SUPREME COURT: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक नई जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें पंजाब और हरियाणा के बीच शंभू सीमा पर प्रदर्शन कर रहे किसानों द्वारा राष्ट्रीय राजमार्गों को अवरुद्ध करने के खिलाफ निर्देश देने की मांग की गई थी। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इसी मुद्दे पर एक अन्य जनहित याचिका पहले से ही अदालत के समक्ष लंबित है।
SUPREME COURT: लंबित मामले का जिक्र
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति मनमोहन की खंडपीठ ने कहा कि किसानों के विरोध से संबंधित एक याचिका पहले ही अदालत के समक्ष लंबित है, जिसमें उनकी मांगों और शिकायतों पर विचार के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया है।
खंडपीठ ने याचिकाकर्ता गौरव लूथरा को फटकार लगाते हुए कहा, “यह याचिका क्यों दायर की गई है? यह गलत धारणा देता है। हमने कुछ पहल की हैं और इसके बावजूद आप यहां आए हैं।”
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सितंबर में, सुप्रीम कोर्ट ने शंभू सीमा पर आंदोलन कर रहे किसानों की मांगों पर विचार करने के लिए पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश, न्यायमूर्ति नवाब सिंह की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी। इस समिति का उद्देश्य किसानों की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी और कर्ज माफी जैसी मांगों पर विचार करना है।
SUPREME COURT: याचिकाकर्ता के तर्क
आरटीआई कार्यकर्ता और पंजाब निवासी गौरव लूथरा ने याचिका में तर्क दिया कि किसानों का विरोध आम जनता के लिए असुविधाजनक हो रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि विदेशी और राष्ट्र-विरोधी ताकतें पंजाब राज्य को अस्थिर करने के लिए किसानों और उनके संघों का इस्तेमाल कर रही हैं।
लूथरा ने अपनी याचिका में सप्ताह में कम से कम एक बार शंभू सीमा पर बैरिकेड्स खोलने की मांग की, ताकि यात्रियों और स्थानीय नागरिकों को राहत मिल सके। उन्होंने यह भी कहा कि हरियाणा पुलिस ने किसानों के दिल्ली मार्च को रोकने के लिए सीमा को अवरुद्ध कर दिया है, जिससे आम जनता की कठिनाइयाँ बढ़ रही हैं।
अदालत ने याचिकाकर्ता के तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि यह याचिका प्रचार का उद्देश्य प्रतीत होती है। न्यायालय ने आदेश में उल्लेख किया, “इसी विषय पर एक जनहित याचिका पहले से ही लंबित है। हम इसी मुद्दे पर और याचिकाओं पर विचार नहीं करेंगे।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता को लंबित मामले में सहायता करने का अधिकार है। आदेश में कहा गया, “मुख्य मामले पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता न्यायालय की सहायता करने के लिए स्वतंत्र है।”
SUPREME COURT: किसानों की मांगें और वर्तमान स्थिति
किसानों ने अपनी उपज के लिए एमएसपी की कानूनी गारंटी, कर्ज माफी, और अन्य आर्थिक राहतों की मांग की है। हालांकि, हरियाणा पुलिस ने शंभू सीमा पर किसानों के दिल्ली मार्च को रोकने के लिए आंसू गैस के गोले दागे, जिसके बाद किसानों ने अपना मार्च स्थगित कर दिया।
फरवरी 2020 में लागू हुए कृषि कानूनों के खिलाफ लंबे समय तक चले किसान आंदोलन के बाद यह विरोध प्रदर्शन हुआ। हालांकि, बाद में केंद्र सरकार ने इन कानूनों को वापस ले लिया, लेकिन किसानों की अन्य मांगें अभी भी अनसुलझी हैं।
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि किसानों के विरोध से संबंधित मामलों में अदालत ने पहले से ही आवश्यक कदम उठाए हैं। नई याचिकाओं को दाखिल कर अदालत के समय और संसाधनों को बर्बाद करना उचित नहीं है। अदालत का यह फैसला प्रशासनिक प्रक्रियाओं और न्यायिक तंत्र की दक्षता को बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।