KARNATAKA HC: लोक क्षेत्र में अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं

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By headlineslivenews.com

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KARNATAKA HC,: कर्नाटक हाईकोर्ट ने अनुशासनहीनता के एक मामले में सख्त टिप्पणी करते हुए याचिकाकर्ता एस. पुरुषोत्तम की याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र में अनुशासनहीनता “संक्रामक बीमारी” की तरह होती है, जो न केवल प्रशासन की श्रृंखला को कमजोर करती है, बल्कि कुप्रशासन को भी बढ़ावा देती है।

KARNATAKA HC

यह फैसला कर्नाटक राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण (KAT) के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनाया गया, जिसमें याचिकाकर्ता ने अपने निलंबन और दो वार्षिक वेतन वृद्धि पर स्थायी रोक के आदेश को चुनौती दी थी।

KARNATAKA HC: मामले का विवरण

याचिकाकर्ता एस. पुरुषोत्तम, जो कर्नाटक राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण के कर्मचारी थे, पर अनुशासनहीनता के तीन आरोप लगाए गए:

  1. बेलगावी बेंच में रिपोर्टिंग न करना।
  2. बैंगलोर बेंच में उपस्थिति पंजी पर हस्ताक्षर करना।
  3. न्यायाधिकरण के अध्यक्ष के निर्देशों की अवहेलना करना और उनके साथ अशिष्ट भाषा का उपयोग करना।

इन आरोपों की जांच के लिए एक अनुशासनात्मक प्रक्रिया शुरू की गई, जिसमें याचिकाकर्ता को दोषी पाया गया। इसके बाद उन्हें सजा के रूप में दो वार्षिक वेतन वृद्धि पर स्थायी रोक लगाने का आदेश दिया गया।

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KARNATAKA HC: कोर्ट की टिप्पणी

जस्टिस कृष्ण एस. दीक्षित और जस्टिस सी.एम. जोशी की खंडपीठ ने अपने फैसले में सार्वजनिक क्षेत्र में अनुशासनहीनता के गंभीर प्रभावों पर जोर दिया। उन्होंने कहा:

“सार्वजनिक सेवा में अनुशासनहीनता एक गंभीर समस्या है। यह प्रशासनिक पदों की श्रृंखला को तोड़ती है और अंततः कुप्रशासन का कारण बनती है। इसे किसी भी परिस्थिति में सहन नहीं किया जा सकता।”

KARNATAKA HC: याचिकाकर्ता की दलीलें

याचिकाकर्ता ने अपने पक्ष में कई तर्क प्रस्तुत किए, जिन्हें कोर्ट ने खारिज कर दिया।

  1. स्थानांतरण आदेश का विरोध:
    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उन्हें बेलगावी बेंच में स्थानांतरित करने का आदेश अध्यक्ष के अधिकार क्षेत्र में नहीं था। उन्होंने दावा किया कि न्यायाधिकरण के अध्यक्ष के पास कर्मचारियों को स्थानांतरित करने का अधिकार नहीं है।
  2. TA और DA का मुद्दा:
    याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि स्थानांतरण के दौरान यात्रा भत्ता (TA) और दैनिक भत्ता (DA) के भुगतान की कोई गारंटी नहीं दी गई थी।
  3. स्थानांतरण की वैधता:
    याचिकाकर्ता ने स्थानांतरण आदेश को अवैध बताते हुए इसे मानने से इनकार कर दिया।

KARNATAKA HC: कोर्ट का फैसला

कोर्ट ने याचिकाकर्ता के सभी तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि:

  1. अध्यक्ष के अधिकार:
  • प्रशासनिक न्यायाधिकरण अधिनियम, 1985 की धारा 13(1ए) के तहत अध्यक्ष को कर्मचारियों पर सामान्य पर्यवेक्षण और प्रशासनिक आदेश देने का अधिकार है।
  • कर्नाटक प्रशासनिक न्यायाधिकरण सेवा नियम, 1992 के अनुसार, अध्यक्ष नियुक्ति और अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए अधिकृत हैं।
  1. TA और DA का मुद्दा:
  • कोर्ट ने पाया कि सभी कर्मचारियों को नियमानुसार यात्रा और दैनिक भत्ते का भुगतान किया जाता है।
  • याचिकाकर्ता ने खुद स्वीकार किया कि पहले कलबुर्गी बेंच में काम के दौरान उन्हें TA और DA का भुगतान किया गया था।
  1. अनुशासनहीनता का प्रभाव:
  • कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता का स्थानांतरण आदेश वैध था।
  • स्थानांतरण आदेश का पालन न करना और अध्यक्ष के साथ अशिष्ट व्यवहार करना कर्तव्यहीनता है।
  1. अनुशासनात्मक जांच:
  • जांच के दौरान याचिकाकर्ता को अपनी बात रखने का पूरा मौका दिया गया था।
  • जांच प्रक्रिया में मिले सबूतों के आधार पर याचिकाकर्ता को दोषी ठहराया गया।
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KARNATAKA HC: प्रशासनिक आदेशों की महत्ता पर कोर्ट की राय

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि:

“किसी भी कर्मचारी को यह अधिकार नहीं है कि वह अपने नियोक्ता के आदेश की वैधता पर स्वयं निर्णय ले और उसे अनदेखा करे। यदि ऐसा होता है, तो यह न केवल प्रशासन बल्कि जनहित को भी नुकसान पहुंचाएगा।”

KARNATAKA HC: अंतिम निर्णय

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कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया और याचिकाकर्ता पर ₹10,000 का जुर्माना लगाया। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अनुशासनहीनता को नियंत्रित करने के लिए प्रशासनिक आदेशों का पालन अनिवार्य है।

मामला: एस. पुरुषोत्तम बनाम कर्नाटक राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण के अध्यक्ष
पक्षकार:

  • याचिकाकर्ता: एस. पुरुषोत्तम (स्वयं उपस्थित)
  • उत्तरदाता: अधिवक्ता श्री राघवेंद्र जी. गायत्री और एजीए सरिता कुलकर्णी

यह फैसला सार्वजनिक क्षेत्र में अनुशासन और प्रशासनिक आदेशों के पालन की आवश्यकता को रेखांकित करता है। कोर्ट ने अनुशासनहीनता को गंभीरता से लेते हुए एक सख्त संदेश दिया है कि प्रशासनिक आदेशों की अवहेलना बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

KARNATAKA HC: लोक क्षेत्र में अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं
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Regards:- Adv.Radha Rani for LADY MEMBER EXECUTIVE in forthcoming election of Rohini Court Delhi

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