SUPREME COURT: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (आप) के वरिष्ठ नेता मनीष सिसोदिया की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली आबकारी नीति मामले में उनकी जमानत शर्तों में ढील प्रदान की। यह मामला दिल्ली की आबकारी नीति से संबंधित भ्रष्टाचार और धन शोधन के आरोपों से जुड़ा है।
अदालत ने जमानत की उस शर्त को समाप्त कर दिया, जिसके तहत सिसोदिया को हर सोमवार और गुरुवार को जांच अधिकारी के समक्ष उपस्थित होना अनिवार्य था।
SUPREME COURT: शीर्ष अदालत का आदेश
न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने सिसोदिया की याचिका स्वीकार करते हुए स्पष्ट किया कि सप्ताह में दो बार जांच अधिकारी के समक्ष उपस्थित होने की शर्त अब आवश्यक नहीं है। हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि सिसोदिया को बिना किसी चूक के नियमित रूप से मुकदमे में उपस्थित होना होगा।
“शर्त में ढील देने के लिए आवेदन दायर किया गया है, जिसके तहत उन्हें सप्ताह में दो बार पुलिस स्टेशन जाना होगा। हम मानते हैं कि इस शर्त की अब आवश्यकता नहीं है और इसलिए इसे हटा दिया गया है। हालांकि, आवेदक को नियमित रूप से मुकदमे में उपस्थित होना होगा।”
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दिल्ली आबकारी नीति मामले में सिसोदिया पर आरोप है कि उन्होंने और अन्य आरोपियों ने नई आबकारी नीति के तहत कुछ शराब विक्रेताओं को अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए नियमों में बदलाव किया। इस नीति के कारण कथित तौर पर सरकार को राजस्व का नुकसान हुआ और प्राप्त रिश्वत का उपयोग आम आदमी पार्टी के गोवा चुनाव अभियान के लिए किया गया।
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने सिसोदिया के खिलाफ भ्रष्टाचार और धन शोधन के मामले दर्ज किए थे। फरवरी 2023 में उनकी गिरफ्तारी के बाद से इस मामले में कई सुनवाई हुईं, और अगस्त 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत प्रदान की।
SUPREME COURT: जमानत की शर्तें
सुप्रीम कोर्ट ने सिसोदिया को निम्नलिखित शर्तों के तहत जमानत दी थी:
10 लाख रुपये के जमानत बांड और समान राशि के दो जमानतदार प्रस्तुत करना।
अपना पासपोर्ट जांच एजेंसियों को सरेंडर करना।
हर सोमवार और गुरुवार को सुबह 10 से 11 बजे के बीच जांच अधिकारी के समक्ष उपस्थित होना।
सिसोदिया ने तीसरी शर्त को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और इसे समाप्त करने की मांग की।
सिसोदिया ने अपनी याचिका में तर्क दिया कि उन्हें हर सप्ताह दो बार जांच अधिकारियों के समक्ष उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वह जांच में सहयोग कर रहे हैं और सभी पूछताछ सत्रों में शामिल हुए हैं। उन्होंने कहा कि बार-बार पुलिस स्टेशन जाने की शर्त उनकी स्वतंत्रता पर अनावश्यक प्रतिबंध लगाती है।
वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी, जो सिसोदिया का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, ने अदालत को बताया कि:
सिसोदिया ने जांच में पूरा सहयोग किया है।
बार-बार जांच अधिकारी के समक्ष उपस्थित होने से जांच प्रक्रिया में कोई नया योगदान नहीं होगा।
यह शर्त सिसोदिया के लिए असुविधाजनक और उनकी स्वतंत्रता का उल्लंघन है।
SUPREME COURT: सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां
अदालत ने सिसोदिया की दलीलों को स्वीकार करते हुए उनकी याचिका पर सकारात्मक रुख अपनाया। अदालत ने कहा कि जांच एजेंसियों के पास अपनी जांच पूरी करने का अधिकार है, लेकिन अभियुक्त को अनावश्यक रूप से परेशान नहीं किया जाना चाहिए।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि सिसोदिया की स्वतंत्रता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित है। इस संदर्भ में, अदालत ने कहा कि लंबित मुकदमे के कारण स्वतंत्रता के अधिकार का हनन नहीं होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने सिसोदिया को जांच अधिकारियों के समक्ष बार-बार पेश होने की आवश्यकता समाप्त कर दी। हालांकि, अदालत ने यह सुनिश्चित करने के लिए कुछ शर्तें लगाईं कि मुकदमे की प्रक्रिया प्रभावित न हो।
अदालत ने सिसोदिया को निर्देश दिया:
वह मुकदमे की हर सुनवाई में बिना किसी चूक के उपस्थित होंगे।
यदि जांच एजेंसियों को उनकी हिरासत की आवश्यकता होगी, तो उन्हें कम से कम सात दिन पहले लिखित में सूचना दी जाएगी।
सिसोदिया किसी भी प्रकार की जांच में बाधा नहीं डालेंगे।
SUPREME COURT: मामले की अगली सुनवाई
मनीष सिसोदिया का मामला अभी भी दिल्ली की अदालत में विचाराधीन है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया है कि मुकदमे की सुनवाई को अनावश्यक रूप से लंबित न रखा जाए।
दिल्ली पुलिस और ईडी की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने अदालत को बताया कि एजेंसियां अपनी जांच पूरी कर रही हैं और सिसोदिया से संबंधित सभी साक्ष्य एकत्रित किए जा चुके हैं। उन्होंने अदालत को आश्वासन दिया कि सिसोदिया को बिना किसी वैध कारण के परेशान नहीं किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय मनीष सिसोदिया के लिए राहत लेकर आया है। यह मामला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका राजनीतिक प्रभाव भी है, क्योंकि यह दिल्ली की आबकारी नीति और आम आदमी पार्टी की शासन प्रणाली से संबंधित है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सिसोदिया की स्वतंत्रता और अधिकारों की रक्षा करते हुए जांच एजेंसियों को अपनी जांच निष्पक्ष और शीघ्र पूरा करने के निर्देश दिए हैं।