DELHI RIOTS: 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगों के दौरान 22 वर्षीय मोनिश की मौत के मामले में कड़कड़डूमा न्यायालय ने हाल ही में पाँच आरोपियों को गैर इरादतन हत्या के लिए दोषी ठहराया। यह फैसला सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला ने सुनाया।
DELHI RIOTS: मामले की पृष्ठभूमि
फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी थी, जिसमें कई लोगों की जान गई और संपत्तियों को व्यापक नुकसान हुआ। इसी दौरान 22 वर्षीय मोनिश (जिसे आदेश में कहीं-कहीं मोसिन भी कहा गया है) की बेरहमी से हत्या कर दी गई।
आरोपियों ने कथित तौर पर एक भीड़ का नेतृत्व किया जिसने मोनिश पर लाठियों और अन्य हथियारों से हमला किया। दिल्ली पुलिस ने सात आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया, जिन पर गैरकानूनी सभा, हत्या, दंगा, चोरी, और आपराधिक साजिश के आरोप लगाए गए थे।
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न्यायालय ने आशीष गोली, अरुण मुन्ना, अमन कश्यप, प्रदीप राय और देवेंद्र यादव को गैर इरादतन हत्या के लिए दोषी ठहराया।
हालांकि, न्यायालय ने यह भी माना कि इन पाँचों ने मोनिश को घातक चोटें नहीं पहुंचाईं, जिससे उसकी मौत हुई। इस पर न्यायाधीश प्रमाचला ने कहा:
“जब कोई पूरी तरह से आश्वस्त नहीं है कि इन अभियुक्तों का इरादा पीड़ित के सिर पर वार करने का था या ये वार इन अभियुक्तों द्वारा किए गए थे, तो सिर पर लगी चोट के लिए किसी विशिष्ट आरोपी की भूमिका तय न होने के कारण उनकी जिम्मेदारी गैर इरादतन हत्या तक सीमित होनी चाहिए।”
DELHI RIOTS: अन्य आरोपियों को बरी किया गया
कोर्ट ने कृष्णकांत और राहुल भारद्वाज को बरी कर दिया, जिन्हें मोनिश का मोबाइल फोन बेचने का आरोपी बनाया गया था। न्यायालय ने पाया कि वे भीड़ का हिस्सा नहीं थे और अभियोजन पक्ष चोरी के आरोप को साबित करने में असफल रहा।
दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व विशेष लोक अभियोजक मधुकर पांडे और अधिवक्ता दक्ष सचदेवा ने किया। उन्होंने दावा किया कि पाँचों आरोपी दंगों के दौरान सक्रिय भीड़ का हिस्सा थे और उन्होंने मोनिश पर जानलेवा हमला किया। पुलिस ने इन आरोपों के समर्थन में गवाहों और फोरेंसिक साक्ष्य प्रस्तुत किए।
आरोपियों की ओर से अधिवक्ता रक्षपाल सिंह और सुजीत कुमार ने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष के पास उनके मुवक्किलों की घटना में सीधी भूमिका साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं। उन्होंने यह भी दावा किया कि उनके मुवक्किलों का आचरण निर्दोष था और वे भीड़ का हिस्सा नहीं थे।
DELHI RIOTS: मोनिश की मौत और हिंसा का दौर
घटना के दिन, दंगों के दौरान एक भीड़ ने मोनिश पर लाठियों और डंडों से हमला किया। मोनिश की मौत के बाद उसका शव घटनास्थल के पास पाया गया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सिर पर चोटों को मौत का मुख्य कारण बताया गया।
न्यायालय ने सबूतों और गवाहियों के आधार पर पाँच आरोपियों को दोषी ठहराया, लेकिन इस बात पर जोर दिया कि हत्या के इरादे का स्पष्ट प्रमाण नहीं था। इसके चलते उन्हें हत्या के बजाय गैर इरादतन हत्या का दोषी ठहराया गया।
यह फैसला दंगों के दौरान हुई हिंसा और उससे संबंधित मामलों में न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। अदालत ने इस मामले में तेजी से निर्णय लिया, लेकिन अन्य आरोपियों की भूमिका को खारिज करते हुए साक्ष्य-आधारित न्याय का पालन किया।
DELHI RIOTS: निष्कर्ष
दिल्ली दंगों की यह घटना सामाजिक ताने-बाने को हिला देने वाली थी। अदालत के फैसले ने यह संदेश दिया कि हिंसा के दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा, लेकिन न्यायालय साक्ष्य और तथ्यों के आधार पर ही निर्णय लेगा। यह फैसला अन्य लंबित मामलों के लिए भी एक उदाहरण के रूप में काम करेगा।