शादी एक पति अनेक 2024: शादी एक भाई से होती है लेकिन पति सारे भाई बन जाते है 

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By headlineslivenews.com

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शादी एक पति अनेक 2024: हिमाचल प्रदेश का सिरमौर जिला!… हिमाचल प्रदेश की अजीब गजब प्रथा आज भी संस्कृति का हिस्सा बनी हुई है लेकिन हैरान करने वाली बात यह है की यह प्रथा आज भी केसे चल रही है जानते है इस पूरी खबर मे अब आपको ले चलता हूँ हिमाचल प्रदेश के सिरमोर जिले की ऊंची-नीची पहाड़ियों से घिरे इलाके में ऊपर की तरफ बढ़ें तो एक खास गंध ( महक ) नाक से होते हुए गले में अटकती है ।

शादी एक पति अनेक 2024: शादी एक भाई से होती है लेकिन पति सारे भाई बन जाते है 

हरे पत्ते-पत्तियों की, चूना पत्थरों की, देवदार की और रिवाजों की. मिली-जुली यही महक वहां की औरतों में भी बसती है. वे औरतें, जो जमीन-घर न बंटने देने के लिए खुद बंट जाती हैं. कई-कई भाइयों के बीच. ये ‘जोड़ीदारां’ प्रथा है, जहां चूल्हा साझा रह सके, इसलिए पत्नी भी साझेदारी में रह जाती है.

इस जोड़ीदार प्रथा की सच्ची कहानी को बताने के लिए आपको एक परिवार से मिलाता हूँ लेकिन इस कहानी मे प्राइवसी को ध्यान मे रखते हुए नाम ओर तस्वीरों को छुपाया गया है ।  सिरमोर जिले मे रहने वाली निरोपदी 

शादी एक पति अनेक 2024: शादी एक भाई से होती है लेकिन पति सारे भाई बन जाते है 

शादी एक पति अनेक 2024: हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले की जोड़ीदारां प्रथा

हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले की ऊंची-नीची पहाड़ियों में एक अनूठी प्रथा आज भी चल रही है, जिसे जोड़ीदारां कहा जाता है। इस प्रथा के तहत एक ही परिवार के कई भाइयों की एक ही पत्नी होती है। यह प्रथा सदियों से हाटी समुदाय के बीच प्रचलित है और इसका उद्देश्य जमीन और संपत्ति को बांटने से बचाना है।

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निरोपदी की अजीब कहानी : शादी एक पति अनेक 2024

इस प्रथा की जमीनी हकीकत को समझने के लिए हम सिरमौर जिले के जामना गांव की निरोपदी से मिलते हैं। निरोपदी 25 साल पहले बड़े भाई से शादी करके अपने ससुराल आई थी। उस समय उसका छोटा देवर स्कूल जाता था। कुछ समय बाद जब वह बड़ा हुआ, तो घरवालों ने निरोपदी से कहा कि उसे भी अपने पति के रूप में स्वीकार कर ले क्योंकि उसका बड़ा भाई अक्सर घर से बाहर रहता था। निरोपदी ने परिवार की गरीबी और परिस्थिति को देखते हुए इस रिश्ते को मंजूर कर लिया। अब दोनों भाइयों के साथ उसका रिश्ता है और दोनों भाइयों के साथ एक एक पारी लगाकर बहुपतित्व का संबंध निभाया।

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दिलीप जोशी का उदय:2024

दिलीप जोशी का उदय:2024 दिलीप भारतीय फिल्म उद्योग के अग्रदूत बन उभरे। उनकी निरंतर संवादों और अभिनय क्षमता ने उन्हें सम्मान की ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उनके निर्देशन में कई चित्रपटों ने साहित्यिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

उस समय घर में एक ही कमरा था, जिसमें सास-ससुर और वह सब सोते थे। गरीबी इतनी थी कि पूरा ऊन का स्वेटर भी एक ही था, जिसे सास और निरोपदी बारी-बारी से पहनते थे। धीरे-धीरे, परिवार ने निरोपदी को जोड़ीदारां प्रथा अपनाने के लिए समझाना शुरू किया।

सास ने कहा, “कर ले बेटा, घर जुड़ा रहेगा।” पति ने कहा, “मान जाओ, मैं बाहर रहूं तो वो तुम्हारा ध्यान रखेगा।” ससुर ने कहा, “इतनी गरीबी है, तुम राजी हो तो उसका भी घर बस जाएगा।” निरोपदी ने स्थिति को देखते हुए हां कर दी। इस तरह, उसने अपने देवर को भी पति के रूप में स्वीकार कर लिया। अब उनके चार जॉइंट बच्चे हैं।

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शादी एक पति अनेक 2024: जीवनशैली और कठिनाइयाँ

निरोपदी का जीवन पहाड़ी नदी की तरह फुर्तीला और मजबूत है। वह बिना किसी झिझक के कैमरे के सामने खुलकर बात करती हैं। निरोपदी ने बताया कि शुरूआत में इस पारी वाले जीवन में तकलीफ होती थी और एक अनिश्चितता भी रहती थी कि कहीं छोटा देवर उसे छोड़कर दूसरी शादी न कर ले। इस डर के चलते वह थकी होने पर भी मना नहीं कर पाती थी। धीरे-धीरे दोनों ने इस व्यवस्था को स्वीकार कर लिया।

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शादी एक पति अनेक 2024: बच्चों की जिम्मेदारी

निरोपदी ने बताया कि उनके बच्चों को भी दोनों भाइयों के बीच बांट दिया गया है। छोटे देवर को एक बेटा मिला और बड़े देवर को तीन बच्चे। सभी बच्चों की जिम्मेदारी दोनों ने मिलकर निभाई है।

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गिरि-पार का हाटी समुदाय मे शादी एक पति अनेक 2024:

गिरि नदी सिरमौर जिले को दो भागों में बांटती है – गिरि-आर और गिरि-पार। गिरि-पार क्षेत्र में हाटी समुदाय बसता है, जिसे हाल ही में अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला है। इस समुदाय में बहुपतित्व की प्रथा आम है।

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जोड़ीदारां प्रथा का सामाजिक प्रभाव

जोड़ीदारां प्रथा के चलते समाज में महिलाओं की स्थिति जटिल हो गई है। जहां एक तरफ यह प्रथा जमीन और संपत्ति को बांटने से रोकने में मदद करती है, वहीं दूसरी तरफ महिलाओं के लिए यह एक कठिनाई भरा जीवन भी है। उनके लिए यह एक अनचाही जिम्मेदारी और दबाव का कारण बन सकता है। समाज के बुजुर्ग इसके पक्ष में तर्क देते हैं, लेकिन इसके पीछे छिपे दर्द और तकलीफें आसानी से नजर आ जाती हैं।

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पारंपरिक जीवनशैली

निरोपदी और उनके समुदाय की जीवनशैली बेहद पारंपरिक और प्राकृतिक है। पहाड़ी इलाकों में रहने वाले ये लोग हरी सब्जियों और जड़ी-बूटियों पर निर्भर रहते हैं। निरोपदी ने हमें बिच्छू बूटी नामक पौधे के बारे में बताया, जिसे वे हरी सब्जी न मिलने पर खाते हैं।

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जीवन की चुनौतियां और समझौते

निरोपदी ने बताया कि शुरू में इस व्यवस्था के कारण काफी झिझक और दुख था। जब देवर स्कूल जाता था, तो वह उसकी देखभाल करती थी, लेकिन बाद में उसे पति का हक भी देना पड़ा। गांव में मिलने पर लोग देखते और सोचते थे, लेकिन धीरे-धीरे आदत हो गई।

पूजा-पाठ के समय दोनों पति अगल-बगल बैठते हैं, और निरोपदी बीच में। शादी-ब्याह और दान-पुण्य के समय ‘तीनों का जोड़ा’ बनता है। मायके जाने पर भी दोनों जमाई होने के कारण शिकायत होती है।

बच्चों का बंटवारा

चार बच्चों के बंटवारे के बारे में निरोपदी ने बताया कि तीन लड़के-लड़की और उसकी शादी बड़े भाई के हिस्से आई, जबकि एक बेटा छोटे को दे दिया। लिखित तौर पर कुछ हुआ या नहीं, यह उसे नहीं पता, लेकिन कस्बे में कुछ न कुछ जरूर हुआ होगा।

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सिरमौर की पारंपरिक जीवनशैली

सिरमौर जिले के घरों में दरवाजे काफी नीचे होते हैं, ताकि पूरे कद का आदमी आराम से न चल सके। निरोपदी के घर में एक छोटा सा कमरा हैं, जिनमें लकड़ी पर रंगीन काम किया गया है। निरोपदी ने बताया कि वह किस जतन से सामान रखती-उठाती हैं, मानो घर की चीजों से भी उसका ब्याह हुआ हो।

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प्यार और ध्यान

जब पूछा गया कि प्यार कौन ज्यादा करता है, तो निरोपदी ने कहा, “प्यार…वो तो बस ऐसे ही। क्या करना है उसका।” उसने बताया कि छोटा देवर ज्यादा ध्यान रखता है। जब वह बीमार होती है या कुछ इच्छा होती है, तो उसे सब याद रहता है। बड़ा वाला तो मजदूरी के लिए शहर जाता है, साथ में यही रहता है।

निरोपदी की जिम्मेदारी

जब निरोपदी से पूछा गया कि वह किससे ज्यादा जुड़ी हैं, तो उसने संभलकर जवाब दिया, “हम फर्क नहीं करते। मन में जो भी चले, चेहरे और कामकाज में उसका असर नहीं आने देते। दोनों को दौड़कर ठंडा पानी पूछूंगी। खाना दोनों को एक-सा परोसूंगी। दोनों के कपड़े उसी जतन से धोऊंगी।”

दो आदमियों की फरमाइश और इच्छाओं को झेलते हुए वह कभी थक जाती है, लेकिन घर की कमी और मजबूरी के कारण सब सह लिया। उसे डर लगता था कि अगर उसके पति दूसरी शादी कर लेंगे, तो इतने बच्चों को कौन देखेगा। अब तो वे लोग भी समझते हैं और जबर्दस्ती नहीं करते।

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अंतर्दृष्टि

निरोपदी की आंखें शिकायत से खाली थीं, मानो सालों पहले ही सब चुक गया हो। बाकी है तो केवल 25 सालों की आदत। जोड़ीदारां प्रथा सिरमौर जिले के हाटी समुदाय की एक पुरानी और अनूठी परंपरा है। यह प्रथा सामाजिक और आर्थिक कारणों से शुरू हुई थी, लेकिन इसके परिणामस्वरूप महिलाओं को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। निरोपदी जैसी महिलाएं इस प्रथा को निभाते हुए अपने परिवार और समाज के लिए एक मिसाल हैं। हालांकि, समय के साथ इसमें बदलाव आ रहे हैं और आने वाले दिनों में इसमें और परिवर्तन की संभावना है।

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जोड़ीदारां प्रथा या बहुपतित्व प्रथा क्या है

जोड़ीदारां प्रथा को आप कब से जानते है

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जोड़ीदारां प्रथा या बहुपतित्व प्रथा क्या है

क्या हाटी समुदाय की जोड़ीदारां प्रथा को समाप्त कर देना चाहिए

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जोड़ीदारां प्रथा या बहुपतित्व प्रथा क्या है

जोड़ीदारां प्रथा कितनी सही है

निष्कर्ष

जोड़ीदारां प्रथा सिरमौर जिले की एक महत्वपूर्ण और जटिल परंपरा है। यह प्रथा समाज और परिवार की संरचना को बनाए रखने में मदद करती है, लेकिन इसके परिणामस्वरूप महिलाओं को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। निरोपदी जैसी महिलाएं इस प्रथा को निभाते हुए अपने परिवार के लिए समर्पित रहती हैं और अपनी जिम्मेदारियों को निभाती हैं। समय के साथ, इस प्रथा में बदलाव की संभावना है, लेकिन यह देखना होगा कि यह परिवर्तन किस दिशा में जाता है।

जोड़ीदारां प्रथा सिरमौर जिले के हाटी समुदाय की एक पुरानी और अनूठी परंपरा है, जो आज भी जीवित है। यह प्रथा सामाजिक और आर्थिक कारणों से शुरू हुई थी, लेकिन इसके परिणामस्वरूप महिलाओं को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। निरोपदी जैसी महिलाएं इस प्रथा को निभाते हुए अपने परिवार और समाज के लिए एक मिसाल हैं। हालांकि, समय के साथ इसमें बदलाव आ रहे हैं और आने वाले दिनों में इसमें और परिवर्तन की संभावना है।

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