DELHI HC: दिल्ली हाईकोर्ट ने कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) को निर्देश दिया है कि वह कोविड-19 राहत योजना के तहत एक विधवा को लाभ प्रदान करे। कोर्ट ने यह निर्णय देते हुए स्पष्ट किया कि विशेष प्रोत्साहन को किसी श्रमिक के वेतन का हिस्सा नहीं माना जा सकता।
न्यायालय ने ईएसआईसी द्वारा याचिकाकर्ता के दावे को खारिज करने के फैसले को रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि यह लाभ चार सप्ताह के भीतर प्रदान किया जाए।
DELHI HC: मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता, गौदम्बरी रतूरी, ने अपने पति की मृत्यु के बाद कोविड-19 राहत योजना के तहत लाभ के लिए आवेदन किया था। उनके पति, जो एक बीमित व्यक्ति थे, कोविड-19 के कारण अपनी जान गंवा बैठे। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उनके पति के वेतन से ईएसआई अंशदान नियमित रूप से काटा जाता था।
इसके बावजूद, ईएसआईसी ने दावा खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि उनके पति का कुल वेतन, विशेष प्रोत्साहन सहित, अधिनियम की धारा 2(9) के तहत निर्धारित मासिक सीमा से अधिक था।
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ईएसआईसी का यह दावा था कि विशेष प्रोत्साहन को वेतन में जोड़ने के बाद, मृतक का वेतन उस सीमा से ऊपर चला गया था, जो बीमित व्यक्ति के रूप में पात्रता के लिए आवश्यक है।
न्यायमूर्ति गिरीश कठपालिया की एकलपीठ ने इस मामले पर विचार करते हुए स्पष्ट किया कि कोविड-19 महामारी के दौरान दिया गया विशेष प्रोत्साहन केवल एक अस्थायी उपाय था। यह प्रोत्साहन कार्यरत वर्ग को अतिरिक्त खर्च, जैसे मास्क, दस्ताने, सैनिटाइज़र और परिवहन जैसी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दिया गया था। न्यायालय ने माना कि इस प्रोत्साहन को वेतन का हिस्सा मानना न केवल अनुचित होगा, बल्कि यह योजना के सामाजिक कल्याण उद्देश्य के खिलाफ भी होगा।
DELHI HC: कोविड-19 राहत योजना का उद्देश्य
कोविड-19 राहत योजना का उद्देश्य उन बीमित व्यक्तियों के परिवारों को आर्थिक सहायता प्रदान करना था, जिन्होंने कोविड-19 के कारण अपनी जान गंवाई। यह योजना विशेष रूप से उन परिवारों के लिए बनाई गई थी, जो महामारी के दौरान वित्तीय संकट का सामना कर रहे थे।
कोर्ट ने टिप्पणी की कि, “कोविड-19 महामारी के दौरान विशेष प्रोत्साहन का उद्देश्य श्रमिकों को अतिरिक्त वित्तीय सहायता प्रदान करना था, ताकि वे संकट के समय आवश्यक वस्तुओं और यात्रा खर्चों का वहन कर सकें। इस प्रोत्साहन का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि श्रमिक अपने कार्यस्थल पर पहुंच सकें और देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान न हो। यह प्रोत्साहन अस्थायी था और इसे वेतन का हिस्सा मानना उचित नहीं है।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि ईएसआई अधिनियम, 1948, एक सामाजिक कल्याण कानून है और इसे आश्रितों के पक्ष में उदारता के साथ लागू किया जाना चाहिए।
याचिकाकर्ता के वकील, एडवोकेट जितेंद्र नाथ पाठक, ने तर्क दिया कि ईएसआईसी ने उनके पति के वेतन से नियमित रूप से अंशदान काटा था, और उनके पति बीमित व्यक्ति की श्रेणी में आते थे। उन्होंने दावा किया कि विशेष प्रोत्साहन को वेतन में जोड़कर याचिकाकर्ता को योजना से बाहर करना सामाजिक कल्याण के उद्देश्य के खिलाफ है।
DELHI HC: ईएसआईसी का पक्ष
ईएसआईसी का पक्ष था कि अधिनियम की धारा 2(22) के तहत, विशेष प्रोत्साहन को भी वेतन का हिस्सा माना जाना चाहिए। इस आधार पर, उन्होंने याचिकाकर्ता का दावा खारिज कर दिया।
कोर्ट ने ईएसआईसी की इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि, “सामाजिक कल्याण योजनाओं का उद्देश्य वंचित वर्गों को सुरक्षा प्रदान करना है। ऐसे मामलों में कठोर व्याख्या करना अनुचित है।” न्यायालय ने कहा कि “विशेष प्रोत्साहन को वेतन में जोड़ने से याचिकाकर्ता को योजना के लाभ से वंचित करना सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है।”
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “याचिकाकर्ता, जो एक कोविड योद्धा की विधवा हैं, को इस योजना के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता। यह योजना उन लोगों के लिए है, जिन्होंने महामारी के दौरान अपने परिवार के सदस्यों को खोया है।”
कोर्ट ने ईएसआईसी को चार सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता को कोविड योजना के तहत सभी लाभ प्रदान करने का निर्देश दिया।
DELHI HC: मामले का निष्कर्ष
दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला कोविड-19 राहत योजना के सामाजिक कल्याण उद्देश्य को रेखांकित करता है। यह निर्णय इस बात पर जोर देता है कि ऐसे मामलों में, जहां कानून का उद्देश्य सामाजिक कल्याण है, इसे उदारता और सहानुभूति के साथ लागू किया जाना चाहिए।
मामला:
गौदम्बरी रतूरी बनाम कर्मचारी राज्य बीमा निगम लिमिटेड एवं अन्य
(न्यूट्रल सिटेशन: 2024:DHC:8647)