SUPREME COURT: बिना सुनवाई दूसरी अपील पर फैसला देने की प्रथा को निंदा की

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By headlineslivenews.com

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SUPREME COURT: सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की उस प्रथा पर कड़ी नाराज़गी जताई, जिसमें अपील का निपटारा बिना पक्षकारों को सुनवाई का उचित अवसर दिए किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के 2022 के एक फैसले के खिलाफ दायर अपील को मंजूरी दी और पाया कि अपीलकर्ता को नोटिस दिए बिना ही दूसरी अपील का निपटारा कर दिया गया था।

SUPREME COURT

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की खंडपीठ ने कहा,
“यह अपील केवल इस आधार पर स्वीकार की जानी चाहिए कि दूसरी अपील, जिसमें वर्तमान अपीलकर्ता प्रतिवादी नंबर 2 था, को नोटिस दिए बिना ही तय कर दिया गया।”

SUPREME COURT: बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला

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बॉम्बे हाईकोर्ट की खंडपीठ ने 2022 में दिए अपने फैसले में कहा था कि मुकदमे से संबंधित संपत्ति के बिक्री पत्र वादी पक्ष (परवतीबाई) के लिए वैध नहीं हैं। अदालत ने फैसला सुनाया कि वादी को संपत्ति में ¾ हिस्सा मिलेगा, जबकि गोद लिए बेटे शिवाजी को केवल ¼ हिस्सा दिया जाएगा। इसके अतिरिक्त, अदालत ने कहा कि शिवाजी द्वारा संपत्ति का बेचा गया हिस्सा केवल उसके ¼ हिस्से के लिए ही वैध माना जाएगा।

हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट में अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट द्वारा विधिक प्रश्न आदेश लिखने के दौरान तय किए गए थे और उसे अपनी बात रखने का अवसर नहीं मिला।

SUPREME COURT: सुप्रीम कोर्ट का रुख

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की इस प्रथा को गैरकानूनी और अन्यायपूर्ण ठहराया। कोर्ट ने 2023 में दिए अपने ही एक फैसले (सुरेश लतरुजी रामटेके बनाम सुमनबाई पांडुरंग पेटकर) का संदर्भ दिया, जिसमें कहा गया था कि हाईकोर्ट ने जल्दबाजी में पक्षकारों को सुने बिना अपील का निपटारा कर दिया।

उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था:
“अपील को बिना पर्याप्त और उचित सुनवाई के निपटाने की जल्दबाजी को स्वीकार नहीं किया जा सकता। कानून सुनवाई के महत्व पर जोर देता है, और यह सिद्धांत अदालत की प्रक्रिया में हर स्तर पर परिलक्षित होना चाहिए।”

SUPREME COURT: हाईकोर्ट को मामले पर पुनर्विचार का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए मामले को पुनः सुनवाई के लिए हाईकोर्ट को वापस भेज दिया। अदालत ने निर्देश दिया कि,
“चूँकि अपील 2009 में दायर मुकदमे से संबंधित है, हम हाईकोर्ट से अनुरोध करते हैं कि वह इसे तेजी से, अधिमानतः एक वर्ष के भीतर, निपटाए।”

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यह फैसला न्यायिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और उचित सुनवाई के महत्व को रेखांकित करता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि किसी भी स्तर पर न्यायिक जल्दबाजी और पक्षकारों के अधिकारों की अनदेखी न्याय के उद्देश्य को नुकसान पहुँचाती है।

  • अपीलकर्ता की ओर से: अधिवक्ता ऑन रिकॉर्ड अतुल बाबासाहेब डख, और अधिवक्ता दिगंता गोगोई, बिटु कुमार सिंह, प्रवीण कुमार पांडे
  • उत्तरदाताओं की ओर से: वरिष्ठ अधिवक्ता सुधांशु चौधरी, और अधिवक्ता श्रेयस गाचे

संदर्भ

  • मामला: शिवाजी बनाम परवतीबाई और अन्य
  • न्यायालय संदर्भ: 2024 INSC 917
SUPREME COURT: बिना सुनवाई दूसरी अपील पर फैसला देने की प्रथा को निंदा की
JUDGES ON LEAVE

Regards:- Adv.Radha Rani for LADY MEMBER EXECUTIVE in forthcoming election of Rohini Court Delhi✌🏻

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