ANDHRA PRADESH HC: आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने हाल ही में रियलिटी टेलीविजन शो बिग बॉस तेलुगु के प्रसारण को चुनौती देने वाली दो जनहित याचिकाओं (पीआईएल) को खारिज कर दिया। याचिकाओं में आरोप लगाया गया था कि यह शो अश्लीलता, फूहड़पन और अपमानजनक व्यवहार को बढ़ावा देता है, जिससे बच्चों और युवाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
ANDHRA PRADESH HC: याचिकाओं का मुख्य आरोप
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि प्रसिद्ध अभिनेता नागार्जुन द्वारा होस्ट किए जाने वाला यह शो सार्वजनिक शालीनता और नैतिकता के लिए हानिकारक है। उनका तर्क था कि शो में दिखाई जाने वाली सामग्री अश्लील और अपमानजनक है, जो समाज के नैतिक मूल्यों को कमजोर करती है।
याचिकाकर्ताओं ने यह भी मांग की कि शो के प्रसारण के लिए सेंसर प्रमाणपत्र अनिवार्य किया जाए और बिना सेंसर प्रमाणपत्र के इसे प्रसारित करने पर रोक लगाई जाए।
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मुख्य न्यायाधीश धीरज सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति रवि चीमालापति की खंडपीठ ने याचिकाकर्ताओं के तर्कों को खारिज कर दिया। न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को जो सामग्री अश्लील या अभद्र लग सकती है, वह वर्तमान समय में अधिकांश नागरिकों के लिए वैसी नहीं हो सकती।
न्यायालय ने यह भी कहा कि केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995 और इसके तहत बनाए गए नियमों में अश्लीलता, फूहड़पन और हिंसा की शिकायतों से निपटने के लिए एक व्यापक तंत्र पहले से ही मौजूद है।
ANDHRA PRADESH HC: शिकायत दर्ज करने का विकल्प
न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ताओं ने अपनी शिकायतों के निवारण के लिए इन नियमों के तहत उपलब्ध तंत्र का उपयोग नहीं किया। न्यायालय ने सुझाव दिया कि उन्हें सक्षम अधिकारियों के समक्ष अपनी शिकायत दर्ज करानी चाहिए थी।
अदालत ने कहा, “भले ही याचिकाकर्ता यह मानते हों कि शो की सामग्री अश्लील और अनैतिक है, लेकिन इसके परीक्षण के लिए तीन-स्तरीय तंत्र का पालन करना आवश्यक है, जैसा कि 1995 के अधिनियम और 1994 के नियमों में निर्दिष्ट है।”
न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि भारतीय कानून निजी टेलीविजन चैनलों पर प्रसारित कार्यक्रमों की पूर्व-सेंसरशिप का प्रावधान नहीं करता है। इसके आधार पर, अदालत ने याचिकाओं को खारिज कर दिया।
याचिकाकर्ताओं ने शो पर बच्चों और युवाओं पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि शो की सामग्री सार्वजनिक शालीनता और नैतिकता का उल्लंघन करती है।
ANDHRA PRADESH HC: सरकार और प्रतिवादियों की ओर से तर्क
केंद्र सरकार के वकील वेन्ना हेमंत कुमार ने भारत संघ का प्रतिनिधित्व किया। प्रतिवादियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ओ. मनोहर रेड्डी और सी. रघु उपस्थित हुए। उन्होंने याचिकाओं का विरोध करते हुए तर्क दिया कि शो के खिलाफ लगाए गए आरोप भ्रामक हैं और कार्यक्रम के प्रसारण पर रोक लगाने का कोई कानूनी आधार नहीं है।
न्यायालय ने याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा, “एक स्वतंत्र और प्रगतिशील समाज में, जो एक व्यक्ति के लिए अश्लील या अभद्र हो सकता है, वह अन्य के लिए मनोरंजन का साधन हो सकता है।”
अदालत के इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया कि निजी टेलीविजन चैनलों पर प्रसारित कार्यक्रमों के लिए पूर्व-सेंसरशिप का कोई प्रावधान नहीं है और शिकायतों के निवारण के लिए कानूनी प्रावधानों का पालन करना अनिवार्य है।
यह फैसला रियलिटी टेलीविजन के प्रति न्यायिक दृष्टिकोण और समाज में मनोरंजन के बदलते मापदंडों को समझने में सहायक है।