धारा 498A दुरुपयोग: बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498A (शादीशुदा महिलाओं के साथ क्रूरता) और घरेलू हिंसा अधिनियम के प्रावधानों का सबसे ज्यादा दुरुपयोग किया जाता है। यह मौखिक टिप्पणी न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, प्रशांत मिश्रा और के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने एक भरण-पोषण से जुड़े वैवाहिक विवाद की सुनवाई के दौरान की।
धारा 498A दुरुपयोग: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, धारा 498A और घरेलू हिंसा कानूनों का सबसे अधिक दुरुपयोग
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A, जो शादीशुदा महिलाओं के साथ क्रूरता से संबंधित है, और घरेलू हिंसा अधिनियम के प्रावधानों का सबसे अधिक दुरुपयोग किया जाता है। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, प्रशांत मिश्रा और के.वी. विश्वनाथन की तीन सदस्यीय पीठ ने एक वैवाहिक विवाद की सुनवाई के दौरान की, जिसमें भरण-पोषण (मैरिटल मेंटेनेंस) से संबंधित मामला प्रस्तुत था।
इस सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति गवई ने नागपुर में देखे गए एक घरेलू हिंसा के मामले को याद किया, जिसमें एक व्यक्ति को अपनी पत्नी को ₹50 लाख का भुगतान करना पड़ा। उल्लेखनीय बात यह थी कि यह विवाह बिना किसी शारीरिक संबंध (असंपन्न विवाह) के था, फिर भी पति को इतनी बड़ी राशि अदा करनी पड़ी। इस उदाहरण के माध्यम से न्यायमूर्ति गवई ने स्पष्ट किया कि धारा 498A और घरेलू हिंसा अधिनियम जैसे कानूनों का उपयोग कई बार अनुचित और अतिरेकपूर्ण रूप से किया जाता है।
धारा 498A दुरुपयोग: दुरुपयोग पर न्यायमूर्ति गवई की टिप्पणी
न्यायमूर्ति गवई ने इस संदर्भ में टिप्पणी करते हुए कहा, “ऐसे मामलों में स्वतंत्रता मिलना सबसे अच्छा समाधान होता है। मैंने खुलेआम कहा है कि घरेलू हिंसा और धारा 498A सबसे अधिक दुरुपयोग होने वाले प्रावधानों में से एक हैं। मेरे साथी न्यायमूर्ति भी इस पर सहमत हो सकते हैं।”
उनकी इस टिप्पणी ने एक बड़े और महत्वपूर्ण मुद्दे को उजागर किया, जिसमें कानून के माध्यम से झूठे आरोप लगाकर निर्दोष लोगों को निशाना बनाया जा रहा है। खासकर ऐसे मामलों में पति और उसके परिवार के सदस्यों को झूठे आरोपों में फंसाया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप परिवारिक और सामाजिक जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
धारा 498A दुरुपयोग: बॉम्बे हाईकोर्ट की चिंता
पिछले महीने, बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी धारा 498A के दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त की थी। कोर्ट ने कहा था कि इस कानून का इस्तेमाल कर कई बार बुजुर्ग और बीमार लोगों को भी निशाना बनाया जाता है। कोर्ट ने नोट किया कि ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जहां दादी-दादा और बिस्तर पर पड़े गंभीर रूप से बीमार लोग, जिनकी शारीरिक स्थिति ठीक नहीं है, उन पर भी आरोप लगाए जा रहे हैं।
इससे यह स्पष्ट होता है कि धारा 498A, जो महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाई गई थी, उसका गलत इस्तेमाल हो रहा है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस तरह के मामलों में विस्तृत जांच की आवश्यकता है ताकि बेवजह आरोपियों को सज़ा न दी जाए।
धारा 498A दुरुपयोग: धारा 498A का मूल उद्देश्य और इसके दुरुपयोग का बढ़ता खतरा
धारा 498A को भारतीय दंड संहिता में इस उद्देश्य से जोड़ा गया था ताकि महिलाओं को उनके ससुराल वालों द्वारा उत्पीड़न और हिंसा से बचाया जा सके। यह प्रावधान महिलाओं के प्रति हो रही घरेलू हिंसा और मानसिक क्रूरता के खिलाफ कड़ा कदम था। यह सुनिश्चित किया गया कि महिलाओं को उनके वैवाहिक जीवन में सम्मान और सुरक्षा प्राप्त हो।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट और अन्य अदालतों ने यह देखा है कि कई मामलों में इस कानून का इस्तेमाल गलत तरीके से किया जा रहा है। इसका परिणाम यह हुआ है कि यह कानून, जिसे महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए लाया गया था, कई बार पुरुषों और उनके परिवारों के उत्पीड़न का कारण बन गया है।
धारा 498A गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आती है, जिससे इस कानून के तहत आरोपी व्यक्ति की तत्काल गिरफ्तारी हो सकती है। इस प्रावधान का यही सख्त स्वरूप इसके दुरुपयोग की प्रमुख वजह बन गया है, क्योंकि यह सुनिश्चित नहीं करता कि आरोप सही हैं या नहीं। कई बार तलाक या आपसी विवाद के दौरान इस कानून का इस्तेमाल पति और ससुराल वालों को प्रताड़ित करने के लिए किया जाता है।
धारा 498A दुरुपयोग: कानून का संतुलित उपयोग
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी समाज में इस मुद्दे पर व्यापक बहस का हिस्सा है। कानून का उद्देश्य समाज में न्याय और संतुलन बनाए रखना होता है, और जब किसी कानून का दुरुपयोग होता है, तो वह न्यायिक प्रणाली के प्रति जनता के विश्वास को कमजोर करता है।
यह आवश्यक है कि महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के साथ-साथ उन पर लगाए गए झूठे आरोपों से निर्दोष लोगों की सुरक्षा भी सुनिश्चित की जाए। इसके लिए एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने धारा 498A और घरेलू हिंसा अधिनियम के दुरुपयोग पर टिप्पणी कर यह स्पष्ट कर दिया कि न्यायपालिका भी इस मुद्दे पर गंभीर है। इस तरह के कानूनों का उद्देश्य महिलाओं की सुरक्षा है, लेकिन जब उनका गलत तरीके से इस्तेमाल किया जाता है, तो यह न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करता है और निर्दोष लोगों को नुकसान पहुंचाता है।
समाज में ऐसे कानूनों का सही उपयोग सुनिश्चित करने के लिए जागरूकता और संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है, ताकि वास्तविक पीड़ितों को न्याय मिले और गलत आरोपों से निर्दोष लोगों को बचाया जा सके।
Regards:- Adv.Radha Rani for LADY MEMBER EXECUTIVE in forthcoming election of Rohini Court Delhi












