ALLAHABAD HC: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में उत्तर प्रदेश पुलिस के आचरण पर कड़ा रुख अपनाते हुए एक गर्भवती महिला और उसके नाबालिग बच्चे को थाने में छह घंटे से अधिक समय तक रखने के लिए ₹1 लाख का जुर्माना लगाया। यह हस्तक्षेप महिला के पति द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर किया गया था, जिसमें उसने अपनी आठ माह की गर्भवती पत्नी की रिहाई की मांग की थी।
ALLAHABAD HC: मामले की पृष्ठभूमि
गर्भवती महिला को 2021 में दर्ज एक कथित अपहरण मामले के सिलसिले में हिरासत में लिया गया था। मामला तब दर्ज किया गया था, जब वह 21 वर्ष की स्नातक छात्रा थी और परीक्षा देने के बाद घर नहीं लौटी थी। बाद में, महिला ने अपने प्रेमी से शादी कर ली थी, जो अब उसका पति है।
2021 में महिला के लापता होने की सूचना देने के बाद, उसके परिवार ने उसके पति के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज कराया था। इस मामले में तीन साल तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई थी, सिवाय मुखबिर का बयान दर्ज करने के।
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न्यायमूर्ति अताउ रहमान मसूदी और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने पुलिस के आचरण पर कड़ी टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि आठ महीने की गर्भवती महिला को उसके नाबालिग बच्चे के साथ पुलिस थाने में घंटों तक बैठाकर रखा गया, जो कानून की प्रक्रिया का गंभीर उल्लंघन है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया, “जांच अधिकारी का यह आचरण न केवल कानून की प्रक्रिया से दूर था, बल्कि यह अधिकारों के दुरुपयोग का स्पष्ट मामला है।”
ALLAHABAD HC: जांच अधिकारी की भूमिका पर सवाल
मामले में जांच अधिकारी, उप निरीक्षक अनुराग कुमार, को हाल ही में तैनात किया गया था। उन्होंने दावा किया कि महिला को बयान दर्ज कराने के लिए थाने लाया गया था, क्योंकि आगरा के आयुक्त ने जिले के सभी लंबित मामलों की जांच पर रिपोर्ट मांगी थी।
हालांकि, अदालत ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि जांच अधिकारी ने कई बार अपने बयान बदले, जिससे कोर्ट का विश्वास नहीं बन सका।
अदालत ने कहा कि जब पुलिस महिला के घर पहुंची, तो कोई पुरुष सदस्य मौजूद नहीं था। जांच अधिकारी के पास केस डायरी नहीं थी और उसने महिला को उसके नाबालिग बच्चे के साथ थाने ले जाने का निर्णय किया, जिसे अदालत ने “दिखावटी जांच” करार दिया।
अदालत ने यह भी नोट किया कि अपहरण के समय महिला की उम्र 21 वर्ष थी, जो यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि वह बालिग थी। फिर भी, उसे अनावश्यक रूप से हिरासत में लिया गया।
ALLAHABAD HC: मुआवजे का आदेश
अदालत ने राज्य को आदेश दिया कि वह महिला को उसके द्वारा झेली गई पीड़ा और यातना के लिए ₹1 लाख का मुआवजा दे। अदालत ने कहा, “पीड़िता की स्थिति और उसके अधिकारों का इस प्रकार उल्लंघन अस्वीकार्य है।”
हाईकोर्ट ने यूपी पुलिस महानिदेशक (DGP) को मामले की जांच के लिए कहा और पुलिस कर्मियों के आचरण में सुधार के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करने की उम्मीद जताई। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि इस मामले की जांच तीन महीने के भीतर पूरी की जाए।
अदालत ने महिला की हिरासत को अवैध ठहराते हुए तुरंत उसे रिहा करने का आदेश दिया। साथ ही, महिला और उसके नाबालिग बच्चे को उसके पति की देखरेख में सौंपने का निर्देश दिया।
यह मामला पुलिस की कार्यप्रणाली और अधिकारों के दुरुपयोग का स्पष्ट उदाहरण है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में न केवल पुलिस को फटकार लगाई, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि पीड़िता को न्याय मिले। मामले की अगली सुनवाई 11 दिसंबर को होगी, जहां पुलिस महानिदेशक द्वारा की गई कार्रवाई की रिपोर्ट अदालत के समक्ष प्रस्तुत की जाएगी।