ALLAHABAD HIGH COURT: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जो स्टाम्प प्राधिकरणों या स्टाम्प कलेक्टर को पंजीकरण शुल्क में कमी की वसूली का आदेश देने का अधिकार देती हो। यह फैसला उन वसूली कार्यवाहियों को रद्द करते हुए आया है जो धारा 47-ए के तहत शुरू की गई थीं, और जिनमें शिकायतकर्ता के पक्ष में किए गए बिक्री विलेखों पर स्टाम्प शुल्क की कमी का आरोप लगाया गया था।
ALLAHABAD HIGH COURT: कोर्ट का निर्णय
न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की एकल पीठ ने अपने फैसले में कहा, “भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 में कोई प्रावधान नहीं है जो प्राधिकरणों को पंजीकरण शुल्क में कमी की वसूली का आदेश देने के लिए सक्षम बनाता है। ऐसे में, बिना किसी विधायी प्रावधान के, प्राधिकरण किसी भी आदेश को वसूली के लिए पारित नहीं कर सकते हैं।”
याचिकाकर्ता, बिंदु सिंह, ने अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (वित्त और राजस्व) के आदेश को चुनौती दी थी। यह आदेश याचिकाकर्ता के पक्ष में किए गए दो बिक्री विलेखों पर स्टाम्प शुल्क में कमी के आरोपों पर आधारित था। इस आदेश में याचिकाकर्ता पर स्टाम्प शुल्क और पंजीकरण शुल्क की कमी के लिए एक दंड लगाया गया था।
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याचिकाकर्ता ने अदालत में बताया कि बिक्री विलेखों पर एक धोखेबाज द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे, जिसके कारण उसने भारतीय दंड संहिता की धाराओं 419, 420, 467, 468, 471 और 120-बी के तहत एक प्राथमिकी दर्ज की थी। इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने एक दीवानी मुकदमा भी दायर किया था जिसमें बिक्री विलेखों की निरस्तीकरण की मांग की गई थी, जिसे संपत्ति के असली मालिक के साथ समझौते के आधार पर अधीनस्थ अदालत ने स्वीकार कर लिया था।
ALLAHABAD HIGH COURT: स्टाम्प शुल्क की वापसी का आवेदन
याचिकाकर्ता ने स्टाम्प शुल्क की वापसी के लिए आवेदन किया, जिसके बाद स्टाम्प प्राधिकरण की ओर से नोटिस जारी किए गए। याचिकाकर्ता ने बताया कि नोटिस में केवल यह उल्लेख किया गया था कि “यह सामने आया है कि बिक्री विलेखों पर स्टाम्प शुल्क के भुगतान में कमी है।” याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि नोटिस में यह नहीं बताया गया कि स्टाम्प शुल्क की कमी का आधार क्या था।
कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि नोटिस में न तो स्टाम्प शुल्क की कमी की राशि का उल्लेख था और न ही अन्य विशेषताओं का। अदालत ने कहा कि “इसलिए, ऐसे नोटिसों के आधार पर कार्यवाही स्थापित करने का कोई औचित्य नहीं है। क्योंकि नोटिस में तथ्यों का उल्लेख न होने के कारण, नोटिस प्राप्त करने वाला उचित उत्तर प्रस्तुत नहीं कर सकता।”
ALLAHABAD HIGH COURT: कोर्ट की टिप्पणी
कोर्ट ने आगे कहा, “नोटिस में न तो कमी की राशि, बिक्री विलेख की तिथि या किसी अन्य उपकरण का उल्लेख है। इसके अलावा, अपीलित आदेशों में यह उल्लेख है कि संबंधित संपत्ति का निरीक्षण अधिकारियों द्वारा किया गया था, लेकिन रिकॉर्ड में यह साबित करने के लिए कुछ भी नहीं है कि यह निरीक्षण याचिकाकर्ता को सूचित किए बिना किया गया था।”
इस प्रकार, कोर्ट ने याचिकाकर्ता के पक्ष में संपन्न बिक्री विलेखों पर स्टाम्प शुल्क की कमी के आरोप लगाने वाले नोटिस को रद्द कर दिया और कहा, “यह कोर्ट यह निष्कर्ष निकालती है कि कार्यवाही उन नोटिसों के आधार पर स्थापित की गई है, जो कानून में स्थायी नहीं हैं। इसलिए, दो नोटिसों और उनमें पारित आदेशों के आधार पर की गई सभी कार्यवाही अस्थायी हैं और रद्द की जानी चाहिए।”
ALLAHABAD HIGH COURT: निष्कर्ष
अतः हाईकोर्ट ने याचिका को मंजूरी दी, और यह स्पष्ट किया कि स्टाम्प प्राधिकरणों के पास स्टाम्प शुल्क की कमी की वसूली का अधिकार नहीं है। यह निर्णय न केवल याचिकाकर्ता के लिए बल्कि अन्य प्रभावित व्यक्तियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण जीत है, जो बिना किसी उचित आधार के स्टाम्प शुल्क की वसूली का सामना कर रहे थे।
मामला शीर्षक: बिंदु सिंह बनाम राज्य उत्तर प्रदेश एवं अन्य (न्यूट्रल सिटेशन: 2024:AHC-LKO:68921)