ALLAHABAD HC: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में 33 वर्षीय जान्हवी को उत्तर प्रदेश में सिविल जज के रूप में नियुक्त करने का आदेश दिया। जान्हवी को उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा सिविल जज (जूनियर डिवीजन) परीक्षा, 2018 में अंकों की गिनती में गलती के कारण चयन से वंचित कर दिया गया था। यह निर्णय पांच साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आया, जिसमें न्यायालय ने पाया कि वह पूरी तरह से चयनित होने की हकदार थीं।
ALLAHABAD HC: न्यायालय का निर्णय
न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति दोनादी रमेश की खंडपीठ ने यह आदेश देते हुए कहा कि जान्हवी को बिना किसी गलती के न्यायिक नियुक्ति से वंचित किया गया। पीठ ने कहा कि जान्हवी की नियुक्ति सभी परिणामी लाभों के साथ की जाए, हालांकि काल्पनिक वेतन और सुरक्षा का भुगतान नहीं किया जाएगा।
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न्यायालय ने निर्देश दिया कि यदि आवश्यकता हो, तो उसके लिए एक अतिरिक्त पद सृजित किया जाए। साथ ही, जान्हवी को उनके बैच (2018) की वरिष्ठता के अनुसार स्थान दिया जाए।
जान्हवी ने अंग्रेजी भाषा के पेपर में अंकों की पुनर्गणना के लिए 2021 में उच्च न्यायालय का रुख किया। उनका दावा था कि उन्हें 88 अंक मिलने चाहिए थे, लेकिन गलत गणना के कारण उन्हें केवल 86 अंक दिए गए। अनुसूचित जाति वर्ग की उम्मीदवार होने के कारण चयन के लिए उन्हें 475 अंक चाहिए थे, जबकि उन्हें कुल 473 अंक मिले थे।
ALLAHABAD HC: उत्तर पुस्तिका में विसंगति
कोर्ट ने जान्हवी की उत्तर पुस्तिका का निरीक्षण किया और पाया कि पेपर के 12वें पृष्ठ पर बाईं ओर के हाशिये में परीक्षक ने 22 और 1 अंक दिए थे, जो कुल 23 होते थे। लेकिन दाईं ओर केवल 21 अंक दर्ज किए गए थे। परीक्षक ने तर्क दिया कि 21 अंक अंतिम थे और बाकी अंक उनके “व्यक्तिगत संदर्भ” के लिए थे।
न्यायालय ने परीक्षक के तर्क को खारिज करते हुए कहा कि उन्होंने अपनी गलती को छुपाने की कोशिश की। न्यायालय ने पाया कि जान्हवी को 475 अंक मिलते हैं और वह चयन की हकदार थीं।
उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) ने अदालत में स्वीकार किया कि 2018 की परीक्षा में कुछ विसंगतियां पाई गई थीं। हालांकि, उन्होंने जान्हवी को 2020 में उत्तर पुस्तिका देखने का अवसर दिया था। इसके बावजूद जान्हवी की नियुक्ति में देरी हुई।
ALLAHABAD HC: न्यायालय का निष्कर्ष
न्यायालय ने कहा कि जान्हवी को उनके द्वारा प्राप्त अंकों के आधार पर नियुक्त किया जाना चाहिए था और उन्हें यह नियुक्ति अब प्रदान की जाए। इस निर्णय से न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता की उम्मीदें और मजबूत हुई हैं।
यह फैसला न केवल जान्हवी के लिए न्याय लेकर आया बल्कि यह भी दिखाता है कि न्यायालय ऐसे मामलों में कितनी सख्ती और निष्पक्षता से काम करता है।