संतान सप्तमी व्रत: संतान सप्तमी का व्रत संतान की सुख-समृद्धि और रक्षा के लिए रखा जाता है। इसे भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे मुक्ताभरण सप्तमी, संतान सप्तमी, और दुबड़ी सप्तमी। यह व्रत विशेष रूप से संतान सुख की प्राप्ति के लिए किया जाता है और माता-पिता अपने संतान की लंबी उम्र और खुशहाली के लिए इसे पूरी श्रद्धा और नियम के साथ रखते हैं।
संतान सप्तमी व्रत का आयोजन हर साल संतान सप्तमी तिथि को किया जाता है। यह तिथि आमतौर पर भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को आती है। इस दिन विशेष पूजा का महत्व है, जिसमें संतान सुख प्राप्ति के लिए विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं।
पूजा विधि के अंतर्गत सबसे पहले घर के पूजा स्थल को स्वच्छ करके वहां एक पवित्र आसन बिछाएं। इसके बाद भगवान गणेश की पूजा करें और फिर संतान सुख के लिए विशेष पूजा करें। व्रति देवी या देवता की उपासना के बाद, विशेष रूप से संतान के स्वस्थ जीवन और समृद्धि की प्रार्थना की जाती है। पूजा के दौरान, व्रति को एक दिन का उपवासी रहना चाहिए और केवल फल-फूल का सेवन करना चाहिए।
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संतान सप्तमी व्रत का महत्व अत्यधिक है क्योंकि यह संतान के स्वास्थ्य, लंबी उम्र और खुशहाली की कामना के लिए किया जाता है। यह व्रत परिवार में सुख-शांति और संतान के भविष्य को उज्जवल बनाने में सहायक माना जाता है।
संतान सप्तमी व्रत: पूजा विधि, मुहूर्त और महत्व
भाद्रपद मास की सप्तमी तिथि को संतान सप्तमी का व्रत विशेष महत्व रखता है। इस दिन को विभिन्न भागों में विभिन्न नामों से जाना जाता है—मुक्ताभरण सप्तमी, संतान सप्तमी, और दुबड़ी सप्तमी। यह व्रत विशेष रूप से संतान सुख की प्राप्ति और उनकी लंबी आयु के लिए किया जाता है। इस दिन महिलाएं अपने संतान की मंगल कामना करती हैं, जबकि जिनके पास संतान नहीं है, वे संतान प्राप्ति के लिए भी यह व्रत करती हैं।
संतान सप्तमी व्रत: संतान सप्तमी कब है?
इस वर्ष संतान सप्तमी का व्रत 10 सितंबर 2024, मंगलवार को रखा जाएगा। सप्तमी तिथि की शुरुआत 9 सितंबर की रात 9 बजकर 54 मिनट पर होगी और यह 10 सितंबर की रात 11 बजकर 13 मिनट तक रहेगी। चूंकि सप्तमी तिथि का उदया काल 10 सितंबर को होगा, इसलिए संतान सप्तमी का व्रत 10 सितंबर को ही किया जाएगा।
संतान सप्तमी व्रत: संतान सप्तमी पूजा विधि
- तैयारी: सबसे पहले पूजा स्थल को स्वच्छ करें और वहां एक पवित्र आसन बिछाएं। पूजा के लिए एक विशेष स्थान तैयार करें जहां आप देवी-देवताओं की मूर्तियां या चित्र स्थापित करेंगे।
- गणेश पूजा: पूजा की शुरुआत गणेश जी की पूजा से करें। गणेश जी को नए वस्त्र, फूल, धूप और दीप अर्पित करें। यह सुनिश्चित करें कि सभी पूजा सामग्री स्वच्छ हो।
- दुबड़ी माता की पूजा: दुबड़ी सप्तमी पर विशेष रूप से दुबड़ी माता की पूजा की जाती है। दुबड़ी माता को लाल चूड़ियां, सिंदूर और मिठाइयों का भोग अर्पित करें। दुबड़ी माता के मंत्रों का जाप करें और संतान के सुखद भविष्य के लिए प्रार्थना करें।
- व्रति की स्थिति: इस दिन व्रति को उपवासी रहना चाहिए और केवल फल, फूल और दूध का सेवन करना चाहिए।
- संतान के लिए प्रार्थना: संतान के अच्छे स्वास्थ्य, लंबी आयु और समृद्धि के लिए विशेष प्रार्थना करें। अगर संतान नहीं है तो संतान प्राप्ति की कामना भी करें।
संतान सप्तमी व्रत: संतान सप्तमी पूजा मुहूर्त
संतान सप्तमी की पूजा के लिए कुछ खास शुभ मुहूर्त होते हैं, जिनमें पूजा करना शुभ रहता है:
- अमृत चौघड़िया: सुबह 6 बजकर 27 मिनट से 8 बजे तक।
- शुभ चौघड़िया: सुबह 9 बजकर 32 मिनट से 11 बजकर 5 मिनट तक।
इन दोनों मुहूर्त में पूजा करना विशेष लाभकारी माना जाता है। पूजा को दिन के पहले हिस्से में ही संपन्न कर लें, ताकि व्रति के लिए शुभ समय का पूरा लाभ मिल सके।
संतान सप्तमी का व्रत विशेष रूप से संतान के सुख, समृद्धि और लंबी आयु के लिए किया जाता है। यह व्रत परिवार में सुख-शांति और संतान के उज्जवल भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। पूजा विधि का पालन और शुभ मुहूर्त का ध्यान रखते हुए व्रत को पूरी श्रद्धा और नियम के साथ करना चाहिए।