SUPREME COURT: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक ऐतिहासिक आदेश में उत्तर प्रदेश के बार एसोसिएशनों को अदालती कार्य दिवसों पर हड़ताल या न्यायिक कार्य से विरत रहने से सख्ती से रोक दिया। यह आदेश फैजाबाद जिला बार एसोसिएशन की हड़ताल से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान दिया गया।
SUPREME COURT: सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि बार एसोसिएशन कार्यदिवस में हड़ताल का प्रस्ताव पारित करती है, तो संबंधित उच्च न्यायालय उन पदाधिकारियों के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेते हुए दंडात्मक कार्रवाई कर सकता है। यह कार्रवाई उनके पदों से हटाने तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि अन्य कठोर कदम भी उठाए जा सकते हैं।
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पीठ ने कहा, “बार एसोसिएशन अदालती कार्य दिवसों पर हड़ताल का कोई प्रस्ताव पारित नहीं करेगी। यदि ऐसा होता है, तो उच्च न्यायालय संबंधित पदाधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेगा। इनमें पद से हटाने जैसे कठोर कदम भी शामिल हो सकते हैं।”
यह आदेश केवल फैजाबाद जिला बार एसोसिएशन तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि उत्तर प्रदेश के सभी जिला बार एसोसिएशनों पर लागू होगा।
SUPREME COURT: उच्च न्यायालय समिति का गठन
सुप्रीम कोर्ट ने हड़ताल के मामलों की निगरानी के लिए तीन न्यायाधीशों की एक उच्च न्यायालय समिति के गठन का भी निर्देश दिया। यह समिति बार एसोसिएशनों की गतिविधियों पर नजर रखेगी और यह सुनिश्चित करेगी कि हड़ताल जैसे अनुचित कदम न उठाए जाएं।
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि किसी भी प्रकार की हड़ताल या न्यायिक कार्य से विरत रहने की घटना के लिए संबंधित पदाधिकारियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई होनी चाहिए। इसमें किसी भी प्रकार की नरमी या उदारता नहीं बरती जाएगी।
यह आदेश फैजाबाद जिला बार एसोसिएशन के मामलों को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 8 अगस्त के फैसले के खिलाफ एसोसिएशन की अपील पर दिया गया। उच्च न्यायालय ने एसोसिएशन के कामकाज की निगरानी और 2024 तक गवर्निंग काउंसिल के चुनाव सुनिश्चित करने के लिए एक समिति का गठन किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने समिति की सराहना करते हुए कहा कि उसने फैजाबाद बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों के चुनाव शांतिपूर्ण और सफलतापूर्वक आयोजित किए। हालांकि, समिति को आगे जारी रखना है या नहीं, इसका निर्णय उच्च न्यायालय के विवेक पर छोड़ दिया गया।
SUPREME COURT: बार एसोसिएशनों पर आदेश का प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट का यह सख्त आदेश न केवल बार एसोसिएशनों की अनुशासनहीनता पर लगाम लगाएगा, बल्कि अदालती कार्य में किसी भी प्रकार की बाधा को समाप्त करने का काम करेगा। यह आदेश देशभर में बार एसोसिएशनों के लिए एक नजीर बनेगा और न्यायिक कार्यप्रणाली की गरिमा बनाए रखने में सहायक होगा।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल हड़तालों के प्रति जीरो टॉलरेंस नीति को दर्शाता है, बल्कि यह न्यायिक प्रक्रिया के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। इसके साथ ही यह आदेश बार एसोसिएशनों को उनके दायित्वों की याद दिलाता है और पदाधिकारियों को अनुशासनहीनता के गंभीर परिणामों के प्रति सचेत करता है।