SUPREME COURT: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद से संबंधित सभी मुकदमों को एक साथ सुनने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर प्रथम दृष्टया सहमति जताई है। अदालत का कहना है कि सभी मुकदमों को एकीकृत करके सुनने से हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों को लाभ होगा, क्योंकि इससे कई अलग-अलग कार्यवाहियों से बचा जा सकेगा।
यह मामला उन कानूनी मुद्दों से जुड़ा है, जिन्हें लेकर हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा है।
SUPREME COURT: इलाहाबाद उच्च न्यायालय का निर्णय
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह निर्णय लिया था कि कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद से संबंधित सभी मुकदमों को एकीकृत किया जाए और एक साथ सुना जाए। यह आदेश हिंदू पक्ष की ओर से दायर एक याचिका के आधार पर दिया गया था, जिसमें इन सभी मुकदमों को एक साथ एकीकृत करने की मांग की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने अब इस निर्णय को चुनौती देने वाली मुस्लिम पक्ष की याचिका पर सुनवाई शुरू की और प्रारंभिक तौर पर इस पर सहमति व्यक्त की।
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अदालत ने स्पष्ट किया कि मुकदमों के एकीकरण से दोनों पक्षों को लाभ होगा, क्योंकि इससे अलग-अलग अदालतों में होने वाली कार्यवाहियों से बचा जा सकेगा और मामले का शीघ्र समाधान हो सकेगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी भी प्रकार की जटिलताएं उत्पन्न नहीं होंगी और यह दोनों पक्षों के लिए फायदेमंद होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने यह सवाल उठाया कि मुकदमों के एकीकरण पर हस्तक्षेप करने की आवश्यकता क्यों महसूस होनी चाहिए। शाही ईदगाह समिति के वकील ने अदालत में तर्क दिया कि मुकदमों का एकीकरण जटिल हो सकता है, क्योंकि सभी मुकदमे समान प्रकृति के नहीं हैं।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इन तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि एकीकरण से कोई जटिलता उत्पन्न नहीं होगी। अदालत का मानना था कि यह कदम दोनों पक्षों के हित में है, जिससे कई अलग-अलग कार्यवाहियों से बचा जा सकेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले को स्थगित कर दिया और अब इसे अप्रैल 2024 में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।
SUPREME COURT: कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद की पृष्ठभूमि
यह मामला उस समय उत्पन्न हुआ जब हिंदू पक्ष ने सिविल कोर्ट में एक मुकदमा दायर किया था, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि शाही ईदगाह मस्जिद कृष्ण जन्मभूमि स्थल पर बनी है। हिंदू पक्ष का आरोप था कि यह मस्जिद असल में एक हिंदू मंदिर को ध्वस्त करके बनाई गई थी। हिंदू पक्ष ने अदालत से मस्जिद को उसके वर्तमान स्थान से हटाने की मांग की थी।
हिंदू पक्ष ने यह भी दावा किया कि शाही ईदगाह मस्जिद वास्तव में एक हिंदू मंदिर है और इसके समर्थन में कई ऐतिहासिक संकेत हैं। इस कारण से, उन्होंने उच्च न्यायालय से मस्जिद का निरीक्षण करने के लिए एक आयुक्त नियुक्त करने की अपील की थी।
इस मामले में, सिविल कोर्ट ने 2020 में इस मुकदमे को पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 का हवाला देते हुए खारिज कर दिया था, जिसमें धार्मिक स्थल के विवाद को 1947 के बाद न छेड़ने का प्रावधान है। हालांकि, मथुरा जिला न्यायालय ने इस फैसले को पलटते हुए इस मुकदमे को विचारणीय मान लिया। मथुरा जिला न्यायालय के इस फैसले को 2022 में स्वीकार किया गया और मामले को उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया।
इसके बाद, 2023 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हिंदू पक्ष के अनुरोध को स्वीकार करते हुए शाही ईदगाह मस्जिद का निरीक्षण करने के लिए कोर्ट कमिश्नर नियुक्त करने की अनुमति दी। इस आदेश के खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिस पर सुनवाई चल रही है।
SUPREME COURT: सुप्रीम कोर्ट का निर्णय और प्रतिक्रिया
सुप्रीम कोर्ट ने 14 दिसंबर 2023 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था और मामले की सुनवाई के लिए अप्रैल 2024 में अगली तारीख तय की थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद से जुड़े सभी मुकदमों के एकीकरण पर सहमति जताई है और इसे दोनों पक्षों के लिए फायदेमंद माना है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद से जुड़े मुकदमों के एकीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। अदालत ने दोनों पक्षों के हितों को ध्यान में रखते हुए यह फैसला लिया है, जिससे न्यायिक प्रक्रिया में गति आएगी और विभिन्न मुकदमों में समय की बचत होगी। हालांकि, यह मामला अब भी अदालत में लंबित है और आगे की सुनवाई में कई महत्वपूर्ण कानूनी मुद्दों पर चर्चा होगी।