supreme court: सुप्रीम कोर्ट ने एक भारतीय वायुसेना के कर्मी को 1 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया, जो कि उनके खिलाफ एक लंबे और अनावश्यक मुकदमे के कारण हुई मानसिक पीड़ा के लिए था। कोर्ट ने इस मामले में गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा कि जब संस्थान अपनी उचित सीमा से बाहर बढ़ जाते हैं, तो अधिकारी यांत्रिक तरीके से काम करने लगते हैं और अक्सर साधारण और आसानी से उपलब्ध उपायों की अनदेखी कर देते हैं।
कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर किए गए गलत कार्य और उसकी सजा के बीच संतुलन नहीं रखा जाता, तो अमानवीयता और अनुचितता के बीच का अंतर मिटने लगता है। न्यायमूर्ति पमिदिघंटम श्री नरसिम्हा और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए भारतीय वायुसेना कर्मी के पक्ष में निर्णय दिया और मुआवजे का आदेश जारी किया।
supreme court: मामला और कोर्ट की टिप्पणी
यह मामला उस समय शुरू हुआ जब भारतीय वायुसेना के एक कर्मी (अपीलकर्ता) पर रेलवे क्रॉसिंग पर अपने वरिष्ठ अधिकारी के वाहन को ओवरटेक करने का आरोप लगाया गया था। घटना उस समय हुई जब कर्मी ड्यूटी से वापस लौट रहा था और उसने रेलवे गेट के सामने अपनी मोटरसाइकिल पार्क कर दी थी। इस दौरान हुई बहस के बाद अपीलकर्ता को “डांट” (Admonition) का आदेश जारी किया गया।
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हालांकि, स्टेशन कमांडर ने तकनीकी आधार पर पुनः परीक्षण की मांग की, यह तर्क देते हुए कि पहले परीक्षण में वायुसेना अधिनियम की धारा 83 के तहत उचित स्वीकृति नहीं ली गई थी। पहली सजा को रद्द कर दिया गया, लेकिन पुनः परीक्षण शुरू हुआ, जिसके परिणामस्वरूप एक और “डांट” का आदेश जारी किया गया।
अपीलकर्ता की अपीलों को लगातार अस्वीकार किया गया, जिसके बाद उन्होंने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (Armed Forces Tribunal) का रुख किया। न्यायाधिकरण ने “डांट” के आदेश को रद्द कर दिया, लेकिन मुआवजे की उनकी मांग को खारिज कर दिया। इसके बाद अपीलकर्ता सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।
कोर्ट ने पाया कि इस मामले में असंतुलित निर्णय लिए गए थे। सबसे पहले “डांट” के आदेश को हटाने की गारंटी दी गई, फिर उसे वापस लेकर पुनः परीक्षण किया गया और अंततः सजा दी गई। इन सभी प्रक्रियाओं ने अपीलकर्ता को मानसिक कष्ट और असंतोष की स्थिति में डाल दिया।
supreme court: संस्थानों की यांत्रिक कार्यप्रणाली की आलोचना
कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि जब संस्थान अपने आकार से बढ़ जाते हैं, तो अधिकारी अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन यांत्रिक तरीके से करने लगते हैं। इस प्रक्रिया में, वे साधारण और उपलब्ध समाधानों की अनदेखी कर देते हैं, जो कि हमारे दैनिक जीवन में आसानी से उपयोग किए जा सकते हैं।
कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा, “जब संस्थान अपनी सीमा से बाहर बढ़ जाते हैं, तो अधिकारी यांत्रिक रूप से काम करते हैं और कई बार वे उन सरल उपायों की अनदेखी कर देते हैं, जो हमारे सामान्य जीवन में उपलब्ध होते हैं।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि इस प्रकार के मामले में गरिमा की हानि को मुआवजे के रूप में व्यक्त करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन कानूनी उपाय हमें इसे प्रतीकात्मक रूप से हल करने का मौका देते हैं, ताकि एक नागरिक की पहचान और गरिमा की मान्यता बनी रहे।
supreme court: कोर्ट का अंतिम निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपीलकर्ता के पक्ष में निर्णय देते हुए 1 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता को जिस तरह के असंतुलित और असंगत सजा प्रक्रिया का सामना करना पड़ा, उससे उनकी गरिमा और मानसिक शांति प्रभावित हुई, जिसके लिए उन्हें मुआवजा मिलना चाहिए।
कोर्ट ने इस फैसले के साथ यह भी स्पष्ट किया कि यह मुआवजा प्रतीकात्मक रूप से दिया जा रहा है, ताकि अपीलकर्ता की गरिमा और सम्मान की पुनः स्थापना हो सके। अंततः कोर्ट ने अपील को निपटाते हुए प्रतिवादियों को आदेश दिया कि वे अपीलकर्ता को 1 लाख रुपये मुआवजा प्रदान करें।
मामला शीर्षक: एस. पी. पांडे बनाम भारत संघ (तटस्थ उद्धरण: 2024 INSC 804)
supreme court: इस मामले के प्रमुख बिंदु
- संस्थानों की यांत्रिक कार्यप्रणाली पर कोर्ट की आलोचना।
- गलत कार्य और सजा के बीच संतुलन न रखने पर कोर्ट की गंभीर टिप्पणी।
- अपीलकर्ता को मानसिक कष्ट और गरिमा की हानि के लिए मुआवजा।
- सशस्त्र बल न्यायाधिकरण द्वारा डांट का आदेश रद्द लेकिन मुआवजा न देने का निर्णय।
- सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1 लाख रुपये मुआवजे का आदेश।