SUPREME COURT: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को 1987 के हाशिमपुरा नरसंहार मामले में 8 दोषियों को जमानत दी। यह नरसंहार उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के हाशिमपुरा इलाके में हुआ था, जिसमें 42 मुस्लिम लोगों की निर्मम हत्या कर दी गई थी। न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने दोषियों की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया।
SUPREME COURT: जमानत याचिका के तर्क
दोषियों के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता अमित आनंद तिवारी ने तर्क दिया कि दोषियों की सजा के खिलाफ अपील पिछले छह वर्षों से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। उन्होंने यह भी बताया कि यह अपील कई बार सूचीबद्ध की गई, लेकिन अभी तक इस पर सुनवाई शुरू नहीं हुई।
तिवारी ने कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2018 में दोषियों को दोषी करार देते हुए निचली अदालत के बरी करने के फैसले को पलट दिया था। उनका तर्क था कि यह निर्णय गलत आधार पर आधारित था। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि दोषियों का आचरण जेल में अनुकरणीय रहा है और वे 2018 से लगातार जेल में बंद हैं।
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जमानत याचिका में यह भी कहा गया कि, “दिल्ली उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के सुविचारित निर्णय को खारिज किया, जबकि साक्ष्यों के आधार पर दो संभावित दृष्टिकोण मौजूद थे। यह उच्च न्यायालय का एक अनुचित निर्णय था।”
दोषियों की दलीलों को सुनने के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत देने का आदेश दिया।
SUPREME COURT: हाशिमपुरा नरसंहार: एक क्रूर घटना
यह घटना 22 मई 1987 को घटी थी, जब उत्तर प्रदेश प्रांतीय सशस्त्र बल (पीएसी) ने हाशिमपुरा इलाके से 42 मुस्लिम पुरुषों को हिरासत में लिया। उन्हें एक ट्रक में बैठाकर पास की एक नहर पर ले जाया गया, जहां उन्हें गोली मार दी गई। शवों को नहर में फेंक दिया गया।
मार्च 2015: दिल्ली की एक ट्रायल कोर्ट ने 16 पीएसी कर्मियों को अपर्याप्त साक्ष्य के आधार पर बरी कर दिया।
31 अक्टूबर 2018: दिल्ली उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलटते हुए दोषियों को दोषी करार दिया। न्यायमूर्ति एस. मुरलीधर और विनोद गोयल की पीठ ने यह निर्णय सुनाया।
2018 से अब तक: दोषी सुप्रीम कोर्ट में अपने फैसले के खिलाफ अपील लंबित होने के बावजूद जेल में बंद हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक दोषियों की अपील पर अंतिम निर्णय नहीं लिया जाता, तब तक उन्हें जेल में रखना न्यायोचित नहीं है। अदालत ने यह भी कहा कि उनके आचरण और अपील की लंबी अवधि को देखते हुए उन्हें जमानत दी जा रही है।
SUPREME COURT: घटना का महत्व
हाशिमपुरा नरसंहार भारतीय न्यायिक और सामाजिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण मामला है। यह घटना न केवल धार्मिक हिंसा का उदाहरण है, बल्कि पुलिस और सुरक्षा बलों की भूमिका पर भी सवाल खड़े करती है।
दोषियों की अपील पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई अभी लंबित है। इस मामले का अंतिम निर्णय आने में और समय लग सकता है। वहीं, यह जमानत आदेश पीड़ित परिवारों और मानवाधिकार संगठनों के लिए निराशा का कारण हो सकता है, जो वर्षों से न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
हाशिमपुरा नरसंहार केस भारत में धार्मिक और सांप्रदायिक हिंसा के मामलों में न्यायिक प्रक्रिया की जटिलता को दर्शाता है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अंतिम फैसला कब और क्या सुनाता है।