KERALA HC: केरल हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री के काफिले को काले झंडे दिखाने के आरोप में दर्ज आपराधिक मुकदमे को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि ऐसा आचरण मानहानि का अपराध नहीं हो सकता। न्यायमूर्ति बेचू कुरियन थॉमस की एकल पीठ ने कहा कि विरोध प्रदर्शन एक प्रभावी लोकतंत्र के लिए आवश्यक हैं और यह लोकतांत्रिक चेतना की बाहरी अभिव्यक्ति है।
कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 188, 500, 283 और 353 के तहत दर्ज आरोपों को खारिज करते हुए कहा, “यदि हर छोटी बात पर मुकदमा दर्ज किया जाएगा, तो हमारे पास इन्हीं मामलों के लिए समय बचेगा।”
KERALA HC: कोर्ट की टिप्पणी
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न्यायमूर्ति थॉमस ने कहा, “भले ही मुख्यमंत्री के काफिले को काला झंडा दिखाया गया हो, इसे IPC की धारा 499 के तहत मानहानि के रूप में नहीं देखा जा सकता। काले झंडे का मतलब अलग-अलग संदर्भ में अलग हो सकता है। यह समर्थन या विरोध दोनों का प्रतीक हो सकता है। आमतौर पर, काले झंडे को विरोध के प्रतीक के रूप में दिखाया जाता है।
जब तक झंडा दिखाने को किसी कानून के तहत अवैध नहीं घोषित किया गया है, इसे मानहानि का अपराध नहीं माना जा सकता।”
KERALA HC: मुकदमे के आरोप
याचिकाकर्ताओं पर मुख्यमंत्री के काफिले को काले झंडे दिखाने, अदालत के आदेशों का उल्लंघन करने, मानहानि करने, सार्वजनिक रास्ते में बाधा उत्पन्न करने और सरकारी सेवकों को उनके कर्तव्यों के निर्वहन से रोकने का आरोप था।
याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता एम. विवेक ने दलील दी कि IPC की धारा 500 के तहत मानहानि का मुकदमा केवल पीड़ित व्यक्ति द्वारा दर्ज शिकायत पर ही चलाया जा सकता है, पुलिस रिपोर्ट पर नहीं। कोर्ट ने इस तर्क को स्वीकार किया और कहा कि मानहानि का मामला केवल पीड़ित व्यक्ति की शिकायत पर चल सकता है, न कि पुलिस रिपोर्ट पर।
KERALA HC: कोर्ट का फैसला
कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ताओं पर लगाया गया मुख्य आरोप सिर्फ काला झंडा दिखाने का था, जो मानहानि का अपराध नहीं बनता। अदालत ने कहा, “हालांकि संकेत और दृश्य प्रतिनिधित्व मानहानि का माध्यम हो सकते हैं, लेकिन काले झंडे दिखाना न तो मानहानि है और न ही अवैध कृत्य।”
आईपीसी की धारा 283 के तहत आरोपों पर कोर्ट ने कहा, “पुलिस को रोकने के दौरान मामूली धक्का-मुक्की स्वाभाविक है। आरोपों से यह नहीं लगता कि पुलिस के कर्तव्यों में कोई बाधा उत्पन्न हुई। यह एक मामूली घटना है।”
अदालत ने धारा 353 (सरकारी सेवकों को उनके कर्तव्य के निर्वहन से रोकना) के तहत लगाए गए आरोपों को भी खारिज करते हुए कहा कि इस मामले में आईपीसी की धारा 95 लागू होती है, क्योंकि कोई हमला या चोट नहीं हुई थी और पुलिस अधिकारियों के कर्तव्यों में कोई रुकावट नहीं आई।
KERALA HC: निष्कर्ष
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ लगाए गए किसी भी आरोप को सही ठहराने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है। इसलिए, मामले को खारिज किया जाता है।
मामला: सिमिल और अन्य बनाम केरल राज्य (तटस्थ उद्धरण: 2024:KER:86736)
प्रतिनिधित्व:
- याचिकाकर्ता: अधिवक्ता एम. विवेक और रिनीता विनू
- उत्तरदाता: लोक अभियोजक सी.एन. प्रभाकरण
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