SUPREME COURT: सरकारी नौकरी चाहने वाले उम्मीदवारों के जीवन से खिलवाड़ न करे केरल लोक सेवा आयोग

Photo of author

By headlineslivenews.com

Spread the love

SUPREME COURT: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में केरल लोक सेवा आयोग (केपीएससी) को फटकार लगाई और उन्हें निर्देश दिया कि सार्वजनिक सेवा चयन के लिए जिम्मेदार संस्था के रूप में आयोग को अपने कामकाज में “उच्च स्तर की सत्यनिष्ठा और पारदर्शिता” बनाए रखनी चाहिए। साथ ही, अदालत के समक्ष किसी भी प्रकार की गलत जानकारी देने से बचना चाहिए।

SUPREME COURT

कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा, जिसमें कंप्यूटर एप्लीकेशन में डिप्लोमा (डीसीए) या उससे उच्च योग्यता रखने वाले उम्मीदवारों को केरल जल प्राधिकरण (केरल वाटर अथॉरिटी) में लोअर डिवीजन क्लर्क (एलडीसी) पद के लिए अयोग्य करार दिया गया था।

इस फैसले में न्यायमूर्ति पामिडिघंटम श्री नरसिम्हा और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने टिप्पणी की कि, “हमें केपीएससी की गलतियों का पूरा दोष आयोग पर ही रखने में कोई संकोच नहीं है, क्योंकि विभिन्न समयों पर आयोग के बदलते रुख के कारण ही यह विवाद पैदा हुआ है।

MADHYA PRADESH HC: कर्मचारी के अधिक भुगतान पर रिकवरी आदेश रद्द

MADRAS HC: तंबाकू-मुक्त शिक्षा संस्थान दिशानिर्देश लागू करने का आदेश

एक राज्य संस्थान, जिसे सार्वजनिक सेवाओं में चयन की जिम्मेदारी दी गई है, को उच्च स्तर की ईमानदारी और पारदर्शिता बनाए रखनी चाहिए और अदालत के समक्ष झूठ का सहारा नहीं लेना चाहिए, विशेष रूप से अपने पहले के शपथ पत्र में कही गई बातों के विपरीत। हम केवल आशा कर सकते हैं कि केरल लोक सेवा आयोग इस अनुभव से सीखे और भविष्य में कम से कम उम्मीदवारों के जीवन, उम्मीदों और आकांक्षाओं से खिलवाड़ करने से बचे।”

SUPREME COURT: मामले का इतिहास

यह मामला लगभग बारह साल पुराना है, जिसमें केपीएससी द्वारा एलडीसी पद के लिए जारी एक अधिसूचना को लेकर विवाद शुरू हुआ था। इस अधिसूचना में आवश्यक योग्यता के रूप में ‘डेटा एंट्री और ऑफिस ऑटोमेशन में प्रमाण पत्र’ मांगा गया था, जो कुछ विशेष मान्यता प्राप्त संस्थानों से ही प्राप्त होना चाहिए।

लेकिन, डीसीए या अन्य उच्च योग्यता रखने वाले उम्मीदवारों ने इस अधिसूचना को चुनौती दी और केरल हाईकोर्ट में दलील दी कि उनकी योग्यता को भी एलडीसी पद के लिए समान माना जाना चाहिए। उम्मीदवारों ने तर्क दिया कि उनके पास उच्च स्तर की कंप्यूटर योग्यता है और उनकी डिग्री इस पद के लिए जरूरी डेटा एंट्री और ऑफिस ऑटोमेशन में प्रमाण पत्र के बराबर मानी जानी चाहिए।

हालांकि, केरल हाईकोर्ट ने इसे अस्वीकार कर दिया और कहा कि केवल वे उम्मीदवार ही इस पद के लिए पात्र माने जाएंगे, जिनके पास अधिसूचना में निर्धारित योग्यता है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि नियम में दिए गए ‘समानता’ का प्रावधान केवल उन संस्थानों की मान्यता के लिए लागू होता है, जो निर्धारित योग्यता प्रदान करते हैं। हाईकोर्ट ने यह भी माना कि अन्य डिग्री या उच्च योग्यता रखने वाले उम्मीदवार, चाहे वे कंप्यूटर से संबंधित हों, जरूरी नहीं कि वे इस पद के लिए आवश्यक कौशल रखते हों।

SUPREME COURT: केपीएससी का बदलता रुख

इस सबके बावजूद, केपीएससी ने डीसीए और उससे अधिक योग्यता रखने वाले उम्मीदवारों को भी इस पद के लिए चयन सूची में शामिल कर लिया। इसके बाद, उन उम्मीदवारों ने, जिनके पास विशेष ‘डेटा एंट्री और ऑफिस ऑटोमेशन में प्रमाण पत्र’ था, रिट याचिका दायर की और केपीएससी से यह मांग की कि वह केवल उन्हीं उम्मीदवारों को सूची में शामिल करे जिनके पास अधिसूचित योग्यता है।

हाईकोर्ट ने इन याचिकाओं को स्वीकार कर लिया और केपीएससी को निर्देश दिया कि वह सूची को पुन: तैयार करे और ऐसे उम्मीदवारों को बाहर निकाले जिनके पास अधिसूचित योग्यता नहीं है। इस निर्णय को डिविजन बेंच ने भी समर्थन किया। इस मामले में केपीएससी के बदलते रुख पर सुप्रीम कोर्ट ने भी चिंता जताई और यह पाया कि शुरू में आयोग का मानना था कि डीसीए योग्यता एलडीसी पद के लिए उपयुक्त नहीं है, लेकिन बाद में बिना किसी ठोस आधार के इस स्थिति में बदलाव किया गया।

SUPREME COURT: सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और दिशा-निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल कंप्यूटर से संबंधित डिप्लोमा या डिग्री होना इस बात का संकेत नहीं देता कि उम्मीदवार के पास डेटा एंट्री और ऑफिस ऑटोमेशन में आवश्यक अनुभव और कौशल है। कोर्ट ने कहा कि एक उच्च योग्यता रखने का मतलब यह नहीं है कि उम्मीदवार के पास वह विशेष अनुभव और प्रशिक्षण है जो एलडीसी पद के लिए आवश्यक है।

यदि पात्रता के मानदंडों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है, तो यह उम्मीद की जाती है कि संस्थान उसी के अनुसार चयन प्रक्रिया को संचालित करेगा।

Headlines Live News

पीठ ने केपीएससी के इस बदलते रुख को “मनमाना और अनुचित” बताया और कहा कि इससे उम्मीदवारों के जीवन, आशाओं और आकांक्षाओं पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि केरल राज्य और अधीनस्थ सेवा नियम, 1958 का नियम 10(ए)(ii) इस मामले में लागू नहीं होता, क्योंकि इसमें केवल मान्यता प्राप्त संस्थानों की योग्यता को ही मान्यता दी गई है, न कि वैकल्पिक प्रमाणपत्रों को।

इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि केपीएससी का यह विरोधाभासी रुख इस लंबे समय से चले आ रहे विवाद के लिए जिम्मेदार है, जिसने लगभग बारह सौ उम्मीदवारों के जीवन, आशाओं और आकांक्षाओं को प्रभावित किया है।

कोर्ट ने कहा, “केपीएससी के इस अनुभव से यह सीखना चाहिए कि वे भविष्य में इस प्रकार की गलतियों से बचें और उम्मीदवारों की आशाओं और जीवन के साथ खिलवाड़ करने से परहेज करें।”

मामला शीर्षक: अनूप एम. एवं अन्य बनाम गिरीश कुमार टी.एम. एवं अन्य [तटस्थ उद्धरण: 2024 INSC 828]

Sharing This Post:

Leave a Comment

Optimized by Optimole
DELHI HC: भाजपा सांसद बांसुरी स्वराज को सत्येंद्र जैन के मानहानि केस में नोटिस जारी किया BOMBAY HC: पतंजलि पर जुर्माने पर रोक लगाई अतुल सुभाष आत्महत्या: बेंगलुरु कोर्ट ने पत्नी और परिवार को न्यायिक हिरासत में भेजा SUPREME COURT: भाजपा नेता गिर्राज सिंह मलिंगा को मारपीट मामले में जमानत दी” SUPREME COURT: मामूली अपराधों में जमानत में देरी पर जताई चिंता