भगवान परशुराम सनातन धर्म में भगवान परशुराम को जगत के पालनहार भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है। हर साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को परशुराम द्वादशी का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।
“परशुराम द्वादशी: भगवान परशुराम की पूजा और व्रत का महत्व”
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इस बार यह पवित्र तिथि 19 मई को पड़ रही है। परशुराम द्वादशी के दिन भगवान परशुराम और श्री हरि की विशेष पूजा-अर्चना और व्रत करने का विधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन विधिपूर्वक पूजा करने और व्रत रखने से भक्तों को संतान प्राप्ति, लंबी आयु, और समृद्धि का वरदान मिलता है। इसके साथ ही, परशुराम की कृपा से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
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“परशुराम द्वादशी: भगवान परशुराम की पूजा और उनकी स्तुति का महत्व”
हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को परशुराम द्वादशी का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष परशुराम द्वादशी 19 मई को है। भगवान परशुराम को जगत के पालनहार भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है। इस दिन भगवान परशुराम और श्री हरि की विशेष पूजा-अर्चना और व्रत का आयोजन किया जाता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, परशुराम द्वादशी का व्रत करने से संतान प्राप्ति की संभावना बढ़ती है। इस पावन दिन पर पूजा के दौरान परशुराम स्तुति का पाठ अवश्य करना चाहिए। ऐसा करने से भक्तों को जीवन में शुभ फल की प्राप्ति होती है और उनका जीवन सुखमय और समृद्धिशाली बनता है। आइए, जानते हैं परशुराम स्तुति के पाठ के महत्व के बारे में।
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“परशुराम द्वादशी: भगवान की पूजा में ध्यान और शुद्धता का महत्व”
परशुराम द्वादशी के अवसर पर भगवान परशुराम की पूजा करते समय विशेष ध्यान रखना चाहिए कि पूजा सामग्री शुद्ध और विधि-विधान से तैयार की गई हो। इस दिन प्रातःकाल स्नानादि कर भगवान परशुराम के चित्र या प्रतिमा के सामने दीप प्रज्वलित करें और पुष्प, धूप, चंदन, और नैवेद्य अर्पित करें। इसके पश्चात भगवान विष्णु और परशुराम के मंत्रों का जाप करें।
व्रतधारी इस दिन व्रत का पालन करते हुए भगवान परशुराम की कथा का श्रवण करें और दिनभर भगवान के ध्यान में लीन रहें। ऐसा करने से भगवान परशुराम की कृपा प्राप्त होती है और संतान सुख, मानसिक शांति, और जीवन में सफलताओं का आशीर्वाद मिलता है।
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इन मंत्रों का करें जाप
ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नो परशुराम: प्रचोदयात्।।
‘ॐ रां रां ॐ रां रां परशुहस्ताय नम:।।
‘ॐ ब्रह्मक्षत्राय विद्महे क्षत्रियान्ताय धीमहि तन्नो राम: प्रचोदयात्।।’
परशुराम स्तुति (Parshuram Stuti Lyrics)
कुलाचला यस्य महीं द्विजेभ्यः प्रयच्छतः सोमदृषत्त्वमापुः।
बभूवुरुत्सर्गजलं समुद्राः स रैणुकेयः श्रियमातनीतु॥
नाशिष्यः किमभूद्भवः किपभवन्नापुत्रिणी रेणुका
नाभूद्विश्वमकार्मुकं किमिति यः प्रीणातु रामत्रपा।
विप्राणां प्रतिमंदिरं मणिगणोन्मिश्राणि दण्डाहतेर्नांब्धीनो
स मया यमोऽर्पि महिषेणाम्भांसि नोद्वाहितः॥
पायाद्वो यमदग्निवंश तिलको वीरव्रतालंकृतो
रामो नाम मुनीश्वरो नृपवधे भास्वत्कुठारायुधः।
येनाशेषहताहिताङरुधिरैः सन्तर्पिताः पूर्वजा
भक्त्या चाश्वमखे समुद्रवसना भूर्हन्तकारीकृता॥
द्वारे कल्पतरुं गृहे सुरगवीं चिन्तामणीनंगदे पीयूषं
सरसीषु विप्रवदने विद्याश्चस्रो दश॥
एव कर्तुमयं तपस्यति भृगोर्वंशावतंसो मुनिः
पायाद्वोऽखिलराजकक्षयकरो भूदेवभूषामणिः॥
॥ इति परशुराम स्तुति ॥