KRISHNA JANMABHUMI CASE: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद से संबंधित मुकदमों को निचली अदालत से उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले पर सवाल उठाया।
शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी की कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पास इस मामले की सुनवाई करने का मूल अधिकार क्षेत्र नहीं है और केवल असाधारण परिस्थितियों में ही सिविल कोर्ट के समक्ष लंबित मुकदमों को अपने पास स्थानांतरित किया जा सकता है।
KRISHNA JANMABHUMI CASE: मामला और न्यायालय की टिप्पणी
भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति पीवी संजय कुमार की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। उन्होंने कहा कि “इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पास मूल पक्ष अधिकार क्षेत्र नहीं है।” हिंदू पक्ष के अधिवक्ता बरुण सिन्हा ने तर्क दिया कि “असाधारण मामलों में उच्च न्यायालय मूल पक्ष अधिकार क्षेत्र का उपयोग कर सकता है।
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इस पर पीठ ने स्पष्ट किया कि “यदि उच्च न्यायालय में स्थानांतरण होता है, तो यह असाधारण मूल सिविल अधिकार क्षेत्र के तहत ही होगा।”
मूल मुकदमा हिंदू देवता भगवान श्रीकृष्ण विराजमान और उनके भक्तों द्वारा दायर किया गया था। इसमें दावा किया गया था कि शाही ईदगाह मस्जिद, कृष्ण जन्मभूमि भूमि पर बनी है और इसे उसके वर्तमान स्थल से हटाने की मांग की गई। वादी पक्ष ने यह भी कहा कि कई प्रमाण इस बात की ओर इशारा करते हैं कि मस्जिद वास्तव में एक हिंदू मंदिर है। इस आधार पर स्थल की जांच के लिए न्यायालय आयुक्त नियुक्त करने की मांग की गई थी।
सितंबर 2020 में सिविल कोर्ट ने पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 का हवाला देते हुए मुकदमे को खारिज कर दिया था। हालांकि, मथुरा जिला न्यायालय ने इस आदेश को पलट दिया और मई 2022 में मुकदमे को सुनवाई योग्य माना। 2023 में, मुकदमे को उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया, जिसे अब सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई है।
KRISHNA JANMABHUMI CASE: उच्च न्यायालय का फैसला और विवाद
पिछले साल, उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति अरविंद कुमार मिश्रा प्रथम ने मुकदमे को सिविल कोर्ट से उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने का आदेश दिया। साथ ही, एक न्यायालय आयुक्त की नियुक्ति की अनुमति दी गई, जिससे मस्जिद के स्थल का निरीक्षण किया जा सके।
सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के इस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए टिप्पणी की कि क्या एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय की बड़ी पीठ के समक्ष अपील दायर की जा सकती है। न्यायालय ने यह भी पूछा कि क्या मुकदमों को निचली अदालत में ही रहने देना उचित होता।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि “हमें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि यद्यपि याचिका अनुच्छेद 227 के साथ धारा 482 सीआरपीसी के तहत दायर की गई थी, लेकिन इसे आपराधिक रिट याचिका के रूप में लिया गया। यह पहली नज़र में गलत प्रतीत होता है क्योंकि अनुच्छेद 227/धारा 482 के तहत याचिका को आपराधिक रिट याचिका नहीं कहा जा सकता।”
शीर्ष अदालत ने इस मामले को न्यायालय के शीतकालीन अवकाश के बाद सुनवाई के लिए स्थगित कर दिया।
KRISHNA JANMABHUMI CASE: मुस्लिम पक्ष का रुख
मुस्लिम पक्ष ने उच्च न्यायालय के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। उनका तर्क था कि निचली अदालत में मामला लंबित रहने के बावजूद उच्च न्यायालय ने मुकदमे को अपने पास स्थानांतरित कर लिया, जो कि अनुचित है। सुप्रीम कोर्ट ने इस दावे की जांच के लिए संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया।
दिसंबर 2022 में उच्च न्यायालय ने हिंदू पक्ष की याचिका को स्वीकार किया और मस्जिद का निरीक्षण करने के लिए न्यायालय आयुक्त नियुक्त करने की अनुमति दी। यह कदम हिंदू पक्ष के इस दावे के समर्थन में था कि मस्जिद एक हिंदू मंदिर स्थल पर बनाई गई है।
सुप्रीम कोर्ट में अब यह सवाल लंबित है कि उच्च न्यायालय द्वारा मुकदमों को अपने पास स्थानांतरित करना न्यायसंगत था या नहीं। शीर्ष अदालत इलाहाबाद उच्च न्यायालय के हाल के फैसले की समीक्षा कर रही है, जिसमें कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद से संबंधित 18 मुकदमों को सुनवाई योग्य माना गया।
KRISHNA JANMABHUMI CASE: निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि केवल असाधारण परिस्थितियों में ही निचली अदालतों के मुकदमों को उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया जा सकता है। यह मामला भारतीय न्याय प्रणाली में अधिकार क्षेत्र और प्रक्रियात्मक न्याय के बीच संतुलन के महत्व को उजागर करता है। अदालत का अंतिम निर्णय इस मुद्दे पर कानून और न्याय की दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रभाव डालेगा।