SUPREME COURT: सुप्रीम कोर्ट ने संभल स्थित शाही जामा मस्जिद से जुड़े एक विवादित मामले में सुनवाई करते हुए कुएं पर पूजा या अन्य गतिविधियों की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। यह मामला शाही जामा मस्जिद के पास स्थित एक कुएं के उपयोग और वहां पूजा-अर्चना से जुड़ा है, जिसे लेकर स्थानीय प्रशासन और मस्जिद प्रबंधन समिति के बीच विवाद चल रहा है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति पीवी संजय कुमार की खंडपीठ ने शुक्रवार को मस्जिद प्रबंधन समिति बनाम हरि शंकर जैन और अन्य मामले की सुनवाई करते हुए आदेश दिया कि संबंधित अधिकारियों द्वारा कुएं के संबंध में जारी किसी भी नोटिस को प्रभावी नहीं किया जाएगा। साथ ही, अधिकारियों को मामले में स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश भी दिया गया।
SUPREME COURT: न्यायालय के आदेश का मुख्य बिंदु
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि 21 फरवरी तक इस मामले में सभी पक्षों को नोटिस जारी किए जाएं और दो सप्ताह के भीतर स्थिति रिपोर्ट जमा की जाए। साथ ही, मस्जिद प्रबंधन समिति के अनुरोध पर कुएं के संबंध में किसी भी तरह की गतिविधि को तत्काल प्रभाव से रोकने का आदेश दिया गया।
TRI NAGAR ASSEMBLY: 40 सालों से आपकी सेवा कर रहा हूँ
जैन समाज की एकजुटता: कांग्रेस प्रत्याशी प्रवीण जैन को जैन समाज और 36 बिरादरी का समर्थन जीत का माहौल
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि इस मामले में संवेदनशीलता को देखते हुए किसी भी पक्ष को ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहिए, जिससे क्षेत्र में शांति और सद्भाव को खतरा हो।
यह विवाद तब शुरू हुआ, जब सिविल न्यायालय ने मस्जिद के सर्वेक्षण का आदेश दिया था। हरि शंकर जैन और सात अन्य व्यक्तियों द्वारा दायर एक याचिका में दावा किया गया कि शाही जामा मस्जिद का निर्माण मुगल काल के दौरान एक ध्वस्त हिंदू मंदिर के ऊपर किया गया था। इस दावे के आधार पर, याचिकाकर्ताओं ने मस्जिद के पास स्थित कुएं को सार्वजनिक पूजा के लिए खोलने की मांग की।
मस्जिद प्रबंधन समिति ने सिविल न्यायालय के इस आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की। उनका कहना था कि यह आदेश न केवल मस्जिद की धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है, बल्कि क्षेत्र में सांप्रदायिक तनाव को भी बढ़ावा दे सकता है।
SUPREME COURT: सुप्रीम कोर्ट की सख्ती
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में गंभीर रुख अपनाते हुए यह सुनिश्चित किया कि कोई भी पक्ष क्षेत्र में शांति भंग करने की कोशिश न करे। कोर्ट ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे मस्जिद के पास स्थित कुएं को लेकर किसी भी तरह की सार्वजनिक गतिविधियों को अनुमति न दें और पहले स्थिति की पूरी जानकारी प्रस्तुत करें।
मुख्य न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि मामले में न्यायिक प्रक्रिया का सम्मान करना सभी पक्षों के लिए अनिवार्य है। उन्होंने कहा, “हम यहां किसी भी सांप्रदायिक विवाद को बढ़ावा देने के लिए नहीं बैठे हैं। हमारी प्राथमिकता शांति और न्याय सुनिश्चित करना है।”
शाही जामा मस्जिद प्रबंधन समिति ने न्यायालय को बताया कि संभल जिला प्रशासन पुराने मंदिरों और कुओं के पुनरुद्धार के नाम पर मस्जिद के पास स्थित कुएं को सार्वजनिक उपयोग के लिए खोलने की योजना बना रहा है। समिति का दावा है कि यह कदम मस्जिद को मंदिर के रूप में पेश करने का एक प्रयास है, जिससे सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगड़ सकता है।
समिति ने आगे आरोप लगाया कि स्थानीय प्रशासन द्वारा कुएं के उपयोग को लेकर जारी नोटिस, मस्जिद की ऐतिहासिक और धार्मिक पहचान को गलत तरीके से प्रस्तुत करने की कोशिश है।
SUPREME COURT: पृष्ठभूमि में नवंबर 2024 की घटनाएं
इस मामले की पृष्ठभूमि में नवंबर 2024 की घटनाएं भी शामिल हैं, जब सिविल अदालत के आदेश के बाद संभल में सांप्रदायिक तनाव और हिंसा देखने को मिली थी। सुप्रीम कोर्ट ने उस समय सभी पक्षों से शांति बनाए रखने और किसी भी उकसावे से बचने का आग्रह किया था।
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से स्पष्ट है कि न्यायालय इस मामले में सभी पक्षों की सुनवाई करने के बाद ही कोई अंतिम निर्णय लेगा। मस्जिद प्रबंधन समिति को इस फैसले से राहत मिली है, क्योंकि अदालत ने कुएं के संबंध में किसी भी नोटिस को लागू करने पर रोक लगा दी है।
यह मामला भारतीय न्याय प्रणाली के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण है, जहां धार्मिक स्वतंत्रता और सांप्रदायिक सद्भाव को ध्यान में रखते हुए निर्णय लिए जा रहे हैं।
संभल की शाही जामा मस्जिद का यह मामला धार्मिक और कानूनी विवाद का एक संवेदनशील मुद्दा बन चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल कुएं पर पूजा की अनुमति देने से इनकार करते हुए सभी पक्षों को स्थिति स्पष्ट करने का निर्देश दिया है। आगे इस मामले में न्यायालय की भूमिका यह सुनिश्चित करने में होगी कि कोई भी पक्ष क्षेत्र में शांति और सद्भाव को भंग न करे।