BOMBAY HC: बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक गर्भवती महिला को, जो नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस (NDPS) अधिनियम के तहत जेल में बंद थी, छह महीने की जमानत दी। अदालत ने कहा कि जेल में प्रसव कराने से मां और बच्चे दोनों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। यह फैसला गर्भावस्था के दौरान मानवीय और संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत को रेखांकित करता है।
BOMBAY HC: अदालत की टिप्पणी
जस्टिस उर्मिला जोशी-फाल्के की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा:
“यह सही है कि सरकारी अस्पताल में इलाज और प्रसव किया जा सकता है। लेकिन जेल के वातावरण में प्रसव का प्रभाव मां और बच्चे दोनों पर पड़ेगा, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।”
कोर्ट ने जोर दिया कि सभी व्यक्तियों, चाहे वे कैदी ही क्यों न हों, गरिमा के अधिकार के हकदार हैं। यह फैसला मानवीय दृष्टिकोण और संवेदनशीलता के महत्व को दर्शाता है।
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BOMBAY HC: मामले का विवरण
आवेदिका को 30 अप्रैल, 2024 को गिरफ्तार किया गया था। उस पर आरोप है कि वह 7 किलोग्राम से अधिक गांजा के साथ पकड़ी गई थी, जो NDPS अधिनियम के तहत एक गंभीर अपराध है। गिरफ्तारी के समय वह गर्भवती थीं। अब, उनकी गर्भावस्था का अंतिम चरण चल रहा है और प्रसव की तारीख करीब है।
याचिकाकर्ता ने अदालत से गुहार लगाई कि वह जेल के वातावरण में सुरक्षित प्रसव कराने में असमर्थ हैं। गर्भावस्था में जटिलताओं के कारण उन्हें निजी अस्पताल में इलाज की आवश्यकता होगी।
कोर्ट ने कहा कि जेल में प्रसव कराने से महिला और बच्चे दोनों की शारीरिक और मानसिक स्थिति पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। यह न केवल मां के स्वास्थ्य के लिए जोखिमपूर्ण हो सकता है, बल्कि बच्चे के जन्म के बाद भी उसका असर देखा जा सकता है।
BOMBAY HC: कोर्ट का दृष्टिकोण
अदालत ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए दिशानिर्देशों का भी संदर्भ दिया। आरडी उपाध्याय बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जेल में प्रसव कराने और महिलाओं के अधिकारों को लेकर कई महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए थे।
कोर्ट ने कहा कि भले ही महिला के खिलाफ प्राथमिक साक्ष्य मौजूद हैं और वह एक गंभीर अपराध के तहत गिरफ्तार हुई हैं, लेकिन गर्भावस्था के विशेष हालातों को देखते हुए मानवीय दृष्टिकोण अपनाना जरूरी है।
“जेल में बच्चे का जन्म न केवल मां बल्कि बच्चे के भविष्य पर भी असर डाल सकता है। ऐसे मामलों में मानवीय दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है।”
BOMBAY HC: NDPS अधिनियम और जमानत के कड़े प्रावधान
NDPS अधिनियम के तहत अपराधों के लिए जमानत पाना आसान नहीं होता। विशेष रूप से, धारा 37 के तहत जमानत के प्रावधान बेहद कठोर हैं। इसमें यह सुनिश्चित किया जाता है कि आरोपी को जमानत मिलने से न तो सुरक्षा को कोई खतरा हो और न ही जांच प्रभावित हो।
हालांकि, कोर्ट ने कहा कि इस मामले में जमानत देना आवश्यक है, क्योंकि:
- महिला की गर्भावस्था एक विशेष परिस्थिति है।
- जमानत से सुरक्षा पर कोई खतरा नहीं होगा।
- जांच में कोई बाधा उत्पन्न नहीं होगी।
BOMBAY HC: आदेश और निर्देश
अदालत ने महिला को छह महीने की अस्थायी जमानत दी। इस अवधि में उन्हें अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने और बच्चे का सुरक्षित प्रसव कराने की अनुमति दी गई।
“जमानत का यह निर्णय मानवीय दृष्टिकोण और महिला एवं बच्चे के स्वास्थ्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए लिया गया है।”
- आवेदक की ओर से: अधिवक्ता एमवी राय
- उत्तरदाता की ओर से: अतिरिक्त लोक अभियोजक एसवी नराले
BOMBAY HC: मानवीय दृष्टिकोण की आवश्यकता
इस मामले ने न्यायपालिका द्वारा कैदियों के अधिकारों और उनकी गरिमा की रक्षा के प्रति संवेदनशीलता को उजागर किया। अदालत ने यह सुनिश्चित किया कि गर्भवती महिला को जेल के कठोर वातावरण में बच्चे को जन्म देने के तनाव से बचाया जाए।
यह फैसला कैदियों के अधिकारों और उनके प्रति संवेदनशीलता के महत्व को रेखांकित करता है, साथ ही यह संदेश भी देता है कि कानून का पालन करते हुए भी मानवीयता को बनाए रखना जरूरी है।
मामला: सुरभि बनाम महाराष्ट्र राज्य
न्यायालय का निष्कर्ष:
जमानत केवल कानूनी अधिकार ही नहीं, बल्कि विशेष परिस्थितियों में मानवीयता का भी प्रतीक है।
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