Allahabad High Court: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हत्या के एक मामले में दोषी ठहराए गए आरोपी की अपील को स्वीकार करते हुए सजा के आदेश को रद्द कर दिया है। आरोपी पहले ही 17 साल जेल में बिता चुका है। न्यायमूर्ति अरविंद सिंह सँगवान और न्यायमूर्ति मोहम्मद अज़हर हुसैन इदरीसी की पीठ ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि अपीलकर्ता 17 साल की वास्तविक सजा और 20 साल की कुल सजा (रिमिशन सहित) पूरी कर चुका है और राज्य पुलिस के अनुसार उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है।
उन्होंने यह भी कहा कि वह समय से पहले रिहाई का हकदार था, लेकिन उसका मामला कभी भी उचित रूप से प्रक्रिया में नहीं लाया गया।
इस मामले में अपीलकर्ता की ओर से अधिवक्ता एस.के. त्रिपाठी ने पैरवी की।
Allahabad High Court: मामला और घटनाक्रम
यह मामला एक मछली विक्रेता की हत्या से जुड़ा था। प्रॉसिक्यूशन के अनुसार, यह घटना एक बाजार में हुई, जहाँ आरोपी और मृतक के बीच भुगतान को लेकर विवाद हो गया था। इस विवाद के दौरान आरोपी ने मछली विक्रेता को गोली मार दी, जिससे उसकी मौत हो गई। इसके बाद मामले की जांच हुई और आरोपी पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 के तहत हत्या का आरोप लगाया गया।
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इस आरोप के तहत ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को दोषी ठहराते हुए उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
Allahabad High Court: उच्च न्यायालय का अवलोकन
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस मामले में अपील की सुनवाई के दौरान यह पाया कि प्रॉसिक्यूशन के मामले में कई विसंगतियां थीं। इसके चलते अदालत ने कहा कि आरोपी को संदेह का लाभ मिलना चाहिए। हाई कोर्ट ने पुलिस जांच को भी अधूरी और त्रुटिपूर्ण बताया, जिससे उचित साक्ष्य और गवाही सामने नहीं आ सकी।
अदालत ने कहा, “यह पूरी तरह से अविश्वसनीय है कि कोई व्यक्ति इतनी लंबी अवधि तक बिना वेतन या बोनस के काम करता रहे। इसके अलावा, इस मामले में उचित सबूत न होने के कारण अपीलकर्ता को संदेह का लाभ मिलना चाहिए।”
Allahabad High Court: रिमिशन और समय से पहले रिहाई का मामला
कोर्ट ने यह भी ध्यान में रखा कि अपीलकर्ता के जेल में रहने की अवधि 17 साल की वास्तविक सजा और 20 साल की कुल सजा तक पहुँच चुकी है। राज्य पुलिस की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार, अपीलकर्ता का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है और वह राज्य सरकार की समय से पहले रिहाई की नीति के तहत रिहा होने का पात्र था।
कोर्ट ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस मामले को जेल प्रशासन द्वारा उचित रूप से प्रक्रिया में नहीं लाया गया और अपीलकर्ता को समय से पहले रिहाई का लाभ नहीं मिल पाया।
Allahabad High Court: कोर्ट का अंतिम आदेश
अंततः इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस अपील को मंजूरी दी और दोषसिद्धि के फैसले और सजा के आदेश को रद्द कर दिया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि ट्रायल कोर्ट ने मामले की पर्याप्त रूप से समीक्षा नहीं की थी और आरोपी के खिलाफ उचित साक्ष्य नहीं जुटाए गए थे।
हाई कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि इस मामले में जारी सभी कानूनी प्रक्रिया को रद्द किया जाए और अपीलकर्ता को रिहा किया जाए। अदालत ने दोषसिद्धि के आदेश को खारिज करते हुए कहा कि यह मामला सरकार की समय से पहले रिहाई की नीति के तहत आता है और इसे उचित रूप से देखा जाना चाहिए था।
इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला उस सिद्धांत पर आधारित है कि यदि किसी आपराधिक मामले में आरोपी के खिलाफ पर्याप्त और विश्वसनीय सबूत नहीं हैं, तो उसे संदेह का लाभ मिलना चाहिए। इसके साथ ही, अदालत ने जेल प्रशासन और राज्य सरकार की नीति के पालन में विफलता की भी आलोचना की, जिससे अपीलकर्ता को समय से पहले रिहा नहीं किया जा सका।
मामले का यह फैसला न केवल आरोपी के लिए राहतकारी साबित हुआ, बल्कि यह न्याय प्रणाली में प्रक्रियात्मक खामियों और न्यायिक जांच की महत्ता को भी रेखांकित करता है।
Allahabad High Court: मामला शीर्षक
महफूज़ बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
न्यूट्रल सिटेशन: 2024:AHC:162096-DB
अपीलकर्ता की ओर से अधिवक्ता एस.के. त्रिपाठी और अजय शंकर उपस्थित हुए।