इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013 के प्रावधानों के बारे में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि यह अधिनियम यूपी आवास एवं विकास परिषद अधिनियम, 1965 के तहत किए गए अधिग्रहणों पर लागू नहीं होता है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 की धारा 24(2) अधिग्रहण प्रक्रिया पर प्रभावी नहीं होगी और अधिग्रहण रद्द नहीं किया जाएगा, लेकिन याचिकाकर्ता को 2013 अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार मुआवजा प्राप्त होगा।
मामले का संदर्भ
यह मामला एक रिट याचिका के संदर्भ में इलाहाबाद हाई कोर्ट के समक्ष आया, जिसमें यूपी आवास एवं विकास परिषद अधिनियम, 1965 की धारा 28 और 32 के तहत जारी अधिसूचनाओं को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता का दावा था कि अधिग्रहण प्रक्रिया में अनुचित विलंब हुआ है, और इस विलंब के कारण अधिग्रहण को रद्द किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता ने यह भी मांग की कि प्रतिवादियों को भूमि के कब्जे में हस्तक्षेप से रोका जाए, उनकी निर्माण योजना को मंजूरी दी जाए, और उनके प्रतिनिधित्व पर निर्णय लिया जाए।
न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता और न्यायमूर्ति मनीष कुमार निगम की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता ऐश्वर्य प्रताप सिंह और प्रतिवादी की ओर से अधिवक्ता हर्षित पांडे ने कोर्ट के समक्ष तर्क प्रस्तुत किए।
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कोर्ट की टिप्पणी
कोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि यूपी आवास एवं विकास परिषद अधिनियम, 1965, भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 के तहत निर्दिष्ट कानून नहीं है। न्यायालय ने कहा, “अधिनियम चौथी अनुसूची के तहत निर्दिष्ट कानून नहीं है और इसलिए, नए अधिनियम, 2013 के प्रावधान स्वाभाविक रूप से अधिनियम के तहत किए गए अधिग्रहणों पर लागू नहीं होते हैं।”
कोर्ट ने कहा कि अधिनियम के तहत किए गए अधिग्रहणों के लिए 2013 अधिनियम की धारा 24(2) लागू नहीं होगी, जिसका अर्थ यह है कि अधिग्रहण रद्द नहीं किया जाएगा, भले ही अधिग्रहण प्रक्रिया में कोई विलंब हो। हालांकि, याचिकाकर्ता को 2013 अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार मुआवजा प्राप्त करने का अधिकार होगा।
अधिनियमों के बीच अंतर
इस मामले में मुख्य विवाद यह था कि क्या यूपी आवास एवं विकास परिषद अधिनियम, 1965 के तहत किए गए अधिग्रहणों पर भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 के प्रावधान लागू होते हैं। याचिकाकर्ता का तर्क था कि 2013 अधिनियम की धारा 24(2) के तहत अधिग्रहण रद्द किया जाना चाहिए क्योंकि अधिग्रहण प्रक्रिया में देरी हुई है और पुरस्कार अब तक घोषित नहीं हुआ है।
हालांकि, कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि चूंकि यूपी आवास एवं विकास परिषद अधिनियम, 1965 चौथी अनुसूची के तहत निर्दिष्ट कानून नहीं है, इसलिए 2013 अधिनियम के प्रावधान इसके तहत किए गए अधिग्रहणों पर लागू नहीं होते।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लेख
कोर्ट ने अपने फैसले में यूपी आवास एवं विकास परिषद बनाम जैनुल इस्लाम और अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का भी उल्लेख किया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा था कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम (LA Act) में किए गए बाद के संशोधन, यूपी आवास एवं विकास परिषद अधिनियम, 1965 के तहत किए गए अधिग्रहणों पर लागू नहीं होंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि अधिनियम के तहत किए गए अधिग्रहणों को मनमानी और भेदभाव से बचाने के लिए मुआवजे के निर्धारण और भुगतान से संबंधित प्रावधानों को लागू किया गया था। इस प्रकार, धारा 11-ए, जो भूमि अधिग्रहण अधिनियम में संशोधन द्वारा जोड़ी गई थी, अधिनियम के तहत किए गए अधिग्रहणों पर लागू नहीं होगी। यहां तक कि अगर अधिसूचना जारी होने के दो वर्षों के भीतर पुरस्कार घोषित नहीं किया जाता, तो भी अधिग्रहण रद्द नहीं होगा।
निर्णय का सारांश
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि अधिग्रहण प्रक्रिया में देरी के बावजूद, अधिग्रहण रद्द नहीं किया जाएगा। हालांकि, याचिकाकर्ता को मुआवजा प्राप्त करने का अधिकार होगा, जो भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 के प्रावधानों के अनुसार निर्धारित किया जाएगा।
अंततः, कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा निर्माण योजना को मंजूरी देने के लिए जो मांग की गई थी, वह अस्वीकार कर दी जाती है क्योंकि अधिसूचना को चुनौती देने में याचिकाकर्ता असफल रहा।
वकीलों की उपस्थिति
इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता ऐश्वर्य प्रताप सिंह और प्रतिवादी की ओर से अधिवक्ता हर्षित पांडे और अधिवक्ता निपुण सिंह ने अदालत के समक्ष तर्क प्रस्तुत किए।
कोर्ट के इस निर्णय से यह स्पष्ट हो गया है कि यूपी आवास एवं विकास परिषद अधिनियम, 1965 के तहत किए गए अधिग्रहणों पर भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 के प्रावधान लागू नहीं होंगे, लेकिन मुआवजे का निर्धारण और भुगतान उसी के अनुसार किया जाएगा।
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