SUPREME COURT: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई की, जिसमें लंबित मामलों को सीमित समय सीमा के भीतर निपटाने की मांग की गई थी। याचिका को मदन गोपाल अग्रवाल ने दायर किया था, जिसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में सभी लंबित मामलों को 12 महीनों के भीतर, उच्च न्यायालय में 18 महीनों के भीतर और जिला अदालतों में 30 महीनों के भीतर निपटाने की मांग की।
SUPREME COURT: सीजेआई चंद्रचूड़ का महत्वपूर्ण बयान
मुख्य न्यायाधीश डॉ. डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने इस याचिका को खारिज करते हुए कहा कि “हम अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट नहीं हैं।” मुख्य न्यायाधीश ने आगे कहा कि, “क्या आप जानते हैं कि अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट एक साल में कितने मामलों की सुनवाई करता है? सुप्रीम कोर्ट की सभी 17 बेंच शायद एक दिन में उतने मामले निपटाती हैं जितने अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट पूरे साल में करता है।”
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मुख्य न्यायाधीश ने यह भी स्पष्ट किया कि, “हमने एक न्याय तक पहुंच का मॉडल बनाया है, जिससे लोगों को इस अदालत में आने का अधिकार मिलता है, और इसने देरी पैदा की है।” उन्होंने कहा कि अगर अदालतों में आने वाले लोगों की संख्या और मामलों की प्रकृति को सीमित कर दिया जाए, तो लंबित मामलों को जल्दी निपटाया जा सकता है।
SUPREME COURT: न्यायालय के आंकड़े
सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर उपलब्ध ‘जस्टिस क्लॉक’ के अनुसार, 18 अक्टूबर तक, कोर्ट ने 46,951 मामलों का निपटान किया है और निपटान दर 97 प्रतिशत है। पिछले महीने में कोर्ट ने 5,665 मामलों का निपटान किया, जिसकी निपटान दर 99 प्रतिशत थी। राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट में वर्तमान में 82,397 मामले लंबित हैं, जिनमें से लगभग 27,000 मामले एक साल से कम पुराने हैं।
मुख्य न्यायाधीश ने इस बात पर जोर दिया कि लंबित मामलों को कम करने के लिए न्यायिक प्रणाली के पास “उचित बुनियादी ढांचा, न्यायाधीशों की पर्याप्त संख्या और कई अन्य चीजें” होनी चाहिए। उन्होंने कहा, “आप इस तरह की याचिका दायर नहीं कर सकते।”
SUPREME COURT: मामले का निष्कर्ष
इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता की मांगों के बावजूद, न्यायिक प्रणाली में सुधार के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। केवल समय सीमा तय करने से लंबित मामलों की समस्या का समाधान नहीं होगा, बल्कि इसके लिए संसाधनों और बुनियादी ढांचे में सुधार की आवश्यकता है।
मामला शीर्षक: मदन गोपाल अग्रवाल बनाम विधि और न्याय मंत्रालय [W.P.(C) 553/2024 PIL-W]












