अधिकारों की रक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है। यह याचिका गैर-लाभकारी संगठन प्रज्वला द्वारा दायर की गई थी।

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SUPREME COURT: पीँडितों के अधिकारों की सुरक्षा

न्यायमूर्ति पारदीवाला ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अपर्णा भट्ट को आश्वासन देते हुए कहा, “हम इसे बहुत गंभीरता से ले रहे हैं। हमें समाज और पीँडितों की रक्षा करनी है। हम ऐसा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।” इस मामले में अदालत 2015 के उस आदेश के अनुपालन की समीक्षा कर रही थी, जिसमें संगठित अपराध जांच एजेंसी (ओसीआईए) के गठन और यौन तस्करी पीँडितों के लिए सुरक्षा प्रोटोकॉल को मजबूत करने की सिफारिश की गई थी।

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केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने अदालत को बताया कि भारतीय न्याय संहिता, 2023 (बीएनएस) के तहत यौन तस्करी से संबंधित अपराधों से निपटने के लिए पर्याप्त प्रावधान किए गए हैं। उन्होंने यह भी बताया कि वर्तमान में देशभर में लगभग 827 एंटी-ट्रैफिकिंग इकाइयाँ कार्यरत हैं, जिनमें कुछ गैर-सरकारी संगठनों की भी भागीदारी है।

भाटी ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारें 60:40 फंडिंग के तहत आश्रय गृह संचालित कर रही हैं। इसके अतिरिक्त, निर्भया फंड के तहत 14,000 महिला हेल्पलाइन स्थापित की गई हैं। उन्होंने बताया कि राज्यों को मानव तस्करी पीँडितों के लिए मुआवजा योजनाएँ स्थापित करने का अधिकार है, जिसके लिए केंद्र सरकार 200 करोड़ से अधिक धनराशि पहले ही आवंटित कर चुकी है।

SUPREME COURT: याचिकाकर्ता का पक्ष

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अपर्णा भट्ट ने तर्क दिया कि मानव तस्करी के मामलों से निपटने के लिए कोई संस्थागत ढांचा मौजूद नहीं है। उन्होंने कहा कि 2015 के आदेश में केंद्र सरकार ने ओसीआईए के गठन का आश्वासन दिया था, लेकिन इसे अब तक लागू नहीं किया गया है।

भट्ट ने यह भी बताया कि 2016 में गृह मंत्रालय ने तस्करी विरोधी इकाइयों की स्थापना की थी, लेकिन इनमें से कुछ इकाइयों को पुलिस का दर्जा नहीं मिला, जिसके कारण वे एफआईआर दर्ज करने में असमर्थ हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि ऐसे अपराधों पर गंभीरता से विचार करने और संगठित अपराध के रूप में मान्यता देने की आवश्यकता है।

सुनवाई के दौरान न्यायालय ने समाज के कमजोर वर्गों, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों पर मानव और यौन तस्करी के विनाशकारी प्रभावों पर जोर दिया। अदालत ने कहा कि इन समूहों के अधिकारों और सम्मान की रक्षा के लिए बेहतर सुरक्षा और सहायता तंत्र की आवश्यकता है।

SUPREME COURT: मुआवजा योजना और आश्रय गृह

केंद्र सरकार की ओर से यह भी बताया गया कि राज्यों को मुआवजा योजना स्थापित करने का अधिकार है और तस्करी पीँडितों के लिए आश्रय गृहों की स्थापना में भी सरकार ने पर्याप्त योगदान दिया है। ये आश्रय गृह केंद्र और राज्यों के बीच फंड साझा करने के मॉडल पर आधारित हैं।

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अदालत ने सभी पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा कि यह सुनिश्चित करना न्यायालय का कर्तव्य है कि समाज और पीँडितों के अधिकारों की रक्षा हो। उन्होंने यह भी कहा कि अदालत इस मामले में अपने निर्णय से तस्करी पीँडितों के पुनर्वास के लिए एक मजबूत और प्रभावी ढांचे की स्थापना को सुनिश्चित करेगी।

SUPREME COURT: निष्कर्ष

यौन तस्करी एक गंभीर अपराध है जो समाज के कमजोर वर्गों को अत्यधिक प्रभावित करता है। इस पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला यह तय करेगा कि भारत में तस्करी पीँडितों की सुरक्षा और पुनर्वास के लिए एक संगठित और प्रभावी तंत्र कैसे लागू किया जाए।

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